व्यापार और भूमंडलीकरण – Class 10th Social Science ( सामाजिक विज्ञान ) Notes in Hindi

  भूमंडलीकारण विश्व के विभिन्न भागों के लोगों को भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर जोड़ने या एकीकृत करने का सफल प्रयास है | यह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विश्वव्यापी समायोजन की प्रक्रिया है | आज विश्व के विभिन्न भाग व्यवहारिक रूप से एक दूसरे के इतने निकट आ गये हैं कि आज तकनीकी दृष्टि से विश्व को वैश्विक गाँव की संज्ञा दी जाने लगी है | 

आधुनिक काल के पूर्व वैश्विक संपर्क – प्राचीनकाल से ही मानव समाज एक दूसरे के करीब आये | पहले भी यात्री, व्यापारी, पुजारी तथा तीर्थयात्री ज्ञान तथा रोजगार की तलाश में अपने देश से अन्य देशों में जाते थे | 

      3000 ईसा पूर्व समुद्री तटों पर होने वाला व्यापार सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ था |  औद्योगिक क्रांति के कारण बाजार तमाम गतिविधियों का केंद्र बना तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार का विकास हुआ | भारत में भी यूपोपीय व्यापारी जैसे पुर्तगाली, डच तथा अंग्रेजों ने अपनी कंपनियाँ स्थापित कीं | 

रेशम मार्ग (सिल्क रुड) का व्यापारिक महत्त्व – आधुनिक काल से पहले व्यापारिक तथा सांस्कृतिक संपर्कों का सबसे प्रमुख उदहारण सिल्क मार्ग था | चीनी व्यापारी इसी मार्ग से रेशम विभिन्न देशों तक ले जाते थे | 

खाद्यानों का आदान-प्रदान -आधुनिक युग के पहले खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान- प्रदान के माध्यम बन गये थे | खाने-पीने की वस्तुयें एक-दूसरे देश में आने जाने लगी | जब भी व्यापारी ये यात्री किसी नये देश में जाते थे तो वहाँ नई फसलों के बीज बो देते थे | लोगों का मानना है कि ‘नुडल्स’ चीनी  मूल का था और वहाँ से ये पश्चिमी देशों में पहुँचा और वहाँ स्पैघेती (Spaghetti) का जन्म हुआ | आलू, सोयाबीन, मूँगफली, ,मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकंद जैसे कई खाद्य पदार्थ लगभग पाँच सौ वर्ष पहले नहीं थे | ये खाद्य पदार्थ क्रिस्टोफर कोलंबस अमेरिका से अपने साथ यूपोप ले लाया जहाँ से वे एशिया आये | कई नई पसलों के आने से जीवन में आमूल परिवर्तन हुए जैसे साधारण से आलू का इस्तेमाल शुरू होने के बाद यूरोप के गरीबों की जिंदगी में परिवर्तन आया तथा उनका भोजन बेहतर हो गया और उनकी औसत उम्र बढ़ गई | 

अमेरिका का उपनिवेशीकरण – सोलहवीं शताब्दी के मध्य में पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं की विजय का सिलसिला शुरू हो गया था | उन्होंने अमेरिका को अपना उपनिवेश बनाया | स्पेन के विजेताओं का सबसे शक्तिशाली हथियार में परंपरागत किस्म का हथियार नहीं था, बल्कि चेचक जैसे कीटाणु थे, जो स्पेनिश सैनिकों और सफसरों के साथ वहाँ पहुँचे थे | अमेरिका जो लाखों साल से अलग रहता था उनके शरीर में यूपोप से आने वाले इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता नहीं थी | अत: अमेरिका में आकर कई यूपोपीय बसने लगे | इंगलैंड ने अमेरिका में तेरह उपनिवेश स्थापित किये | 

19वीं शताब्दी की आर्थिक गतिविधियाँ   

19वीं शताब्दी में आर्थिंक, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक बदलाव से सारे विश्व का काया पलट हो गया |

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय – अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय तीन तरह की प्रवाहों पर आधारित होते हैं | पहला प्रवाह व्यापार, दूसरा प्रवाह श्रम तथा तीसरा प्रवाह व्यापार, दूसरा प्रवाह श्रम तथा तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है | 

विश्व अर्थव्यवस्था का उदय – सभी देश भोजन के मामले में आत्मनिर्भर होना चाहते हैं | परंतु 18वीं सदी में ब्रिटेन की आबादी तेजी से बढ़ने लगी, जिससे देश में भोजन की माँग   से तथा औद्योगिक विकास होने के कारण कृषि उत्पादों की माँग में भी तेजी आई | 

ब्रिटेन में खाद्यान्न का आयात – कॉर्न लाॅ के निरस्त होने के पश्चात् खाद्य पदार्थों का आयात कम कीमत पर होने लगा | अनाज आसानी से उपलब्ध होने लगा | आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से भी कम थी | 

         खाद्यान्न की कीमतों में गिरावट आने से ब्रिटेन के लोगों की उपभोग क्षमता बढ़ गई | उन्नीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति हुई जिससे ब्रिटेन के लोगों की आय में भी वृद्धि होने लगी तथा उनकी जरूरतें भी बढ़ीं | 

       भारत में भी इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई दिये | पंजाब में ब्रिटिश सरकार ने अर्द्ध रेगिस्तानी जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए नहरों का निर्माण किया जिसमें कपास तथा गेहुँ की खेती की गई | पंजाब में विभिन्न भागों से खेतिहरों तथा मजदूरों को लाकर बसाया गया | उनकी बस्ती को ‘केनाल कॉलनी’ (नहर बस्ती) नाम दिया गया | 

तकनीक की भूमिका – तकनीकी प्रगति ने भी विश्व व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका | कृषि उत्पादों को बाजार तक ले जाने के लिए तेज चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनीं, बोगियों का भार कम किया गया ताकि गाड़ी तेज गति से चल सके, जलपोतों का आकार बड़ा किया गया, ताकि उत्पादों को खेतों से दूर के बाजारों में कम लागत पर ज्यादा आसानी से पहुँचाया जा सके | 

अफ्रीका और एशिया में उपनिवेशवाद –  उन्नीसवीं सदी के अंत में व्यापार में तेजी आने से बाजार भी फैलने लगा | यूरोपियों ने एशिया तथा अफ्रीका में व्यापार करने के लिए अपने उपनिवेशों को स्थापित किया | 15वीं शताब्दी में भारत में पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी तथा अंग्रेज व्यापार करने के लिए भारत आये परंतु बाद में उन लोगों ने अपनी कंपनियाँ खोलीं | 

1885 के ‘बर्लिन सम्मलेन’ द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों ने अफ्रीका का आपसी बँटवारा किया | उपनिवेशकों ने वहाँ के आर्थिक संसाधनों को अपने अधीन कर लिया | 

भारत से श्रम प्रवाह   

गिरमिटिया मजदूर – उन्नीसवीं शताब्दी में भारत से श्रमिकों का प्रवाह दूसरे देशों में हुआ | चीन में भी श्रमिकों का प्रवाह हुआ | ये श्रमिक एक अनुबंध अथवा एग्रीमेंट के तहत बाहर ले जाये गये | इसलिए इन श्रमिकों को ‘गिरमिटिया श्रमिक’ कहा जाता था | 19वीं सदी में भारत तथा चीन से लाखों मजदूरों को बागानों, खदानों और सड़क तथा रेलवे निर्माण में काम करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था | अनुबंधों में यह शर्त होती थी कि मजदूरों को अपने मालिक के साथ पाँच वर्षों तक काम करना है | इस अवधि के पूरा होने के बाद ही वे अपने स्वदेश लौट सकते थे | 

        भारत के गिरमिटिया मजदूरों को विदेश में मुख्यत: कैरीबियाई द्वीप समूह (त्रिनिदाद, गुयाना और सुरीनाम), मॉरिशस तथा फिजी ले जाया जाता था | तमिल के मजदूर सीलोन और मलाया जाकर काम करते थे | उन्नीसवीं सदी की इस अनुबंध व्यवस्था को ‘नयी दास प्रथा’ भी कहा गया | 20वीं सदी में इस प्रथा का विरोध भी किया गया | इसे भारतीय अपमान जनक प्रथा मानते थे | 

वैश्विक व्यवस्था एवं भारतीय व्यापार – उपनिवेशवाद के बाद भारत का भी विश्व बाजार में व्यापार होने लगा | भारत में कंपनी का उद्देश्य ब्रिटेन की आवश्यकतानुसार भारत से व्यापार करना था | ब्रिटिश उद्योगपतियों ने सरकार पर कपास के आयात पर रोक लगाने को कहा ताकि स्थानीय उद्योगों की रक्षा हो | 

         1800 में भारतीय कपड़ों का निर्यात 30 प्रतिशत से घटकर 1815 में 15 प्रतिशत रह गया | घटते-घटते 1870 तक सिर्फ 3 प्रतिशत ही रह गया था | 1812 से 1871 के बीच कपास का निर्यात 5 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया | कपड़ों की रंगाई में प्रयोग होने वाला नील का भी निर्यात बड़े स्तर पर होने लगा | 1820 के दशक में चीन को भी बड़ी मात्रा में अफीम का निर्यात किया जाने लगा |

          ब्रिटिश अफसरों को व्यपारियों द्वारा स्वदेश ले जाने वाला धन, कंपनी द्वारा भारत के बाहर से लिये गये कर्ज का ब्याज तथा भारत में कंपनी द्वारा भारत के बाहर से लिये गये कर्ज का ब्याज तथा भारत कंपनी की सेवा से सेवानिवृत पदाधिकारियों को पेंशन का भुगतान किया जाता था | दादा भाई नौरोजी ने इसे धन-निष्कासन (Drain of wealth) की संज्ञा दी थी | 

विश्व बाजार के लाभ – कृषि के क्षेत्र में भी कई क्रांतिकारी परिवर्तन विश्व बाजार की ही देन है | कुछ नई फसलों का भी उत्पादन हुआ | किसान तंबाकू, रबड़, कॉफी, नील, गन्ना का उत्पादन करने लगे | इन्हें बाहर के बाजारों में बेचने के लिए भेजा गया | 1820 से 1914 के बीच विश्व व्यापार में 25 से 40 गुना वृद्धि हुई | शहरीकरण एवं जनसंख्या की वृद्धि भी विश्व व्यापार का ही परिणाम था | 

प्रथम विश्वयुद्ध और इसके परिणाम – प्रथम विश्वयुद्ध 1914 में शुरू हुआ | प्रथम विश्वयुद्ध मुख्य रूप से यूपोप में ही लड़ा गया परंतु इसका असर सारी दुनिया पर हुआ | इस विश्वयुद्ध के कारण यूरोप की अर्थव्यवस्था बिलकुल तबाह हो गयी | 

           पहला विश्वयुद्ध 1918 तक लड़ा गया | पेरिस में में 1919 में हुए पेरिस शांति समझौते के बाद यह युद्ध सपाप्त हो गया | यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था | इस युद्ध में पहली बार मशीनगनों, हवाई जहाजों, जलपोतों, टैंकों तथा रासायनिक हथियारों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया | ये सभी चीजें आधुनिकों उद्योगों की देन थी | अनुमान के अनुसार इस युद्ध में करीब 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गये और करीब 2 करोड़ लोग घायल हुए | इस युद्ध में मारे जाने वालों में जयादातर कामकाजी लोग थे | सैनिकों की आवश्यकता के लिए वर्दी, जूते, टेंट, जूट की बोरियाँ, जीन इत्यादि बनाये गये |  इनके उत्पादन से भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत हुई | भारतीय उद्योगपतियों ने कपड़ा, जूट, खनन इत्यादि में पूँजी निवेश कर इन उद्योगों को विकसित किया | 

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक व्यवस्था – प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व अर्थव्यवस्था को सुधारने  के लिए अनेक प्रयत्न किये गये | युद्ध के बाद ब्रिटेन भारतीय बाजार में पहले वाली वर्चस्व नहीं स्थापित कर सका | काम की कमी होने से हजारों लोग बेरोजगार हो गये | ब्रिटेन में 1921 में हर पाँच व्यक्ति में एक के पास काम नहीं था | 

       प्रथम विश्वयुद्ध ने कृषि तथा कृषि उत्पाद पर भी संकट उत्पन्न कर दिये थे | उदाहरणस्वरूप युद्ध के पूर्व पूर्वी यूपोप में गेहूँ का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था | युद्ध की समाप्ति के बाद यूरोप में पुन: गेहुँ के पैदावार में सुधार होने लगा इससे विश्व बाजार में गेहूँ की मात्रा में वृद्धि हो गया जिससे गेहूँ की कीमत घट गई | 

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था – अमेरिका के प्रयासों से 1920 से 1927 तक यूपोप तथा अमेरिका में आर्थिक प्रगति हुआ | तकनीकी इस्तेमाल कर उद्योगों को विकसित किया गया | अमेरिका की प्रगति से उसकी कंपनियों को काफी लाभ हुआ | 

वृहत उत्पादन व्यवस्था – 1920 के दशक की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी खासियत थी वृहत उत्पादन व्यवस्था | कार निर्माता हेनरी फोर्ड ने वृहत उत्पादन की नीति को अपनाया | उन्होंने शिकागो के एक बूचड़खाने के तर्ज पर डेट्रायट के अपने कार कारखाने में आधुनिक असेंबली लाइन स्थापित की | यह देखकर फोर्ड ने अपने गाड़ियों के उत्पादन में भी असेंबली लाइन तरीका अपनाने को सोचा | इस तरीका से समय तथा पैसे दोनों की बचत हो सकती थी | 

हेनरी फोर्ड ने इसी पद्धति द्वारा टी-मॉडल नामक पहली कार अपनी कंपनी में बनाया | मजदूरों की तनख्वाह बढ़ाने से हेनरी फोर्ड के मुनाफे में जो कमी आई उसे पूरा करने के लिए उन्होंने कन्वेयर बेल्ट की गति तेज कर दी ताकि उत्पादन में वृद्धि हो सके | 

        मजदूर वर्ग भी कार खरीदने लगे |  उत्पादन की गति में तेजी आने लगी | 1919 में अमेरिका में जहाँ 20 लाख कार का उत्पादन होता था वही 1929 में बढ़कर 50 लाख कार प्रति वर्ष हो गया | बहुत सारे लोग फ्रिज, वाशिंग मशीन, रेडियो, ग्रामोफोन आदि भी खरीदने लगे | 

महामंदी  

आर्थिक महामंदी की शुरुआत 1929 से हुई और यह संकट तीस के दशक तक बना रहा | इस दौरान दुनिया आर्थिक महामंदी के चपेट में आ गया | महामंदी से रोजगार, आय और व्यापार में गिरावट आई | बोरोजगारी में कारण लोगों की आय में कमी आई | ऐसी स्थिति लगभग सभी देशों में थी | 

Note – 

आर्थिक महामंदी के कारण 

  1. कृषि क्षेत्र में अत्पादन | 
  2. अमेरिका पूँजी के प्रवाह में कमी | 
  3. महामंदी का प्रभाव | 
  4. अमेरिका पर प्रभाव 
  5. यूपोप पर आर्थिक महामंदी का प्रभाव | 
  6. भारत पर प्रभाव | 

महामंदी का प्रभाव 

अमेरिका पर प्रभाव – औद्योगिक देशों में मंदी का सबसे बुरा असर अमेरिका पर ही पड़ा | मंदी की आशंका तथा कीमतों में कमी को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने घरेलू कर्ज देने बंद कर दिये | जो कर्ज ले चुके थे उनसे कर्ज वसूली की प्रक्रिया तेज कर दी गई | कृषि उत्पाद के मूल्य गिराने से किसान अपनी उपज बाजार में नहीं बेच पा रहे थे जिससे उनके परिवार पर व्यापक असर पड़ा | कर्ज चुकाने में उनकी नाकामयाबी होने पर उनकी कार, मकान और सारी जरुरी चीजों की कुर्की हो गई | 

यूपोप पर प्रभाव – यूपोप पर भी आर्थिक महामंदी का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा | अमेरिका में घरेलू संकट उत्पन्न होने से वह यूपोप के देशों में दिये हुए कर्ज वापस माँगने लगे | जिससे यूपोप के सभी देशों के समक्ष गहरा संकट उत्पन्न हो गया | सबसे अधिक ब्रिटेन तथा जर्मनी प्रभावित हुआ | 

भारत पर प्रभाव – भारत भी आर्थिक महामंदी के प्रभाव से बच नहीं पाया था | भारत पर भी आर्थिक महामंदी के कई प्रभाव पड़े | महामंदी के पूर्व भारत से कच्चे माल का निर्यात किया जाता था तथा यूपोप और अन्य देशों से तैयार माल भारत में आयात किये जाते थे | भारत महामंदी ने भारतीय व्यापार को प्रभावित किया | 

        प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कीन्स के अनुसार भारत से सोने के निर्यात से विश्व अर्थव्यवस्था को पुनजीवित करने में काफी मदद मिली | इस निर्यात से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार आया परंतु भारतीय किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ | 

युद्धोतर विश्व बाजार और बदलते अंतर्राष्ट्रीय संबंध 

प्रथम विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बीस वर्षों के बाद दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया | यह युद्ध भी दो गुटों, मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के बीच हुआ | 1929  के आर्थिक मंदी का आधार वर्ष मानकर 1920 से 1945 के बीच वाले आर्थिक संबंध को दो भाग में बाँटा गया है | पहला 1920 से 1929 तक का काल तथा दूसरा 1929 से द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति 1945 तक का काल | 

विश्वमंदी और अंतर्राष्ट्रीय संबंध – आर्थिक मंदी में यूरोप के राजनीतिक स्थिति में दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए | एक तो रूस में महामंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा | रूस में साम्यवादी आर्थिक और राजनीति व्यवस्था का प्रचालन था जिससे उसका प्रभाव बढ़ गया | दूसरे इटली तथा जर्मनी में अधिनायकवादी शासन प्रणाली का उदय हुआ | 

संयुक्त राष्ट्र और मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मलेन – जुलाई 1944 में अमेरिका स्थिति न्यू हैम्पशायर  के ब्रेटर युड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मलेन बुलाया गया | इस सम्मेलन में विदेशी व्यापार में लाभ तथा घाटे से निपटने के लिए दो संस्थानों का गठन किया गया | पहला अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई० एम० एफ०) की स्थापना की गई तथा दूसरा अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माणएवं विकास बैंक अथवा विश्व बैंक की स्थापना हुई | इन दोनों वित्तीय संस्थानों को ‘ब्रेटन वुड्स की जुड़वा संतानों’ के नाम से जाना जाता है | 

               विश्व बैंक तथा आई० एम० एफ० ने 1947 में औपचारिक रूप से काम करना आरंभ कर दिया | इन दोनों संस्थानों पर “संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव” कायम रहा | अमेरिका को आई० एम० एफ० और विश्व बैंक के किसी भी निर्णय पर ‘वीटो’ (निषेधाधिकार) प्रदान किया गया | 

भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण) 

भूमंडलीकरण प्रक्रिया द्वारा विश्व के सभी राष्ट्र राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से जुड़ जाते हैं | अर्थात् वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें हम अपने निर्णयों को दुनिया के एक एक क्षेत्र में क्रियांवित करते हैं, जो दुनिया के दूरवर्ती क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है | 

               भूमंडलीकरण शब्द का सबसे पहला व्यवहार संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉन विलियम्सन ने 1990 में किया | पूँजीवाद जो बाजार के मुनाफा पर आश्रित था, के विकास से वैश्वीकरण का उदय हुआ | 

               1995 में विश्व व्यापार संस्था (W. T. O) की स्थापना की गई | भारत में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनी खुली | 1920 से ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना हो चुकी थी | विकासशील देशों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (एन० आई० ई० ओ०) की स्थापना की कोशिश कर अनेक समूह बनाये | जी-77, जी-8, ओपेक, आसियान, दक्षेस (सार्क) यूपोपीय संघ इत्यादि का भूमंडलीकरण की प्रक्रिया को विकसित करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा |  

 

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