विधुत धारा | Electric Current | Class 10th Physics Chapter 4 | Hindi Medium

विधुत धारा ( Electric current )– विधुत धारा से हमारा तात्पर्य तारों से होकर आवेश का प्रवाह होता है | हम जानते है कि पदार्थ के परमाणु तीन मौलिक कण ॠण आवेश युक्त इलेक्ट्रॉन , धन आवेशशुक्त प्रोट्रॉन तथा अनावेशित न्यूट्रॉन के बने होते है | प्रोट्रॉन तथा न्यूट्रॉन नाभिक में रहते है और इलेक्ट्रॉन कक्षाओं में घुमाते रहते है परमाणु विधुतत: उदासीन होता है | कभी-कभी वस्तुओं में धन ॠण आवेश का यह संतुलन बिगड़ता भी है | 

 जैसे – जब हम एक काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ते हैं, तो काँच की छड़ इलेक्ट्रॉन रेशम के कपड़े पर चले जाते है | तब काँच की छड़ इलेक्ट्रॉन खोकर धनावेशित हो जाती है और रेशम का कपड़ा इलेक्ट्रॉन पाकर ॠणावेशित हो जाते है | 
नोट –
  1. इलेक्ट्रॉनों को छोकर कोई पदार्थ धनावेशित हो जाता है और इलेक्ट्रॉनों को पाकर ॠणावेशित |
  2. आवेश संरक्षित रहता है , उसे न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट | 
  • चालक ( Conductor ) – ऐसे पदार्थ जिससे होकर विधुत आवेश उनके एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहलाते है | जैसे – लोहा, चाँदी, मनुष्य, अशुद्ध जल, पृथ्वी | 
  • विधुरोधी या कुचालक ( Insulator ) – ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जा सकते विधुतारोधी कहलाता है | जैसे – मोम, चमड़ा, रबड़, शुद्ध जल | 
  • विधुत धारा ( Electric current ) – किसी चालक पदार्थ में किसी दिशा में दो बिन्दुओं के बीच आवेश के व्यवस्थित प्रवाह को विधुत-धारा कहते है | 

विधुत विभव ( Electric Potential ) – किसी बिंदु पर विधुत विभव काय का वह परिमाण है जो प्रति एकांक आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है |

विधुत विभव ,

विधुत विभव का SI मात्रक वोल्ट ( volt, V ) या J/C होता है | 

विभवांतर ( Potential difference ) – किन्ही दों बिंदुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है |

 

माना आवेश q को बिंदु B से A तक लाने में किया गया कार्य WAB है |

विभवांतर ,

विभवांतर का SI मात्रक वोल्ट ( volt, V ) या J/C होता है | 

नोट – 

  1. धन आवेश उच्च विभव से निम्न विभव की ओर गतिशील होगा | 
  2. एक ॠण आवेश निम्न विभव से उच्च विभव की ओर गतिशील होगा | 

सेल एवं बैटरी – सेल या बैटरी एक ऐसी युक्ति है, जो अपने अंदर हो रहे रासायनिक अभिक्रियाओ द्वारा सेल के दोनों इलेक्ट्रॉनों के बीच विभवांतर बनाए रखती है | सेलों की समूहित व्यवस्था को हो बैटरी कहा जाता है |

विधुत-परिपथ ( Electric Circuit ) – जिस पथ से होकर विधुत-धारा का प्रवाह होता है, उसे विधुत-परिपथ कहते है | किसी विधुत-परिपथ के विभिन्न अवयवों की व्यवस्था को उनके प्रतीकों द्वारा दर्शाने वाले आरेख को परिपथ आरेख कहते है | 

विधुत-परिपथ के अवयव  संकेत 
सेल 
बैटरी 
तार संधि 
खुली प्लग कुंजी 
बंद प्लग कुंजी 
खुला स्विच 
बंद स्विच 
तार क्रॉसिंग 
बल्ब 
ऐमीटर 
वोल्टमीटर 
प्रतिरोधक 

विधुत-धारा की प्रबलता – किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ-काट को पार करनेवाली विधुत-धारा की प्रबलता उस अनुप्रस्थ-काट से होकर प्रति एकांक समय में प्रवाहित आवेश का परिणाम है |

       या Q = It 

जहाँ , I = विधुत धारा  

Q = आवेश 
t = समय 
विधुत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर ( ampere, A ) या J/sec होता है | 
ऐमीटर ( Ammeter ) – जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहा जाता है यह किसी विधुत-परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है | 
वोल्टमीटर ( Voltmeter ) – जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच के विभवांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहा जाता है | यह किसी विधुत-परिपथ में समांतर क्रम जोड़ा जाता है | 

ओम का नियम ( Ohm’ s Law ) – 1826 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने किसी चालक के सिरों पर लगाए विभवांतर तथा उनमें प्रवाहित विधुत-धारा का संबंध को एक नियम से व्यक्ति किया जाता है, जिसे ओम का नियम कहते है | 

यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन न हो, तो उसमें प्रवाहित विधुत-धारा उसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर के समानुपाती होती है | 

I α V

या ,

जहाँ R नियतांक है | जिसे चालक का प्रतिरोध कहते है | 

प्रतिरोध ( Resistance ) – किसी पदार्थ का वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है, उस पदार्थ का विधुत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहलाता है | 

प्रतिरोध का SI मात्रक ओम ( Ohm, Ω ) होता है |

किसी चालक तार का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है – 

  1. तार की लंबाई पर – किसी तार का प्रतिरोध R उनकी लंबाई l के समानुपाती होता है |                                                                                                                    R α l 
  2. तार की मोटाई पर – किसी तार का प्रतिरोध R उनके अनुप्रस्थ कार के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है |

               

जहाँ  ρ ( rho ) दिए गए ताप पर तार के पदार्थ के लिए नियतांक है | इसे चालक तार के प्रतिरोधकता कहते है | प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm होता है |

प्रतिरोध के आधार पर चालक, प्रतिरोधक और विधुतारोधी की परिभाषा – 

  1. चालक ( Conductor ) – बहुत कम प्रतिरोध वाले पदार्थो को जिनमें से आवेश आसानी से प्रवाहित होता है चालक कहलाता है | जैसे – चाँदी, लोहा, ताँबा | 
  2. प्रतिरोधक ( Resistor ) – उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थ प्रतिरोधक कहलाते है | 
  3. विधुतारोधी ( Insulator ) – बहुत ही अधिक प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनसे आवेश प्रवाहित नहीं हो पाता विधुतरोधी कहते है | जैसे – लकड़ी, प्लैस्टिक आदि | 

प्रतिरोधकों का समूहन – दो या दो अधिक प्रतिरोधकों को एक दूसरों से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है इनमें दो विधियाँ मुख्य है – 

  1. श्रेणीक्रम समूहन ( Series grouping )
  2. समान्तरक्रम या पाशर्व क्रम समूहन ( Parallel grouping )                                                                            

1. श्रेणीक्रम समूहन ( Series grouping ) – 

माना R1 , R2 तथा R प्रतिरोध वाले तीन प्रतिरोधक है जिनके सिरों के बीच V1 , V2 तथा V3 विभवांतर है |    V = V1 ,+ V2 + V3 

 

 

V1= IR1      — (1)

V2= IR2      — (2)

V3= IR3      — (3)

 

समीकरण ( 1 ) , ( 2 ) तथा ( 3 ) को जोड़ने पर ,

V1 + V2 + V3 = IR1 + IR2 + IR3

V = I ( R1 + R2 + R3 )

R= R1 + R2 + R3

अत: श्रेणीक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है | 

2. पाशर्व क्रम या समान्तरक्रम समूहन ( Parallel grouping ) – 

माना R1 , R2 , Rप्रतिरोध वाले तीन प्रतिरोधक है जिनमें प्रवाहित धारा क्रमशः I1 , I2 , I है |  

   I = I1 + I2 + I3

  

समीकरण ( 1 ), ( 2 ), ( 3 ) को जोड़ने पर, 

अत: पाइर्वक्रम में जुड़े हुए प्रतिरोधक का समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधी के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है | 

विधुत-धारा का ऊष्मीय प्रभाव ( Heating effect of electric current ) – जब किसी चालक से विधुत-धारा प्रवाहित की जाती है | तब वह चालक गर्म हो जाता है अर्थात विधुत ऊर्जा का ऊष्मा में रूपांतरण होता है इसे ही विधुत-धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहा जाता है | 

विधुत धारा से उत्त्पन्न ऊष्मा का परिमाप – किसी चालक में प्रवाहित विधुत-धारा द्वारा चालक के प्रतिरोध के विरुद्ध किए गए कुल कार्य के बराबर होता है | 

U = W = QV 

W = ( It )v           

W = VIt               

या, U = VIt 

W = ( IR ) It          [ V = IR ] 

W = I2 Rt 

या, U = I2 Rt

                       

ऊष्मा का  SI मात्रक जूल ( J ) होता है | 

विधुत धारा से उत्पन्न ऊष्मा तीन बातों पर निर्भर करती है – 

 1. किसी निश्चित समय t में किसी निश्चित प्रतिरोध R वाले चालक में उत्पन्न हुई ऊष्मा का परिमाप U उसमे प्रवाहित होनेवाली विधुत- धारा I के वर्ग के समानुपाती होता है | 

    U α I

2. किसी निश्चित प्रबलता की विधुत धारा I द्वारा निश्चित समय t में उत्पन्न ऊष्मा का परिमाप चालक के प्रतिरोध के समानुपाती होता है | 

U α R 

3. किसी निश्चित प्रबलता की विधुत धारा भिन्न- भिन्न समय तक प्रवाहित करने पर उत्पन्न ऊष्मा का परिमाप , धारा प्रवाह के समय t के समानुपाती होता है | 

U α t 

∴U = I2 Rt

  • विधुत-शक्ति ( Electric Power ) – किसी विधुत-परिपथ में विधुत ऊर्जा के व्यय की दर को उस परिपथ की विधुत-शक्ति कहते है | 

जहाँ P = शक्ति 

W = कार्य 

t = समय 

या ,             W = I2 Rt 

P = I2 R

             

P = VI

                     

 

∴ W = Pt 

कार्य परिणाम में ऊष्मा के बराबर होता है | 

∴ U = Pt 

विघुत शक्ति का SI मात्रक वाट ( watt, W )या J/S होता है | 

विधुत ऊर्जा ( Electric Power ) – यदि किसी बिजली के बल्ब पर 220 v , 60 W लिखा हो, तो इसका अर्थ होता है कि यदि किसी मकान के विधुत-परिपथ में इस लगा दिया जाए तो यह 220 V के विभवांतर पर 60 W शक्ति का उपयोग करेगा | 

विधुत ऊर्जा के घरेलू तथा व्यवसायिक उपयोग के पठन के लिए एक दुसरे मात्रक का उपयोग होता है जिसे किलोवाट घंटा ( kWh ) कहते है | 

एक यूनिट = 1  kWh = 1 kW x 1h 

                                     = 1000 W x ( 60 x 60 ) sec 

                                      = 3600000 W sec 

                                      = 3.6 x 106   J  

विधुत-धारा के ऊष्मीय प्रभाव के उपयोग – विधुत धारा के ऊष्मी य प्रभाव का हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है | घरेलू उपकरणों जैसे – हीटर, विधुत इस्तरी, एम हीटर, टोस्टर आदि में विधुत-धारा के ऊष्मीय प्रभाव का ही उपयोग होता है | 

        इन उपस्करों के जिस भाग में विधुत-धारा प्रवाहित करने पर ऊष्मा उत्पान्न होती है उसे तापन अवयव कहा जाता है | तापन आवयव ऐसे पदार्थ से बने होने चाहिए | जिसकी – 

  1. प्रतिरोधकता बहुत अधिक हो | 
  2. गलनांक अत्यधिक उच्च हो | 

अधिकांश तापन अवयवों में निकेल ( 60 % ) , क्रोनियम ( 12 % ) , मैगनीज ( 2 % ) तथा लोहा ( 26 % ) के मिश्रधातु जिसे नाइक्रोम कहते है | 

  1. विधुत तापक ( Electric heater ) – विधुत तापकों में नाइक्रोम के तार की कुंडली विधुतरोधी पदार्थ के आधार पर फैली रहती है इस कुंडली में जब प्रबल धारा प्रवाहित होती है | तब यह गर्म होकर ऊष्मा उत्पन्न करती है | 
  2. विधुत बल ( Electric Bulb ) – विधुत बल्ब में ट्रंगस्टन के पहले तार की एक छोटी ऐंठी हुई कुंडली होती है जिसे तंतु या फिलामेंट कहते है | यह तंतु मोटे आधारी तारों द्वारा धातु के दो स्पर्श्क बटनों या स्टडों से जुड़ा होता है | तंतु एक काँच के बल्ब में बंद रहता है | बल्ब के अंदर निम्न दाब पर निष्क्रिय गैसों का मिश्रण प्राय: भरा रहता है | 
  3. सुरक्षा फ्यूज ( Electric Fuse ) – बिजली के उपस्करों तथा मकानों में बिजली की धारा ले जाने के लिए जो परिपथ बनाया जाता है | उसमें काँच की नली या चीनी मिट्टी या एक तरह के प्लैस्टिक से ढँके उपकरण होते है जिन्हें फ्यूज कहा जाता है |   

 

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