विधुत – धारा का चुंबकीय प्रभाव ( Magnetic Effects of Electric Current )-Bihar Board Class 10th Science Subjective 2023

 लघु उत्तरीय प्रश्न 

  1. परिनालिका किसे कहते हैं ? 

 उत्तर – यह काँच या गत्ता का एक ऐसा खोखला , बेलनाकार नाली है जिसके ऊपर तार लपेटकर विधुत धारा प्रवाहित करने पर छड़ चुंबक जैसा कार्य करता है | 

       2 . भू-संपर्क तार का क्या कार्य है ? 

उत्तर – भू-संपर्क तार हरे रंग के विधुतरोधी आवरण से ढँकी रहनेवाली वह सुरक्षा तार है जो घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर दाबी धातु की प्लेट से संयोजित रहती है | यह तार विधुत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पाठ प्रस्तुत करती है | किसी विधुत क्षरण होने की अवस्था पर साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप साधित्र का उपयोग करनेवाले व्यक्ति को तीव्र विधुत आघात से सुरक्षा हो जाती है | 

        3 . चुम्बकीय  पदार्थ और अचुम्बकीय  पदार्थ क्या हैं ?

उत्तर – वैसे पदर्थ जिन्हें चुंबक आकार्षित करता है अथवा जिनसे कृत्रिम चुंबक बनाए जा सकते हैं , चुंबकीय पदार्थ हैं , जैसे – लोहा , कोबाल्ट , निकेल तथा उनके कुछ मिश्रधातु |

अचुम्बकीय पदार्थ – वैसे पदार्थ जिन्हें चुंबक आकर्षित नहीं करता , अचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं ; जैसे – काँच , कागज , पलास्टिक , पीतल आदि |

       4 . विहुत – चुम्बक में नर्म लौह क्रोड का इस्तेमाल क्यों होता है ?

उत्तर – नर्म लोहे को आसानी से चुंबकीय और विचुंबकीय किया जा सकता है| जब परिनालिका में विधुत धारा प्रवाहीत  किया जाता है तब परिनालिका में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिनसे नर्म लोहे का छड़ शक्तिशाली चुंबक बन जाता है जब विधुतधारा प्रवाह बंद कर दिया जाता है तो नर्म लोहा अपना चुम्बकत्व जल्द खो देते है |इसी गुण के कारण इसका विधुत चुंबक बनाने में किया जाता है    |

       5. फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम लिखें और समझाऐ | 

                              अथवा 

           यदि चुम्बकीय क्षेत्र धारावाही चालक के लम्बवत हो तो चालक पर लगे हुए बल की दिशा कैसे प्राप्त होती है ? 

उत्तर – यदि हम वामहस्त की तीन अंगुलियों -अंगूठा , तर्जनी एवं मध्यमा को एक – दुसरे के लम्बवत् इस प्रकार फैलाएँ कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की किशा एवं मध्यमा चालक में प्रवाहित की दिशा को दर्शाएँ तो चालक पर लगाने वाले बल की दिशा अंगूठे की दिशा में होती है |

     6. फ्लेमिंग का दक्षिण -हस्त नियम लिखें और समझाऍ | 

उत्तर – फ्लेमिंग का दक्षिण – हस्त नियम को इस प्रकार बताया जा सकता है – दाहिनी हाथ के अंगुठा , तर्जनी और मध्यमा के परस्पर समकोणिक फैलाऍ | यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा का संकेत करती हो और अंगूठा गति की दिशा में हो तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा का संकेत करेगी | इस नियम को डायनेमो नियम भी कहते हैं |

     7. विधुत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है ? 

उत्तर – विधुत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करता है | अर्थात् परिपथ में विधुत धारा के प्रवाह की दिशा को परिवर्तित करता है | इससे आर्मेचर की भुजा पर लगाने बल की दिशा भी परितार्तित होते है | इससे आर्मेचर एक ही दिशा में घूर्णन कर सकता है | 

        8.दिष्ट धारा और प्रत्यावर्ती धारा में अंतर स्पष्ट करें | 

उत्तर – दिष्ट धारा और प्रत्यावर्ती धारा में निम्न अंतर हैं – 

 दिष्ट धारा                                                    प्रत्यावर्ती धारा                                   
1.केवल धारा का मान बदलता है अर्थात् दिष्टधारा एक ही दिशा में बहती है |  1.धारा का मान तथा दिशा समय के साथ बदलता है | 
2. इसे उत्पन्न करने में कठिनाई होती है |  2. इसे आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है | 
3. इसे A. C. में बदलने में काफी कठिनाई होती है |  3.इसे आसानी से D. C.  में बदला जा सकता है | 
4. यह A. C.  की अपेक्षा कम घातक है |  4. यह D. C. की अपेक्षा अधिक घातक है |  
5. यह चालक के अंदर से प्रवाहित होता है |  5. यह चालक के सतह पर प्रवाहित होता है | 

            9. मेन लाइन में अतिभारण तथा लघुपथन कैसे उत्पन्न होता है ? 

उत्तर – बहुत सारे विधुत उपकरणों को एक साथ चालू कर देने पर परिपथ में विधुत उपकरणों की कुल शक्ति उसकी स्वीकृत सीमा से बढ़ जाती है तो उपकरण आवश्यकता से अधिक धारा खींचते हैं इसे ही अतिभारण कहते हैं | इस स्थिति में परिपथ की प्रबलता एकाएक बढ़ जाती है | इससे परिपथ में संयोजक तार में आग लग सकती या फ्यूज गल सकता है | इसी तरह तारों के ख़राब या क्षतिग्रस्त हो जाने से जीवित तार एवं उदासीन तार ले एक – दुसरे से सट जाने से परिपथ का प्रतिरोध लगभग शून्य हो जाता है इसे लघुपथन ( Short Circuiting ) जाता है | लघुपथन से धारा की प्रबलता बहुत अधिक हो जाती है और तार में आग लग सकती है |   

           10. डायनेमो किस प्रकार विधुत – धारा उत्पन्न करता है ? 

उत्तर – डायनेमो में एक चालक कुंडली को चम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है | इस प्रक्रिया में चम्बकीय फ्लक्स बदलता है | जब किसी कुंडली से चम्बकीय फ्लक्स बदलते तो विधुत – वाहन  बल प्रेरित होता है | यह प्रेरित बिधुत – वाहक बल ही डायनेमो में विधुत – धारा स्थापित करता है | 

           11. किसी चम्बकीय क्षेत्र में स्थित विधुत – धारावाही तार पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है ? 

उत्तर – जब धारावाही तार पर चम्बकीय क्षेत्र अभिलाम्बवत हो ,तो तार पर आरोपित बल अधिकतम होता है | 

           12. ऐसी दो युक्तियों के नाम लिखें जिनमें विधुत मोटर प्रयुक्त होता है | 

उत्तर – विधुत पंखा एवं विधुत चक्की ऐसी दो युक्तियाँ है जिनमें विधुत मोटर प्रयुक्त होता है 

            13. विधुत मोटर कैसे कार्य करता है ? 

उत्तर – विधुत मोटर में एक कुंडली चुंबकीय क्षेत्र में स्थित होती है | जब कुंडली से धारा प्रवाहित की जाती है तब समांतर बाहु पर विपरीत दिशा में बल लगकर कुंडली को घुमाने लगते हैं | बलयुग्म के प्रभाव से कुंडली घुमती है | इस प्रकार विधुत मोटर घूर्णी गति करता है | 

       दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

  1. डायनेमो क्या है ? इसका क्या उपयोग है ?  

     उत्तर – डायनेमो एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विधुत – ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है | इसमें तार की कुंडली को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है | जब कुंडली घुमती है तब उससे गुजरनेवाली चुंबकीय क्षेत्र – रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है और कुंडली के सिरों के बीच विधुत – वाहन बल ( electromotive force ) प्रेरित ( induce ) होता है | इससे कुंडली में विधुत – धारा प्रवाहित होती है |

       उपयोग – डायनेमो का विस्तृत उपयोग है | इसके द्वारा कारखानों में विभिन्न प्रकार की मशीनों के लिए ऊर्जा प्राप्त के जाते है | फिर , बिजलीघरों में इसकी व्यवास्थ कर घरों में बिधुत की आपूर्ति भी की जा सकती है | 

      2 . विधुत मोटर क्या है ? इसके सिद्धांत और क्रिया का सचित्र वर्णन करें | 

उत्तर – विधुत मोटर – विधुत मोटर ऐसा क्षेत्र है जिसके द्वारा विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा को यांत्रिक उर्जामी परिवर्तित किया जाता है | यह फ्लेमिंग की वाम – हस्त नियम पालन करता है | 

     विधुत मोटर में एक शक्तिशाली चम्बक होता है जिसके अवतल ( Concave ) , ध्रुव – खंडों ( Pole Pieces ) के बीच ताम्बे के तार की कुंडली होती है |जिसे मोटर का आर्मेचर ( armature ) कहा जाता है | 

      आर्मेचर के दोनों छोर पीतल के खंडित वलयों ( split rings ) R¹  तथा R²  से जुड़े होते हैं | वलयों को कार्बन के ब्रशों ( Brushes ) B¹  तथा B²  हलके से स्पर्श करते हैं | 

  जब आर्मेचर से धारा प्रवाहित की जाती है | तब चम्बक के चुंबकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के AB तथा CD भुजाओं पर समान मान के , किन्तु विपरीत दिशाओं में बल लगते है , क्योंकि इन भुजाओं में प्रवाहित होनेवाली धारा के प्राबल्य ( Strength ) समान हैं ,परन्तु उनकी दिशाएँ विपरीत है | इनमें एक बलयुग्म बनता है जिसका कारण आर्मेचर घूर्णन करने लगता है | 

        आधे घूर्णन के बाद जब CD भुजा ऊपर चली जाती है और AB भुजा नीचे आ जाती है ,तब वलयों के स्थान भी बदल जाते हैं | अतः आर्मेचर पर लगा बलायुग्म आर्मेचर को लगातार एक  ही तरह से ( वामावर्ती या दक्षिणावर्ती ) घुमाता रहता है | 

   3. विधुत चुंबक के उपयोग लिखिए | 

उत्तर –विधुत चुंबक बहुत उपयोगी होता है | इसके कुछ प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं – 

  1.  इसे विधुत उपकरणों में प्रयुक्त किया जाता है | बिजली की घंटी , पंखों , रेडियो , कंप्यूटरों आदि में इनका प्रयोग किया जाता है | 
  2. विधुत मोटरों और जेनरेटरों के निर्माण में यह प्रयुक्त होते हैं | 
  3. इस्पात की छड़ो को चुंबक बनाने के लिए इनका प्रयोग होता है | 
  4. चुंबकीय पदार्थो को उठाने में इनका प्रयोग होता है | 
  5. चट्टानों को तोड़ने में इनका प्रयोग किया जाता है |
  6. अयस्कों में से चुंबकीय और अचुंबकीय पदार्थो को अलग करने के लिए इनका प्रयोग होता है | 

     4. चम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ क्या होती हैं ? किसी बिंदु पर चम्बकीय क्षेत्र की दिशा कैसे निर्धारित की जाती हैं ? 

उत्तर – चुंबक के आस – पास के क्षेत्र में जहाँ एक चुंबक के आकर्षण और विकर्षण के बल को अनुभव किया जा सकता है उसे चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं | वह पथ  जिस पर चुंबक का उत्तरी ध्रुव चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त अवस्था में आने पर गति करेगा उसे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते हैं |       चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को दो प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है | एक गत्ते पर चुंबक रखो और उस पर लौह – चूर्ण छिड़क कर गत्ते को धीरे – धीरे थपथपाओ | लौह – चूर्ण अपने आप चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में चित्र के अनुसार व्यवस्थित हो जाएगा | 

       चुंबक को एक कागज पर रखकर चुंबकीय कंपास की सहायता से चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींची जा सकती हैं | चुंबकीय सुई को चुंबक के उत्तरी ध्रुव के निकट रखकर इसके दोनों सिरों को पेंसिल की सहायता से चिन्सेहित करो | चुंबकीय सुई को दक्षिण दिशा की ओर चिहनों के अनुसार बढ़ाते जाओ | पेंसिल से  इन बिंदुओं को मिलाओ | चुंबकीय क्षेत्र रिखाओं की प्राप्ति रेखांकन के अनुसार हो जाएगी | 

  चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दीशा चुंबकीय सुई की सहायता से प्राप्त होते है | जिस दिशा में उत्तरी ध्रुव का निर्देश प्राप्त होता है वही चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा होती है | 

 

Learn More Chapters                                 Download PDF

 

 

 

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *