राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष सांस्कृतिक, सामाजिक तथा भौगोलिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की भावना जागृत करती है |
राष्ट्र क्या है ?
प्रसिद्ध फ़्रांसिसी दार्शनिक अन्सर्ट रेनन के अनुसार – राष्ट्र एक लम्बे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का चरम बिंदु होता है |
फ्रांस में राष्ट्रवाद –
राष्ट्रवाद का बीजारोपण यूरोप में पुनर्जागरण के काल से ही प्रारंभ हो चूका था | लेकिन 1789 ई० की प्रांसीसी क्रांति से इसका उन्नत रूप प्रकट हुआ | यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास मुख्यतः फ्रांस की राज्य क्रांति से हुआ |
फ्रांसीसी क्रांति
फ्रांस की क्रांति यूरोप के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है | फ्रांस की क्रांति के अनेक कारण थे परंतु सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि मध्यम वर्ग के लोग फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था से असंतुष्ट थे | उस समय सभी लेखक, विचारक, दार्शनिक तथा सभी नेता मध्यम वर्ग के थे | इसी वर्ग ने क्रांति का नेतृत्व किया | 1789 ई० से 1815 ई० तक शासन पर मध्यम वर्ग के लोगों का अधिकार रहा |
नेपोलियन बोनापार्ट का योगदान –
नेपोलियन ने 1789 ई० में प्रथम कॉन्सल का पद संभाला और तब से लेकर 1815 ई० तक यूरोपीय राजनीति पर छाया रहा |
नेपोलियन का जन्म 1769 ई० में कोर्सिका द्वीप में हुआ था सैनिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् उसकी नियुक्ति साधारण सैनिक के रूप में हुई | परंतु अपनी योग्यता के बल पर वह आगे बढ़ा और एक दिन 1804 में फ्रांस की राजगद्दी पर जा बैठा | उसने कई सुधार फ्रांस में किये |
नेपोलियन ने प्रशासन को चुस्त बनाने के उद्देश्य से प्रांतों तथा जिलों को फिर से संगठित किया | नेपोलियन ने सभी तरह के बिखरे कानून को संग्रहित कर एक ‘कोड’ की रचना की जिसे ‘नेपोलियन कोड’ के नाम से जाना जाता था |
1880 ई० में फ्रांस में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई | अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए नेपोलियन ने कई कदम उठाये | उसने बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की | 1840 में नेपोलियन को ‘सम्राट’ की उपाधि प्राप्त हुई | वह संपूर्ण यूरोप पर अपना शासन कायम करने की बात सोचने लगा |
नेपोलियन ने इटली में ‘ट्रांसपेंडेन गणराज्य’ एवं ‘सिसेल्पाइन गणराज्य’ तथा जर्मनी में ‘राइन संघ’ की स्थापना की | इस तरह उसने इटली एवं जर्मनी के भावी एकीकरण की नींव तैयार कर दी | पोलैंड में राष्ट्रवादी भावना जागृत करने के लिए ‘वारसा की ग्रैंड डची’ की स्थापना की |
1813 ई० में इंगलैंड, ऑस्ट्रिया और प्रशा ने मिलकर नेपोलियन को हराया तथा उसे बंदी बना कर एल्वा नामक द्वीप में रखा | परंतु मौका पाते ही नेपोलियन वहाँ से भागकर फ्रांस चला गया | 1815 ई० में वाटर लू में उसके शत्रुओं ने फिर उसे शिकस्त दिया तथा उसे पकड़ कर सेंट हेलेना द्वीप में रखा गया जहाँ 6 वर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो गई | इसके बाद फ्रांस की राजगद्दी फिर वहाँ के पुराने राजवंश को मिल गई |
वियना कांग्रेस सम्मलेन
नोपोलियन के पतन के पश्चात् यूरोप के विजयी राष्ट्र ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1815 में एकत्र हुए | इसका उद्देश्य यूरोप में पुन: उसी व्यवस्था को स्थापित करना था , जिसे नेपोलियन के युद्धों और विजयों ने अस्त-व्यस्त कर दिया था | ऑस्ट्रिया के चांसलर मटरनिक (Metternich) की पहल पर वियना में कांग्रेस सम्मलेन बुलाया गया | इस सम्मलेन में ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों ने भाग लिया |
मेटरनिक व्यवस्था – वियना सम्मलेन के बाद ऑस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिक ने यूरोपीय व्यवस्था स्थापित करने में मुख्य भूमिका निभाई | उसका मूलमंत्र था – “बिना परिवर्तन किये शासन करो |”
1830 की यूरोपीय क्रांतियाँ
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फ्रांस की जुलाई क्रांति – नेपोलियन के पतन के पश्चात् फ्रांस में पुन: वियना कांग्रेस के द्वारा बूर्बो राजवंश का शासन के द्वारा बूर्बो राजवंश का शासन स्थापित हुआ | 2 जून, 18`14 को लूई अठारहवां फ्रांस की गद्दी पर बैठा | गद्दी पर बैठते ही उसने एक संवैधानीय घोषणा पत्र निकाला जिसमें क्रांति द्वारा निकाला जिसमें क्रांति द्वारा प्रतिष्ठित सभी विधानों को मान लिया गया | 1824 ई० में उसकी मृत्यु हो गई | उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका राजगद्दी चार्ल्स दशम को मिला | वह एक स्वेच्छाचारी और निरंकुश शासक था | वह पुरानी व्यवस्था को फिर से फ्रांस में लागू करना चाहता था | वह कहा करता था कि “इंगलैंड में राजा की तरह शासन करने से तो मैं लकड़ी कटना अधिक पसंद करूंगा” राजा बनते ही उसने उदारवादियों का दमन करना शुरू कर दिया | जनता की स्वतंत्रता पर अनेक प्रतिबंध लगा दिये | फलत: चार्ल्स का विरोध बढ़ने लगा परंतु चार्ल्स ने अपने विरोध की परवाह नहीं की | 1830 में उसने पोलिग्नेक नामक एक कट्टर प्रतिक्रियावादी को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया | देखते-देखते विद्रोह की अग्नि सारे फ्रांस में फैल गई | 26 जुलाई, 1830 को रातभर पेरिस क्रांति के नारों से गुंजता रहा | रजा के सैनिक जनता के विद्रोह को नियंत्रित नहीं कर सके, अनेक सैनिक मारे गये | बहुत से सैनिक क्रांतिकारियों के साथ हो गये | 27-29 जुलाई तक जनता और राज सैनिकों में संघर्ष चलता रहा | ये तीन दिन ‘फ्रांस के इतिहास में गौरवशाली दिन’ कहलाते हैं | जनता ने पेरिस पर अधिकार प्राप्त कर लिये | राजा की पराजय हुई | अंत में दसवें चार्ल्स को 31 जुलाई को पेरिस छोड़कर इंगलैंड भागना पड़ा | 1830 ई० की क्रांति जुलाई में आरंभ हुई थी, इसलिए इसे जुलाई-क्रांति भी कहते हैं | इस क्रांति के बाद फ्रांस में बूर्बो-राजवंश का अंत हुआ | आर्लेयेंस वंश के लुई फिलिप को राजगद्दी सौंपी गई | मेटरनिक के अथानानुसार “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है |
ii . यूनान का स्वतंत्रता संग्राम
1453 में सुल्तान मोहम्मद द्वितीय ने पूर्वी रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करके उसकी राजधानी कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया और तुर्की साम्राज्य की स्थापना की | यूनान एक प्राचीन संस्कृति वाला देश था | यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार दर्शन, कला, चिकित्सा, विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धियाँ यूनानियों के लिए प्रेरणास्त्रोत थे | धीरे-धीरे तुर्की साम्राज्य कमजोर और पतनोंमुख होने लगा | इसकी दुर्बलता के कारण तुर्की, यूरोप का मरीज कहलाने लगा |
यूनान धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर के पहचान रखता था | फलत: तुर्की शासन से आजाद होने के लिए यूनानवासियों ने आंदोलन शुरू कर दिये | इंगलैंड का महान कवि लार्ड वायरन यूनानियों के स्वतंत्रता के लिए यूनान में शहीद हो गये |
काँसटेंटाइन रिगास नामक एक नेता ने गुप्त समाचारपत्रों को प्रकाशित कर यूनानियों में तुर्की से स्वतंत्र होने की भावना को जगाया | यूनान को ‘यूरोपीय सभ्यता का पालना’ बताया |
Note – 18वीं शताब्दी से तुर्की की शक्ति कमजोर पड़ने लगी | उसे ‘यूरोप का मरीज’ (Sick Man of Europe) कहा जाने लगा |
iii . यूनान में विद्रोह – जार निकोलस ने खुलकर यूनानियों का समर्थन किया | 1826 में ग्रेट ब्रिटेन और रूस में एक समझौता हुआ कि वे तुर्की-यूनान विवाद में मध्यस्थता करंगें | 1827 में ग्रेट ब्रिटेन और रूस ने पहली बार मिली-जुली सैनिक कार्यवाही करने का निर्णय लिया | तीनों देशों की संयुक्त नौसेवा नवरिनो (Navarino) की खाड़ी में भेजी गई | युद्ध में तुर्की बुरी तरह पराजित हुआ | रुसी सेना विजय हासिल कर कुस्तुनतुनिया की ओर बढ़ने लगा जिसे देखकर सुल्तान ने घबराकर 1829 में एड्रियानोपाल से संधि कर ली |
यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के परिणाम – 1829 में एड्रियानोपुल की संधि द्वारा सुल्तान ने यूनान में वंशानुगत राजशाही और स्वशासित यूनान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया | 1832 में संधि द्वारा स्वतंत्र राज्य घोषित किया गया | कुस्तुनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र की स्थापना हुई |
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फ्रांस की क्रांति- 1848 की क्रांति के बाद लुई फिलिप फ्रांस का सम्राट बना | लुई फिलिप एक उदारवादी शासक था परंतु बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था | लुई फिलिप ने पूँजीपति वर्ग को अपने साथ रखना पसंद किया लोग उसकी सरकार को ‘धनिकों की, धनिकों के लिए और धनिकों के द्वारा’ संचालित सरकार कहने लगे | लुई और उसकी सरकार की आलोचना होने लगी | सुध्रावादियों ने 22 फरवरी, 1848 ई० को पेरिस सुध्रावादी दल के नेता थियर्स के नेतृत्व में एक विशाल सुधार भोज का आयोजन किया | लुई ने इस पर रोक लगा दी | क्रोधित जनता ने राजमहल को घेर कर शवों के साथ प्रदर्शन किया | 24 फरवरी को लुई फिलिप ने गद्दी त्याग दी और इंगलैंड चला गया | तत्पश्चात् क्रांतिकारियों ने फ्रांस में द्व्र्तीय गणराज्य की स्थापना की | नेशनल एसेंबली ने गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष के ऊपर के सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया | नवंबर में द्वितीय गणराज्य का नया संविधान बना | गणतंत्रवादियों का नेता लामार्टिन एवं सुधारवादियों का नेता लुई ब्लाॅ था | शीघ्र ही दोनों में मतभेद आरंभ हो गया और 1852 में लुई नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बना |
इटली का एकीकरण
इटली के शासकगण अपने स्वार्थों की सिद्धि में लगे हुए थे | नेपोलियन बोनापार्ट प्रथम ने जब इटली पर अधिकार किया तो उसने इटली के छोटे-छोटे राज्यों का अंत कर दिया | उसने रिगाओ, फेर्रारा, बोलोना एवं मॉडेना को मिलाकर एक छोटे गणराज्य की स्थापना की जो ट्रांसपर्डिन का गणतंत्र कहलाया |
1815 के बाद का इटली – 1815 में नेपोलियन के पतन के बाद इटली कई राज्यों में बँट गया | वियना सम्मलेन ने इटली में कई महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन किये |
एकीकरण में सहायक तत्त्व – इटली में ‘कर्बोनरी’ नामक गुप्त संस्था की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य विदेशियों को इटली से बाहर करना था तथा संवैधानिक स्वतंत्रता प्राप्त करना था | कर्बोंनरी संस्था का सदस्य मेजिनी भी था | यह संगठन कई वर्षों तक इटली में सक्रिय रहा |
एकीकरण के प्रमुख नायक – इटली का एकीकरण तीन प्रमुख नायकों की वजह से 1870 से संभव हो सका | ये तीन प्रमुख नायक मेजिनी, काबूर तथा गैरीबाल्डी थे | मेजिनी को ‘मसीहा’ गैरीवाल्डी को ‘तलवार’ तथा कवूर को ‘राजनीतिज्ञ’ कहा जाता था |
मेजिनी – मेजिनी का जन्म 1805 में सार्डिनिया के जिनोआ नगर में हुआ था | मेजिनी युवावस्था से गुप्त राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था | मेजिनी के जीवन का एक ही धर्म था, इटली का एकीकरण |
1830-31 के विद्रोह में उसने भाग लिया और उसे कारावास हो गया | सन् 1831 ई० में मार्सेई में उसने यंग इटली नामक संस्था की स्थापना की, जिसने नवीन इटली के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की |
1834 में ‘यंग यूरोप’ नामक संस्था गठित कर यूरोप के अन्य देशों में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया | यंग यूरोप के सदस्य युवा थे | मेजिनी ने ‘जनार्दन, जनता तथा इटली’ का नारा बुलंद किया |
काउंट कवूर – काऊंट कवूर का जन्म 1819 में हुआ | 1850 में कवूर सार्डिनीय के राजा विक्टर इमैनुअल का कृषि, व्यापार तथा नौ-शक्ति का मंत्री बना | 1852 में वह प्रधानमंत्री बन गया |
उसने देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया और वाणिज्य व्यवस्था की उन्नति के लिए विशेष प्रबंध किया |
गैरीबाल्डी – गैरीबाल्डी का जन्म 1807 में हुआ था | वह पेशे से एक नाविक था | मेजिनी और कवूर के समान वह भी एक महान राष्ट्रवादी था | वह एक महान लड़ाकू था और तलवार के बल पर इटली का एकीकरण करना चाहता था | वह एक राष्ट्रप्रेमी था |
1833 ई० में वह मेजिनी के सहयोग से इटली में गणराज्य स्थापित करने के उद्देश्य से एक षडयंत्र कर रहा था | सरकार को इसका पता चल गया और वह कैद कर लिया गया, पर वह से कैद से भाग कर अमेरिका चला गया | 1848 में वह फिर इटली वापस आ गया |
इटली के एकीकरण का प्रथम चरण – कावूर का विश्वाश था कि इटली का एकीकरण पीडमौंट-सार्डिनीय के नेतृत्व में ही संभव है | कावूर को ये भी लगता था कि ऑस्ट्रिया के प्रभुत्व को समात्प करके ही इटली का एकीकरण हो सकता है | 1854 ई० में क्रीमिया युद्ध छिड़ गया | युद्ध के बाद पेरिस में शांति सम्मलेन में कावूर ने इटली की दुर्दशा के लिए ऑस्ट्रिया को जिम्मेदार ठहराया | कावूर का विश्वास था कि क्रीमिया के क्रीमिया के कीचड़ में ही नवीन इटली का निर्माण होगा |
एकीकरण का दूसरा चरण – इटली के एकीकरण के दूसरा चरण गैरीबाल्डी द्वारा पूरा हुआ | उसने युवकों की एक सशस्त्र दुकड़ी गठित की जो लाल कुर्ती (Red shirts) कहलाते थे | उसने इनकी सहायता से 1860 में नेपल्स के राजा को पराजित किया | उसके बाद सिसली की राजधानी पोर्लेमा पर विजय हासिल किया | गैरीबाल्डी ने यहाँ गणतंत्र की स्थापना की तथा विक्टर इमैनुअल ने प्रतिनिधि के रूप में सत्ता संभाली |
1862 ई० में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण करने की योजना बनायी | दक्षिण इटली के जीते हुए राज्य को बिना किसी संधि के विक्टर इमैनुअल को सौंप दिया | विक्टर इमैनुअल ने गैरीबाल्डी की दक्षिणी क्षेत्र के शासक बनाने का प्रस्ताव दिया किन्तु उसने इसे अस्वीकार कर दिया तथा अपनी साडी संपत्ति राष्ट्र के नाम समर्पित कर साधारण किसान की भाँती जीवन जीने लगा | विक्टर इमैनुअल को संयुक्त इटली का राजा घोषित किया गया | पिदमौंट-सार्डिनिया का नाम बदल कर इटली राज्य कर दिया गया |
इटली के एकीकरण का तीसरा और अंतिम चरण –
वेनेशिय और रोम पर अब भी क्रमश: ऑस्ट्रिया और पोप का राज तथा | शेष इटली का एकीकरण विक्टर इमैनुअल ने किया | प्रशा ने 1870 में रोम पर आक्रमण कर दिया | फ्रांस ने रोम से अपनी सेना बुला ली | इसका फायदा उठाकर इमैनुअल ने रोम पर आक्रमण का उसपर अधिकार प्राप्त कर लिया | रोम को स्वतंत्र और संयुक्त इटली की राजधानी बनाया गया |
जर्मनी का एकीकरण
जर्मनी भी इटली की भाँती 19वीं शताब्दी के आरंभ में एक भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र था | जर्मनी 300 छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ | था |
जर्मन राष्ट्रवाद का उदय – जर्मन एकीकरण की पृष्ठभूमि के निर्माण का श्रेय नेपोलियन बोनापार्ट को दिया जाता है | क्योंकि उसने 1860 ई० में जर्मन प्रदेशों को जीतकर राइन राज्य संघ का निर्माण किया था और यहीं से जर्मन लोगों में राष्ट्रवाद का उदय हुआ |
जर्मनी के एकीकरण में सहायक तत्त्व –
फैंकफर्ट संसद – 1848 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने जर्मन राष्ट्रवाद को भड़का दिया | दूसरे और मेटरनिक युग का अंत हो चुका था | जर्मन राष्ट्रवादियों ने पुराने संसद की सभा को फ्रैंकफर्ट में बुलाया गया जहाँ यह निर्णय हुआ कि प्रशा का शासक फ्रेडरिक विलियम जर्मन राष्ट्र का नेतृत्व करेगा | समस्त जर्मन राज्यों को इकिकृत किया जायेगा तथा लोकतांत्रिक, वैधानिक राजत्व के शासन सिद्धांत को अपनाया जायेगा | परंतु फ्रेडरिक ने उस व्यवस्था को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वह ऑस्ट्रियाई संघर्ष से बचना चाहता था | कुछ दक्षिणी राज्यों ने भी प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया फलत: एसेंबली भंग हो गई |
बिस्मार्क (जर्मनी एकीकरण में योगदान) – ऑटो वॉन विस्मार्क का जन्म 1812 में ब्रैडनबर्ग में हुआ था | वह प्रख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ था | 1862 में वह प्रशा का प्रधानमंत्री बना |
विस्मार्क जर्मन एकीकरण के लिए सैन्यशक्तियों के महत्त्व को समझता था | अत: उसने रक्त और तलवार (Blood and Iron) की नीति अपनाई अंत में, बिस्मार्क को जर्मनी का सम्राट बनाने में सफलता मिली | इसके लिए उसे तीन युद्ध लड़ने पड़े |
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डेनमार्क के साथ युद्ध – बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलाकर 1864 ई० में शेल्सविग और हाॅल्सटीन राज्यों के मुद्दे को लेकर डेनमार्क पर आक्रमण किया | जैसे शत्रु को उसने पक्ष में लेकर डेनमार्क को पराजित कर शेल्सविग पर अधिकार प्राप्त किया तथा हाॅल्सटीन ऑस्ट्रिया को मिला |
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ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध – 18 65 ई० में गेस्टीन की विराम संधि द्वारा अस्थायी व्यवस्था निश्चित हुई | बिस्मार्क ने अपनी कूटनीति से फ्रांस, रूस इंगलैंड को अपनी ओर मिला लिया | 1866 में ऑस्ट्रो-प्रशा युद्ध अथवा सेडोवा युद्ध हुआ | जिसमें ऑस्ट्रिया पराजित हुआ | 23 अगस्त, 1866 के प्राग संधि के द्वारा जर्मन महासंघ भंग कर दिया गया | इसके स्थान पर 22 राज्यों का एक एक उत्तरी जर्मन संघ स्थापित हुआ | जिसका प्रधान प्रशा का सम्राट बना |
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फ्रांस के साथ युद्ध (1870-71) – प्रशा ने अपनी सैन्यशक्ति मजबूत कर फ्रांस को युद्ध के लिए भड़काया | 19 जून, 1870 को फ्रांस के शासक नेपोलियन ने प्रशा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी | सिडा के युद्ध में फ्रांसीसियों की जबर्दस्त हार हुई | महासंघ में मिल गया | 1871 में फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दक्षिणी राज्य उत्तरी जर्मन महासंघ में मिल गया | इस प्रकार जर्मनी का एकीकरण हो गया | 18 जनवरी, 1871 को वर्साय के शीशमहल में विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया | उसे कैसर (caesar) की उपाधि से विभूषित किया गया | इस प्रकार जर्मनी का एकीकरण सैन्यशक्ति के बल पर हुआ |
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