जल के स्रोत –
पृथ्वी के 71% भाग पर जल और 29% भाग पर स्थल पाये जाते हैं | जल की अधिक उपस्थिति के कारण पृथ्वी को नीला ग्रह (Blue Planet) कहा गया है | विश्व के कुल जल का 96.5% भाग महासागरों में पाया जाता है जो खरा होता है | पीने लायक मीठा पानी (मृदुजल)मात्र 2.5% है, जिसका 70% हिमक्षेत्र एवं हिमनदी में मिलता है | पृथ्वी पर जल-स्रोत विभिन्न रूपों में पाये जाते हैं, यथा-भूपृष्ठीय, भूमिगत, वायुमंडलीय और महासागरीय | भारत में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 120 से० मी० है |
धरातल पर जल झीलों, तालाबों, नदियों, और जलाशयों में पाया जाता है | नदियाँ धरातलीय जल के प्रमुख स्रोत हैं | जल विज्ञान के आधार पर भारत की नदियों को दो वर्गों में बाँटा गया है |
- हिमालय की नदियाँ – हिमालय की नदियों का उदगम हिम क्षेत्र तथा हिमानियाँ हैं | अतः हिमालय की अधिकांश नदियाँ बारहमासी (सदानीरा) हैं |
- प्रायद्वीपीय नदियाँ – प्रायद्वीपीय नदियों का उद्-गम क्षेत्र पर मुख्यत: पठारी क्षेत्र हैं | ये नदियाँ पूरी तरह मानसूनी वर्षा पर निर्भर है | अतः इन नदियों को मौसमी नदी भी कहा जाता है |
जल संसाधन का वितरण –
दक्षिणी गोलार्द्ध में जल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसके कारण इसे ‘जल गोलार्द्ध’ की संज्ञा दी गई है | भारत में विश्व की कुल आबादी का 17.5 प्रतिशित निवास करती है, जबकि इस आबादी के लिए विश्व का लगभग 4% स्वच्छ जल ही उपलब्ध है |
बहुउद्देशीय नदी-परियोजनाएँ –
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत आत्मनिर्भर बनने तथा लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए योजनाबद्ध आर्थिक गतिविधियों में लगा हुआ है | इसके अंतर्गत नदी-घाटी परियोजनाएँ विकसित की गई हैं | इनमें से कुछ बहुद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाएँ हैं | इन परियोजनाओं का उद्देश्य है समन्वित रूप से नदी-घाटियों से जुडी विभिन्न समस्याओं को हल करना |
भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बंधों को “भारत का मंदिर” कहा था और उनका विचार था कि ये परियोजनाएँ देश में कृषि उद्योग, ग्रामीण अर्थव्यवस्था इत्यादि को समन्वित रूप से विकसित कर सकेंगी |
स्वंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में कई बहुउद्देशीय योजनाएँ बनाई गई, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –
- दामोदर घाटी परियोजना – यह स्वतंत्र भारत की पहला नदी घाटी परियोंजना है, जिसके अंतर्गत झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में दामोदर तथा इसकी सहायक नदियों पर अनेकों बाँध बनाए गए हैं |
- भाखड़ा-नंगल परियोजना – भारत का सबसे ऊँचा भाखड़ा बाँध (226 मीटर) हिमाचल प्रदेश की सतलज नदी पर 1948 ई० में बनाया गया | इसके पीछे एक विशाल जलाशय गोविन्द सागर झील है | पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश दिल्ली इत्यादि इससे लाभान्वित राज्य हैं |
- हीराकुंड परियोजना – इसके अंतर्गत उड़ीसा में महानदी पर विश्व का सबसे लम्बा (4801 मीटर) बाँध बनाया गया है |
- कोसी परियोजना – यह बिहार और नेपाल की संयुक्त परियोजना है, जिसके अंतर्गत कोसी नदी की भंयकर बाढ़ से बचने और विधुत उत्पादन के लिए इस नदी पर नेपाल के हनुमान नगर में बाँध बनाया गया है |
- तुंगभद्रा परियोजना – यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी परियोजना है, जिसके अंतर्गत कर्नाटक की तुंगभद्रा नदी पर बाँध बनाया गया है | इससे कर्नाटक और आंध्रप्रदेश को लाभ होता है |
- चम्बल घाटी परियोजना – यह राजस्थान और मध्य प्रदेश की संयुक्त परियोजना है जिसके अंतर्गत राजस्थान में चम्बल नदी पर राणा प्रतापसागर बाँध, गाँधी सागर बाँध और जवाहर सागर बाँध बनाए गए हैं |
- नागार्जुन सागर परियोजना – यह आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी पर स्थित है |
- इंदिरा गाँधी नहर परियोजना – यह राजस्थान की एक महत्वकांक्षी परियोजना है, जिसके अंतर्गत शुष्क भूमि को कृषियोग्य बनाने के लिए रावी और व्यास नदियों का जल सतलज में गिराकर इस नहर का निर्माण किया गया है | यह संसार की सबसे लम्बी नहर (लगभग 500 कि० मी०) है |
- नर्मदा घाटी परियोजना – यह नर्मदा नदी पर स्थित है, जिससे मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्यों में सिंचाई की जाती है |
-
सोन परियोजना – सोन नदी घाटी परियोजना बिहार राज्य की सबसे पुरानी एवं पहली सिंचाई परियोजना है | इसका निर्माण 1874 ई० में ही किया गया था | इसकी कुल लम्बाई 135 कि० मी० है | इस परियोजना को बहुउद्देशीय परियोजना का रूप देने के लिए 1968 ई० में डेहरी से 12 कि० मी० ऊपर इंद्रपुरी नामक स्थान के पास बाँध बनाकर बैराज का निर्माण किया गया है | इस नये बैराज से नहरें निकाल कार पुरानी नहरों की जलापूर्ति की जाती है | पहले इस परियोजना से 3 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होती थी, जो अब बढ़कर 4.5 लाख हेक्टेयर हो गई है | सिंचाई की सुविधा के कारण यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होती है | इस प्रदेश (रोहतास) को बिहार का ‘चावल का कटोरा’ (Rice Bowls of Bihar) कहा जाता है |
जल संकट –
जल की आपूर्ति में कमी जल संकट के रूप में जानी जाती है | स्वीडन के जल विशेषज्ञ फॉल्कन मार्क के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रति दिन एक हजार घन मीटर जल की आवश्यकता है | इससे कम उपलब्धता जल संकट है |
वर्तमान समय में बढ़ती जनसंख्या, उसकी माँग तथा जल का आसमान वितरण भी जल संकट का कारण है | जनसंख्या बढ़ने से न केवल जल का घरेलू उपयोग बढ़ता है, बल्कि अधिक अन्न उत्पादन हेतु जल संसाधन का अधिक उपयोग कर सिंचित भूमि में भी वृद्धि की जा रही है, जिससे ग्रीष्म (शुष्क) ॠतु में कृषि कर्य किया जा सके | जिससे निकट भविष्य में पेय जल की गंभीर समस्या उत्पन्न होने की असीम संभावनायें हैं | यदि इन समस्याओं से हमें बचाना है तो भूमिगत जल का प्रयोग सिंचाई कार्यों में कम से कम करना होगा |
जल संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता –
जल एक ऐसा साधन है, जिसका सीधा संबंध हर जीव-जंतु से जुड़ा है | जल संसाधनों के सरक्षण का उपाय विभिन्न स्टारों पर किये जाने की आवश्यकता है | जल संरक्षण के कुछ सामान्य उपाय इस प्रकार हैं –
- जल संरक्षण के लिए अधिक से अधिक जलाशयों का निर्माण |
- एक नदी बेसिन से दूसरी नदी बेसिन में जल का स्थानांतरण |
- भूमिगत जल स्तर को उठाने के उपाय |
वर्षा जल-संग्रहण एवं उसका पुनर्चक्रण –
वर्षा जल-संग्रहण भूमिगत जल की क्षमता जो बढ़ाने की तकनीक है | इसमें वर्षा के जल को रोकने और इकट्टा करने के लिए विशेष ढाँचों, जैसे – कुएँ, गड्ढे आदि का निर्माण करना शामिल हैं |
वर्षा जल संग्रहण के उद्देश्यों को निम्नांकित बिन्दुओं के माध्यम से वर्णित किया जा सकता है –
- जल की बढती माँग को पूरा करना |
- धरातल पर बहते जल की मात्रा को कम करना |
- सड़कों को जल जमाव से बचाना |
- भूमिगत जल को एकत्रित करने की क्षमता तथा जलस्तर को बढ़ाना |
- भूमिगत जल प्रदूषण को घटाना |
- भूमिगत जल की गुणवत्ता को बढ़ाना |
- ग्रीष्म ॠतु तथा लम्बी शुष्क अवधि में जल की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करना |
जल के कुशल प्रबंधन के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान चाहिए –
- जन-जागरण पैदा करना और जल के संरक्षण और उसके कुशल प्रबंधन से संबंधित सभी क्रिया-कलापों में लोगों को शमिल करना |
- भूमिगत जल निकास इकइयों की निगरानी, जिससे उन्हें सूखने से बचाया जा सके |
- सभी जल निकास की इकाइयों जैसे कुओं, नल-कूपों आदि को पंजीकृत करना |
- जलाशयों को प्रदूषण से बचाना-एक बार प्रदूषित होने पर जलाशय वर्षों बाद पुन: उपयोंगी हो पाते हैं |
- जल की बर्बादी तथा जल-प्रदुषण को रोकने के लिए जल की पाइपलाइनों की तत्काल मरम्मत करना |