लघु उत्तरीय प्रश्न
- पौधों में वाष्पोत्सर्जन क्या है ? इसके महत्त्वों को लिखें |
उत्तर – पौधों के वायवीय भागों से जल का रंध्रों द्वारा निष्कासन की प्रक्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है | वाष्पोत्सर्जन क्रिया का पौधों के लिए निम्नलिखित महत्त्व हैं |
- यह जल-अवशोषण की दर को नियंत्रित करता है |
- यहाँ पौधों में रसारोहण के लिए भी उत्तरदायी है |
- यह पौधों में तापमान-संयुलन बनाए रखता है |
2. रक्त क्या है ? मनुष्य के रक्त में श्वेत रक्त कणों की संख्या लिखें |
उत्तर – रक्त एक तरल संयोजी उतक है जो उच्च बहुकोशिकीय जन्तुओं में एक तरह का पारिवाहन माध्यम है, जिसके द्वारा शरीर के भीतर एक स्थान से दुसरे स्थान तक पदार्थों का परिवहन होता है | मनुष्य के रक्त में श्वेत रक्त कणों की संख्या 5000-10000 प्रति माइक्रो लीटर ( 10-6 L ) होती है |
3. एककोशिकीय जीवों में पदार्थों का परिवहन कैसे होता है ?
उत्तर – एककोशिकीय जोवों में पदार्थों के परिवहन हेतु किसे विशिष्ट तंत्र या रचना की आवश्यकता नहीं होती है और इसके अभाव में आवाश्यक गैसों, कार्बनिक पदार्थों, खनिज लवणों आदि का परिवहन विसरण-क्रिया द्वारा संपन्न होता है |
4. जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के संवहन में कोई दो अंतर लिखें | अथवा, जाइलम और फ्लोएम में अंतर स्पष्ट करें |
उत्तर – जाइलम तथा फ्लोएम में निम्नांकित अंतर हैं |
जाइलम | फ्लोएम |
i. जाइलम जल एवं घुलित खनिज लवणों का स्थानांतरण करता है | | i. फ्लोएम खाद्द-पदार्थों का स्थानांतरण करता है | |
ii. जाइलम में जल एवं घुलित लवणों का बहाव ऊपर की ओर होता है | | ii. फ्लोएम में खाद्य-पदार्थों का परिवहन ऊपर एवं निचे दोनों तरफ होता है | |
5. जीवों में पदार्थो के परिवहन की परिभाषा लिखें |
उत्तर – उपयोगी पदार्थो का उनके मूल स्रोतों से शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाने तथा अनुपयोगी और हानिकारक पदार्थों को कोशिकाओं से निकलकर गंतव्य स्थान तक पहुँचाने की क्रिया को पदार्थों का परिवहन कहते हैं |
6. रक्त पट्टीकाणु का क्या महत्त्व है ?
उत्तर – रक्त पत्तिकाणु का महत्त्व – ये विषाणु या थ्रोंबोसाइट्स ( thrombocytes ) भी कहलाते हैं | ये रक्त के थक्का बनने ( Clotting of blood ) में सहायक होते हैं |
7. धमनी और शिरा में अंतर बताइए |
उत्तर –
धमनी | शिरा |
i. धमनी में शुद्ध रक्त बहता है | | i. शिरा में अशुद्ध रक्त बहता है | |
ii. धमनी रक्त को ह्रदय से शरीर के विभिन्न भागों में ले जाता है | | ii. शिराएँ, रक्त को विभिन्न अंगों से ह्रदय में ले जाता है | |
iii. धमनी की दीवारें मोटी एवं लचीली होती हैं | | iii. शिरा की दीवार धमनी की अपेक्षा पतली होती है | |
iv. धमनी कपाटहीन होती है | | iv. शिराओं में ह्रदय की ओर खुलने वाले कपाट लगे होते हैं | |
फुफ्फुस धमनी में अशुद्ध रक्त बहती है | जो अशुद्ध रक्त को फेफड़ो से ह्रदय में ले जाती है | | v. फुफ्फुस शिराओं में शुद्ध ऑक्सीजनित रक्त का संचार होता है जो रक्त को फेफड़े से ह्रदय में ले जाती है | |
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. मनुष्य के ह्रदय की कार्यविधि को समझाएँ |
उत्तर – ह्रदय शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त को ग्रहण करता है | वह उस अशुद्ध रक्त को ऑक्सीजन के द्वारा शुद्ध करने के लिए फेफड़े में भेजता है | ह्रदय पुन: उस शुद्ध रक्त को फेफड़े से ग्रहण करता है और शरीर के विभिन्न भागों में पम्प कर देता है जिससे सम्पूर्ण शरीर में रक्त का परिसंचरण होता है | यह कार्य ह्रदय की पेशीय भित्ति के संकुचन के द्वारा संपन्न होता है | ह्रदय के वेश्मों-अलिंद और निलय में बरी-बरी से संकुचन तथा शिथिलन होता है | ह्रदय के वेश्मों का संकुचन सिस्टाल तथा शिथिलन डायस्टॉल कहलाता है | शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रक्त दो अग्र महाशिराओं एवं एक पश्च महाशिरा के द्वारा दायें अलिंद में पहुँचता है | फेफड़ों से शुद्ध रक्त फुफ्फुस शिराओं के द्वारा बायें अलिंद में पहुँचता है | इसके बाद दोनों अलिंदों में संकुचन तथा साथ-साथ दोनों निलय में शिथिलन होता है | फलत: अशुद्ध रक्त दायें अलिंद में दायाँ अलिंद निलय छिद्र के द्वारा दायें निलय में तथा शुद्ध रक्त बायें अलिंद से बायें अलिंद निलय छिद्रों के द्वारा बायें निलय में पहुँच जाता है | जब दोनों अलिंद खली हो जाते हैं तथा दोनों निलय रक्त से भर जाते हैं तब निलयों में संकुचन तथा अलिंदों में संकुचन होता है | इस समय दायाँ अलिंद-निलय छिद्र द्विदली कपाट के द्वारा बंद हो जाते हैं | इसके फलस्वरूप दायें निलय से अशुद्ध रक्त फुफ्फुस धमनियों द्वारा फेफड़े में चला जाता है | जहाँ गैसीय आदान-प्रदान के द्वारा शुद्ध होता है, इसी समय बायें निलय में पहुँचा शुद्ध रक्त महाधमनी में पहुँचता है और फिर वहाँ से विभिन्न धमनियों के द्वारा शरीर के सभी भागों में संचारित होता है | इस प्रकार ह्रदय अपना कार्य सम्पन्न करता है |
2. रक्त के कार्य का वर्णन करें |
उत्तर – रक्त के कार्य – रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, रक्त के तीन प्रमुख कार्य हैं – i. पदार्थो का परिवहन करना, ii. संक्रमण से शरीर की सुरक्षा करना, एवं iii. शरीर के तापमान का नियंत्रण करना | रक्त के निम्नलिखित अन्य कार्य भी हैं | i. अंत: स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावत हॉर्मोन्स को उपयुक्त अंग तक पहुँचाता है | ii. यह यकृत से यूरिया को गुर्दा तक पहुँचाता है | iii. यह शरीर को विभिन्न रोगाणुओं के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है ,क्योंकि रक्त के घटक WBC , शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करते हैं | iv. रक्त पट्टीकाणु ,रक्त ज़मने में सहायक होती हैं |
3. श्वेत रक्त कोशिकाएँ लाल रक्त कोशिकाओं से किस प्रकार भिन्न हैं |
उत्तर – श्वेत रक्त कोशिकाएँ लाल रक्त कोशिकाओं से निम्नांकित प्रकार भिन्न हैं |
लाल रक्त कोशिका ( RBC ) | श्वेत रक्त कोशिका ( WBC ) |
i. इन्हें इरिथ्रोसाइट्स भी कहते हैं | | i. इन्हें ल्यूकोसाइट्स भी कहते हैं | |
ii. इनका आकार उभयानातोदर डिस्क की तरह होता है जिनमें ( ऊँट को छोड़कर सभी स्तनधारियों में ) केन्द्रक का अभाव होता है | | ii. ये अनियमित आकार की केन्द्रकयुक्त होती हैं | |
iii. इनमें हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन वर्णक उपस्थित होता है, इसके चलते इनका रंग लाल होता है | | iii. इसमें प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन अनुपस्थित होता है | |
iv. ये शरीर में श्वसन गैसों के परिवहन का कार्य करती हैं | | iv. ये शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करती हैं | |
v. मानव के प्रति माइक्रोलिटर ( microliter ) रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती है | | v. मानव के प्रति माइक्रोलिटर ( microliter ) रक्त में इनकी संख्या 5000-10000 तक होती है | |
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Sir biology third lesson ka dawnload option nahi hai plz dawnload option ko khol de