आपदा प्रबंधन
आपदाएँ चाहे जिस प्रकार की हों, उनसे धन-जन एवं संसाधनों की अपार क्षति होती है | इस संभावित अषार क्षति को कम करने का उपाय ही आपदा प्रबंधन कहलाता है | आपदा प्रबंधन के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं –
- आपदा पूर्व प्रबंधन |
- आपदा के समय प्रबंधन |
- आपदा के बाद प्रबंधन |
1. आपदा पूर्व प्रबंधन – आपदा आने के पूर्व उसके कारणों का पता लगाना और संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना ही आपदा पूर्व प्रबंधन कहलाता है | वैश्विक स्तर पर अनेक संस्थाएँ प्राकृतिक आपदाओं और संकटों का अध्ययन कर रही हैं |
आपदा पूर्व प्रबंधन के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों और तैयारियों का विशेष महत्त्व है –
- विद्यालयों और ग्राम समुदायों के द्वारा स्थानीय जरूरतों के अनुसार प्रबंधन योजनाओं का निर्माण |
- इसे शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल कर विद्यालयों में पढ़ाई एवं संचार तंत्र के माध्यमो से जागरूकता पैदा करना |
- आपदा की सूचन / चेतावनी देने प्रणाली विकसित करना |
- स्थानीय स्तर पर श्रम एवं सामग्री का अध्ययन कर सूची तैयार रखना |
- असुरक्षित स्थानों की पहचान करना, जो भूकंप एवं बाढ़ से जल्दी प्रभावित हो सकते हैं |
- सहायता समूह बनाकर उसमें परस्पर सद्-भाव और सहकारिता की भावना पैदा करना |
- सहत कार्य के उपयुक्त स्थान की व्यवस्था करना |
2. आपदा के समय प्रबंधन – किसी आपदा के घटित होने की स्थिति में स्थानीय मदद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसकी पहुँच शीघ्र होती है |
- आपदा से प्रभावित लोगों को चिह्नित कर यथासंभव बाहर निकालना और इसके लिए उपयुक्त राहत ( बचाव ) दल तैयार करना |
- उपयुक्त सुरक्षित स्थानों की पहचान कर राहत शिविरों का निर्माण करना |
- आपात्तकालीन नियंत्रण कक्ष की स्थापना करना |
- राहत शिविरों में चिकित्सा सुविधा, शौचालय इत्यादि का प्रबंध करना |
- अत्यावश्यक संसाधनों का प्रबंध करना, जैसे – बच्चों के लिए दूध, ईंधन के लिए लकड़ी आदि |
- स्थायी शिविर के निर्माण होने तक अस्थायी शिविर या आवास की व्यवस्था करना |
3. आपदा के पश्चात् प्रबंधन – किसी भी आपदा के घटित होने के पश्चात् धन एवं जन की अपार क्षति होती है तथा प्रभावित क्षेत्र आर्थिक विकास के दौड़ में पिछड़ जाते हैं | आपदा के पश्चात् प्रबंधन में निम्न कार्यों को प्राथमिकता के साथ करना चाहिए –
- सड़क एवं संचार सेवाओं में आने वाले अवरोधों को दूर करना |
- प्रभावित व्यक्ति के लिए तत्काल अस्थायी शिविर या आवास का प्रबंध करना |
- अतिशीघ्र पुनर्वास का प्रयास करना तथा जीवन-स्तर को सामान्य बनाने पर विशेष जोर देना |
- बच्चों की शिक्षा में आए व्यवधानों को शीघ्र दूर करना एवं मजदूर वर्ग के लिए रोजगार की सुविधा उपलब्ध करना |
- आवासों के पुनर्निर्माण के समय सुरक्षा के उपायों पर ध्यान देना |
भारत के प्रधानमंत्री सबसे बड़े आपदा प्रबंधनक होते हैं –
जिनके पास विशेष आपदा कोष एवं प्रधानमंत्री रक्षा कोष रहता है | आवश्यकतानुसार किसी भी प्रशासनीय अधिकारी को विशिष्ट कार्य के लिए तत्काल नियुक्त किया जा सकता है | राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन की कुछ योजनाएँ अग्रलिखित हैं –
- संसद के बजट में प्रत्येक वर्ष आपदा कोष के लिए ‘आकस्मिक निधि’ का प्रबंध होता है |
- प्रधानमंत्री राहत कोष का प्रावधान किया गया है, जिसमें कोई भी व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक कुछ आर्थिक मदद दे सकता है | यह राशि आपदा के समय काम आती है |
- स्कूलों में शिक्षा के अतिरिक्त तथा अनेंक प्रशिक्षण केन्द्रों पर भी आपदा से निपटने का प्रशिक्षण कार्यक्रम दिया जाता है |
- पंचायतों के स्तर पर भी इसके प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं और संचार माध्यमों से भी आपदा संबंधी जानकारी दी जाती है |
- आतंकवाद और साम्प्रदायिक दंगे मानव जनित आपदाओं में से एक है, इस पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कठोर कानूनी नियमों का प्रावधान किया गया है |
- आपदा प्रबंधन में स्थानीय लोगों की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इनकी पहुँच प्रभावित क्षेत्रों में सुलभ एवं तीव्र गति ( त्वरित ) से होती है | इसके कारण राहत कार्य बहुत आसान हो जाता है |
आपदा आ जाने के बाद आपदा प्रबंधन के कार्य में खोज एवं बचाव कार्य की हमेशा महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है | यह खोज एवं बचाव कार्य दल की शक्ति, क्षमता और कार्य कुशलता पर निर्भर करता है जिससे अधिक से अधिक लोगों की जान बचाई जाए |
खोज एवं बचाव दल का मुख्य उद्देश्य –
- क्षतिग्रस्त इमारतों / भवनों के मलबे में फँसे जीवित लोगों को बचाना |
- फँसे हुए जीवित व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार करना एवं उन्हें चिकिस्ता के लिए भेजना |
- खतरनाक ध्वस्त इमारतों / भवनों को अस्थायी रूप से सहारा देने एवं उसका बचाव करने के लिए तुरंत आवश्यक कार्रवाई करना |
- मृतकों के शवों की सुपुर्दगी एवं निपटारे का काम करना |
- स्थानीय समुदाय के लोगों को अपने बचाव के लिए सामग्रियों का प्रयोग करने का प्रशिक्षण, प्रदर्शन एवं जानकारी देना |
खोज एवं बचाव दल का कर्तव्य –
किसी भी बचाव दल का पहला काम यह होता है कि वह प्रभावित इलाके का अच्छी तहर से सर्वेक्षण या दौरा कर ले ताकि समय की बचत हो सके और इससे प्रभावी ढंग से जवाबी कार्यवाही करने में मदद मिल सके |
क्षेत्र का सर्वेक्षण करते समय निम्नलिखित तीन बातों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत होती है –
- घटनाओं पर प्रत्यक्ष नजर रखें और स्वयं पूरी जाँच करें |
- सूचना के सभी स्रोतों, समुदाय, सरकारी अबिलेख और मिडिया रिपोर्टों पर ध्यान दें |
- खतरों की सच्चाई और जवाबी कार्रवाई करने की अपनी स्वयं क्षमता के बारे में गंभीरतापूर्वक विश्लेष्ण करें |
खोज एवं बचाव कार्यों के दौरान क्या करें –
खोज एवं बचाव कार्यों के दौरान निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान केने की जरुरत होती हैं –
- शांत रहें |
- बचाव कार्य आरंभ करने से पूर्व खतरे का पूरी तरह से आकलन करें |
- क्षतिग्रस्त सीढ़ियों पर यथासंभव दीवार के पास ही रहें |
- घायल व्यक्ति के पास से मलवा हटाते समय सुरक्षा का ध्यान रखें |
- घायल व्यक्ति की उचित जाँच करें |
- प्राथमिक उपचार करें, जाँच करें और साँस लेने में आ रही कठिनाई को दूर करें |
- घायल व्यक्ति को लाते-ले जाते समय तेजधार वाले औजारों का प्रयोग सावधानी से करें |
- वस्त्रों को ढीला करके मरीज को जमीन पर लेटा दें और उसे गरमाहट देते रहें |
- यदि आवश्यक हो, तो कृत्रिम श्वास दे और रक्तश्राव को नियंत्रित करें |
खोज एवं बचाव कार्यों के दौरान क्या न करें –
- भयभीत न हों |
- बचाव कार्य तब तक शुरू न करें जब तक आपके पास समुचित सूचना उपलब्ध न हो |
- मलबे से बिना सोंचे समझे लकड़ी न खींचे, ऐसा करने से इमारत और ढह सकती है |
- जब तक किसी घायल व्यक्ति का जीवन खतरे में न हो, उसे वहाँ से बेवजह न हटाएँ |
- अधिक चोटग्रस्त होने या विपरीत हालातों से बचने का प्रयास करें |
- जब तक ऐसा करना बिल्कुल जरुरी न हो, मलबे अथवा क्षतिग्रस्त ढाँचे के ऊपर न चलें |
- बिजली वाले तार को न छुएँ |
- सुरक्षा उपायों की उपेक्षा न करें |
किसी भवन / इमारत में प्रवेश करने से पूर्व –
- भवन / इमारत के निर्माण की स्थिति और क्षतिग्रस्त हिस्से को ध्यान से देखें |
- यह देख लेन कि क्या दीवारों को किसी सहारे की जरुरत है |
- कमजोर भवनों से उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों से सावधान रहें |
क्षतिग्रस्त इमारत में प्रवेश करते समय –
- हेल्मेट पहनें |
- जोड़ा बनाकर काम करें, अकेले न जाएँ |
- संभावित ध्वनियों को ध्यान से सुनें |
- एक-दुसरे को पुकारते रहें |
- ऐसी क्षतिग्रस्त दोवारों या अवरुद्ध दरवाजों से छेड़छाड़ न करें जो टूटे हुए हों और बाहर की और निकले हो |
- सभी खुले तारों को बजली वाला तार समझें |
क्षतिग्रस्त भवन के अन्दर चलते-फिरते समय –
- आग न सुलगाएँ |
- दीवारों के पास रहें |
- चलने-फिरने के दौरान सावधान रहें |
- क्षतिग्रस्त ढह गए हिस्सों से बाहर निकल रही किसी भी चीज को न खींचें |
बाढ़ की स्थिति में आकस्मिक प्रबंधन –
बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके घटित होने से जान-माल एवं पशुओं को भारी क्षति पहुँचाती है | बाढ़ आने की अवस्था में आकस्मिक प्रबंधन की नितान्त आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार है –
- बाढ़ आने की सिथित में पहली प्राथमिकता जान-माल एवं मवेशी को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने की होती है |
- व्यक्तियों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के बाढ़ भोजन एवं पेयजल की समुचित व्यवस्था जरुरी है |
- छोटे / नवजात बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था भी आवश्यक है |
- बाढ़ के पश्चात् अकसर महामारी या भयंकर बीमारी फैलने की संभावना होती है | अत: उससे बचने के लिए गर्म जल एवं गर्म भोजन की व्यवस्था भी आवश्यक है |
- मवेशियों / पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था उतनी ही जरुरु है जितना मनुष्य के लिए भोजन |
- महामारी / भयंकर बीमारी उत्पन्न होने की स्थिति में जीवन रक्षक औषधियों का प्रबंधन भी अत्यावश्यक होता है |
भूकंप की स्थिति में आकस्मिक प्रबंधन
भूकंप की स्थिति में सभी आकस्मिक प्रबंधन की नितान्त आवश्यकता होती है, जो निम्नलिखित हैं –
- भूकंप के बाद बचे हुए विस्थापित लोगों को राहत शिविर में ले जाना एवं उसे सभी प्रकार की आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना |
- वैसे लोगों को जो भूकंप के बाद अभी भी मलबे में दबे हुए हैं, उन्हें मलबे से बाहर निकालना |
- भूकंप के पश्चात् मृतक व्यक्तियों एवं पशुओं को समुचित स्थानों पर जमीन के अन्दर दफना देना या धार्मिक विश्वास के अनुसार अंतिम संस्कार करना | ऐसा नहीं करने से भयंकर बीमारी फैलने की संभावना रहती है |
- भूकंप के बाद मलबा में दबे हुए लोग यदि जीवित हैं तो उन्हें तुरंत मलबे से बाहर निकालने की जरुरत है |
- भूकंप के बाढ़ शुरूआती दौर में खोजी कुत्तों के सुँघने के आधार पर जीवित प्राणियों के होने की संभावना का पता चलता है |
आग लगाने की स्थिति में आकस्मिक प्रबंधन के अंतर्गत निम्नलिखित उत्तरदायित्व महत्त्वपूर्ण हैं –
- आग में फँसे लोगों को बाहर निकालना |
- जले और घायल लोगों को प्राथमिक उपचार देकर अस्पताल पहुँचाना | प्राथमिक उपचार में ठंढा पानी डाल कर, बर्फ से सहला कर और बरनोल या मलहम का लेप लगाकर जलन को कम किया जाता है |
- बालू, मिट्टी और पानी से आग के फैलाव को रोकना, अग्निशामक दल को बुलाना, आस-पास के फूस और पुवाल को दूर फ़ेंक देना और यदि विधुत शार्ट सिर्किट के कारण आग लगी हो तो बिजली की लाइन को बिच्छेदित कर देना इत्यादि उपाय आवश्यक है |
- यदि कोई व्यक्ति बहुमंजिले मकान में फंसा हो तो हेलमेट या अग्निरोधी जैकेट पहनकर उसे बाहर से सीढ़ी लगाकर निकालना चाहिए |
राहत कर्मियों के लिए प्राथमिक उपकरण और उपचार –
कुछ उपकरण राहतकर्मियों के पास व्यक्तिगत रूप से रहना चाहिए और कुछ बचाव दल के पास | ये उपकरण इस प्रकार है –
निजी उपकरण
टॉर्च, सीटी, गम-बूट, हेलमेट, लाइफ जैकेट |
सामूहित उपकरण
सीढ़ी, रस्सी, घिरनी, हथौड़ा, स्ट्रेचर, कटाने के छोटे-छोटे हथियार, प्राथमिक उपचार बॉक्स |
प्राथमिक उपचार के सामान
रुई, साबुन, एण्टासिड, थर्मामीटर, कीटनाशक दवा, कीटाणु-रहित पट्टी, क्रेपबैं डेज, दस्ताना, ओ० आर० एस० पैकेट, चिपकाने वाली टेप |
आकस्मिक प्रबंधन के घटक –
किसी भी प्राकृतिक आपदा के घटित होने के पश्चात् आकस्मिक प्रबंधन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | आकस्मिक प्रबंधन के तीन प्रमुख घटक इस प्रकार हैं –
- स्थानीय प्रशासन |
- स्वयंसेवी संगठन |
- स्थानीय ( गाँव / मुहल्ले ) लोग |
बिहार सरकार की जीवनरक्षक आकस्मिक प्रबंधन –
आपदकाल में सरकार का दायित्व व्यक्तिगत दायित्व से अधिक है | इसके लिए पहले से ही सरकार को कुछ तैयारियाँ करनी होती हैं | बिहार सरकार ने ऐसी कुछ तैयारियों का प्रस्ताव रखा है, जो निम्नलिखित हैं –
- विभिन्न प्रकार की आपदाओं के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ अनुक्रिया दल ( Specialist Response Team ) तैयार की जाएगी \
- बिहार की राजधानी पटना में राष्ट्रीय आपदा राहत बल ( NDRE ) की एक बटालियन रखी जाएगी || इसके लिए 74.47 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जा चूका है | बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, सहरसा और दरभंगा में भी इसी प्रकार के राहत बल बनाए जायेंगे | लगभग 2000 पूर्व-सौनिकों ( सैप ) की नियुक्ति कर प्रशिक्षण दिया जा रहा है | गृह रक्षा वाहिनी की एक बटालियन को भी इसके लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है |
- प्रत्येक प्रखंड में एक अग्निशामक दल रखने की व्यवस्था का निर्णय लिया गया है |
- भूकंप और अग्निकांड केंद्र बचाव के नोडल अभिकरण होंगे, अत: उन्हें खोज और राहत के उपकरण भी उपलब्ध कराए जाएँगे |
- 28 बाढ़ग्रस्त जिलों में प्रत्येक को 10 मोटरवोट उपलब्ध करवाए जाएँगे |
3. आपदाकाल में वैकल्पिक संचार व्यवस्था
किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा अथवा आपात-स्थिति के दौरान संचार-संपर्क पूरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं | इसलिए, प्रभावित लोगों को पर्याप्त सहायता पहुँचाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रशासन के पास पूरे समय काम करने वाला संचार-संपर्क होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है |
वैकल्पिक संचार-साधन
किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के घटित होने के पश्चात्, प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं पुनर्वास कार्यों को सफलतापूर्वक करने में वैकल्पिक संचार-साधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | इसमें रेडियो, एमेच्योर ( हेम ) रेडियो एवं उपग्रह आधारित संचार-प्रणालियाँ प्रमुख हैं |
रेडियो संचार
जहाँ सामान्य टेलीफोन और मोबाइल फोन नेटवर्क अवरुद्ध हो गया हो अथवा आपदा प्रभावित क्षेत्र में ऐसी सेवाएँ कभी उपलब्ध नहीं हों तो यह जरुरी हो जाता है कि उस स्थल से कम और ज्यादा दूरी पर तत्काल संदेश भेजने के लिए कोई अन्य विश्वसनीय साधन की खोज की जाये |
रेडियो तरंग एक चुम्बकीय विधुत् तरंग होती है जिसका प्रसार एक एंटीना द्वारा किया जाता है |
एमेच्योर अथवा हेम रेडियो ( HAM Radio ) –
बड़ी आपदाओं के समय या अनुभव किया गया कि जहाँ संचार के अन्य साधन काम नहीं कर पाए, वहाँ एमेच्योर या हेम रेडियो ने सफलतापूर्वक काम किया है |
उपग्रह आधारित संचार प्रणालियाँ
उपग्रह आधारित संचार प्रणालियों का अर्थ है ऐसी संचार प्रणालियाँ जिनका उपयोग पृथ्वी पर रह रहे लोगों द्वारा किया जा सके लेकिन इस कार्य के लिए अंतरिक्ष में कोई उपकरण अर्थात् कोई उपग्रह स्थापित किया गया है |
‘ट्रांसपोंडर’ संचार उपग्रह का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है | ट्रांसपोंडर एक रेडियो है जो एक आवृत्ति ( Frequency ) पर बातचीत को पकड़ता है |
‘उपग्रह फोन’ आपदा प्रबंधन में सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाने वाला साधन है | ऐसे फ़ोनों के लिए उपग्रह टेलीफोन एक्सचेंज के रूप में कार्य करता है | ये फोन बहुत ही विश्वसनीय आवाज और डाटा संचार प्रदान करते हैं और इन्हें सुविधापूर्वक ( आवश्यकतानुसार ) कहीं भी ले जाया जा सकता है |
भूकंप
भूकंप की गणना एक अत्यंत विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में की जाती है | भूकंप के कारण जमीन में अचानक हलचल होने से कई क्षतिकारक प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं, जो इस प्रकार हैं –
- जमीन का हिलना, अर्थात् जमीन के अन्दर से गुजर रही कम्पायमान तरंगों से जमीन का आगे-पीछे हिलना |
- मिट्टी का क्षय, अर्थात् जमीन काँपने से मिट्टी का तरल होना और भूस्खलन होना |
- सतह में दरारें आना जैसे किसी क्षेत्र का दरकना, खिसकना और बैठ जाना |
- ज्वारीय तरंग ( सुनामी ) अर्थात् पानी की सतह पर विशाल लहरें उठना जिनसे तटवर्ती क्षेत्रों में काफी नुकसान हो सकता है |
भवनों / इमारतों की आकृति – भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा के लिए सुरक्षित आवासीय या सार्वजनिक भवनों का बहुत महत्त्व होता है अर्थात् सुरक्षित आवास निर्माण कर भीषण क्षति को अपेक्षाकृत कम किया जा सकता है | इसके लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है –
- इमारतों / भवनों का नक्शा साधारण तथा आयताकार होना चाहिए |
- लम्बी दीवारों को सहारा देने के लिए ईट-पत्थर या कंक्रीट के कॉलम होने चाहिए |
- जहाँ तक हो सके T, L, U और X आकार के नक्शों वाली बड़ी इमारतों को उपयुक्त स्थानों पर अलग-अलग खण्डों में बाँटकर आयताकार खण्ड बना लेना चाहिए |
- इमारतों की नींव भूकंप-अवरोधी एवं मजबूत होनी चाहिए |
- निर्माण के पूर्व स्थान-विशेष की मिट्टी का वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए | तत्पश्च्त् नींव तथा निर्माण कार्य होना चाहिए |
- दरवाजे तथा खिड़कियों की स्थिति भूकंप अवरोधी होनी चाहिए |
सुनामी
सुनामी को रोकना असम्भव है, किन्तु कुछ उपायों के द्वारा इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है | ये उपाय निम्नलिखित हैं –
- सुनामी लहरों के क्षेत्र में तट से बहुत दूर हटकर ऊँचे स्थानों पर घर बनाना चाहिए |
- समुद्र तट के समीप मजबूत पेड़, मैंग्रोव झाड़ियाँ इत्यादि कतारों में लगाना चाहिए |
- नगरों और पत्तनों को बचाने के लिए कंकरीट तटबंध का निर्माण होना चाहिए |
- मकानों को भूकंप रोधी होना चाहिए |
- सुनामी रेकार्डिंग सेंटर बनाकर सुनामी मीटर द्वारा समुद्रतल की हलचल का सतत् पता लगाना चाहिए |
- उपग्रहों द्वारा सुनामी की चेतावनी प्राप्त कर आम नागरिकों तक तुरंत पहुँचाना चाहिए |
संकेत एवं चेतावनियाँ – भूस्खलन की घटना का निम्नलिखित संकेंतों को देखकर पता लगाया जा सकता है –
- खिड़की या दरवाजे पहली बार अटकने या जकड़ने लगे हों |
- पलास्टर, टाइल, ईंट अथवा नींव में नई दरारें दिखने लगी हों |
- बाहरी दीवारें, सीढ़ियाँ या सस्ते इमारत से उखाड़ने लगे हो |
- गलियों अथवा सड़कों जैसी पक्की जगहों या जमीन पर दरारें धीरे-धीरे बढ़कर चौड़ी हो रही हो |
- उपयोगिता वाली भूमिगत लाइनें टूट रही हो |
- ढलान के तल पर पानी या जमीन उभरती दिखाई देने लगी हो |
संरक्षण के उपाय – भूस्खलन और विनाशकारी कटाव की संभावनाओं को काफी हद तक रोका या कम किया जा सकता है | इसके लिए कुछ विशेष बातों पर ध्यान देने की जरूरत है, जो इस प्रकार हैं –
- असुरक्षित क्षेत्रों का संरक्षण करें |
- बहते हुए पानी को संग्रहित करें |
- ढलानों को स्थिर बनाएँ |
- ढालू जमीन पर निर्माण कार्य नहीं करें |
बाढ़ की स्थिति में इमारतों को नुकसान से बचाने के उपाय – बाढ़ आने की स्थिति में इमारतों काफी क्षति पहुँचाती है | उस क्षति को कम करने के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है –
- नदी किसानों पर नदी की और ढलानों पर तथा संकरी घाटियों में रिहईश न करना |
- समुद्र तट / नदी तट से कम-से-कम 250 मीटर दूर मकान बनाना |
- बाढ़ की संभावना वाले सभी क्षेत्रों में जल-निकासी की उपयुक्त व्यवस्था करना ताकि पानी को शीघ्र निकाला जा सके और उसे जमा होने से रोका जा सके |
- बाढ़ के ज्ञात उच्च स्तर से ऊपर के ‘प्लिन्थ लेवल’ पर इमारत का निर्माण करना |
- पूरा गाँव अथवा पूरी बस्ती को बाढ़ के स्तर से भी ऊँची जगह पर बनाना |
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