वन
वन एक नवीकरणीय संसाधन है | इसका हमारे आर्थिक विकास में विशेष योगदान है | वन स्थानीय जलवायु में सुधार करते हैं, मृदा अपरदन को नियंत्रित करते हैं, नदी प्रवाह को नियमित करते हैं तथा विविध उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करते हैं |
वन एवं उनका संरक्षण –
वन हमारी प्राकृतिक सम्पदा है | हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वन-प्रधान थी | आज भी हमें वनों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों लाभ मिलते हैं |
वनों से प्रत्यक्ष लाभ
- वनों से बहुमूल्य इमारती लकड़ियाँ मिलाती है |
- ये ईंधन की आपूर्ति करते हैं |
- ये कागज की लुगदी, दियासलाई, फर्नीचर, बक्सा-पेटी इत्यादि तैयार करने के लिए उपयोगी लकड़ियाँ प्रदान करते हैं |
- ये रबर और रेशम-उद्योग के लिए भी कच्चा माल प्रदान करते हैं |
- वनों से लाह, गोंद, कत्था, तारपीन का तेल, चमड़ा रंगने का सामान, बीड़ी के पत्ते, मधु, औषधि के लिए जड़ी-बूटी इत्यादि मिलाती हैं |
- वन पशुचारण के लिए विस्तृत चारागाह प्रदान करते हैं |
- वनों से बहुत लोगों को रोजगार मिलता है तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है |
वनों से अप्रत्यक्ष लाभ
- ये जलवायु को सम रखते हैं तथा बादलों को आकृष्ट कर वर्षा लाने में सहायक होते हैं |
- ये मिट्टी का कटाव रोकते हैं |
- ये बाढ़ की रोकथाम करते हैं |
- वृक्षों की पत्तियाँ सड़कर भूमि को उर्वर बनती है |
- वन मरुस्थल के प्रसार को रोकते हैं |
- वन पर्यावरण को संतुलित रखते हैं |
वनों के प्रकार एवं वितरण
वन विस्तार की दृष्टि से विश्व में भारत का 10वाँ स्थान है | विशव में सर्वाधिक क्षेत्रों में वनों का विस्तार रूस में है, जहाँ लगभग 810 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं | ब्राजील विश्व का दूसरा सबसे अधिक क्षेत्रों पर वन विस्तारित वाला देश है, जहाँ 480 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है |
भारत में 2001 में 19.37 % भौगोलिक क्षेत्र पर वन का विस्तार था | इस समय वन सर्वक्षण के अनुसार 20.55 % भौगोलिक क्षेत्र वनाच्छादित था | वन सर्वेक्षण की 10 वीं रिपोर्ट 2005 के अनुसार देश में कुल 67.80 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.65 % है |
वृक्षों की सघनता के आधार पर वनों को पाँच वर्गों में रखा जा सकता है –
- अत्यंत सघन वन – भारत में अत्यंत सघन वन का विस्तार 55 लाख हेक्टेयर भूमि पर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 1.7% है | नागालैण्ड, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर एवं अरुणाचल प्रदेश में इस प्रकार के वन पाये जाते हैं | इस प्रकार के वनों में वृक्षों का घनत्व 75% से अधिक होता है |
- सघन वन – सघन वन के अंतर्गत 74 लाख हेक्टेयर भूमि सम्मिलित हैं, जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 3.25 % है | भारत सिक्किम, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र एवं उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र उल्लेखनीय हैं | यहाँ वनों का घनात्त्व 63 % है |
- खुले वन – भारत में खुले वन का विस्तार लगभग 2.75 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में है | यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.25 % है | कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा एवं असम राज्यों में इस प्रकार के वन पाये जाते हैं | असम के आदिवासी जिलों में वनों का घनात्त्व 24 % है |
- झाड़ियाँ एवं अन्य वन – भारत के झाड़ीनुमा वनों का विस्तार शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों खासकर राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाया जाता है | भारत में इस वनीय क्षेत्र के अंतर्गत 2.50 करोड़ हेक्टेयर भूमि आती है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7 % है |
- मैंग्रोंव वन (तटीय वन) – तटीय वन भारत के समुद्रतटीय राज्यों में पाये जाते हैं, जिनमें सर्वप्रथम पश्चिम बंगाल का सुन्दरवन है | भारत के कुल 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसका विस्तार है | इनमें अंडमान द्वीप समूह, आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल, दमन दीव उल्लेखनीय हैं | भारत के 4.5 हजार वर्ग कि० मी० क्षेत्र में इस वन का विस्तार है जो विश्व का मात्र 5 % है |
प्रशासनिक उद्देश्य के आधार पर वनों को तीन वर्गों में बाँटा गया है –
- आरक्षित वन (कुल वन का 54 %) – आरक्षित वन वे वन हैं, जो इमारती लकड़ी अथवा वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए तथा बाढ़ नियंत्रण, भूमि संर क्षण एवं मरुस्थल के प्रसार को रोकने के लिए स्थाई रूप से सुरक्षित किए गए हैं तथा इनमें पशुओं को चराने और पेड़ों को कटाने की अनुमति प्राप्त नहीं होती है |
- रक्षित वन (कुल वन का 29 %) – रक्षित वन उस वन को कहा जाता है, जिसमें पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति सामान्य प्रतिबंधों के साथ दे दी जाती है |
- अवर्गीकृत वन (कुल वन का 17 %) – अवर्गीकृत वन वे वन हैं, जो अधिकतर दुर्गम हैं तथा सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में है | इस प्रकार के वनों में लकड़ी काटने और पशुओं को चराने और सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है | सरकार इसके लिए शुल्क लेती है | कुल वनीय क्षेत्र का 17 % अवर्गीकृत वन है |
वर्षा पर आधारित वन की पेटियाँ – वर्षा के आधार पर भारत में चार प्रकार के वन पाये जाते हैं |
- उष्ण कटिबंधीय चिरहरित वन – ये वन उष्ण कटिबंध के उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 200 से० मी० से अधिक वर्षा होती है | पश्चिमी घाट पर्वत के पश्चिमी ढाल, अंडमान निकोबार द्वीप समूह तथा पूर्वोंतर भारत इस प्रकार के वन के क्षेत्र हैं |
- आर्द्र पतझड़ या पर्णपाती वन – पतझड़ वन मानसून जलवायु का विशिष्ट वन है | इस कारण इसे मानसून वन भी कहा जाता है | इसकी विशेषता यह है कि इनके पेड़ ग्रीष्म ॠतु के प्रारंभ में अपने पत्ते को गिरा देते हैं | आर्द्र पतझड़ वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 100 से० मी० से 200 से० मी० के बीच वर्षा होती है |
- शुष्क पतझड़ या पर्णपाती वन – ये वन 50 से 100 से० मी० वर्षा वाले भागों में मिलते हैं | यहाँ वृक्षों के साथ झाड़ियों भी मिलाती हैं | वृक्षों की लम्बाई 10 मीटर से अधिक नहीं होती है |
- मरुस्थलीय वन – इसे शुष्क वन भी कहा जाता है | इस प्रकार के वन 50 सेमी० से कम वाले क्षेत्र में मिलते हैं |
वनों की कटाई और अत्यधिक शिकार के कारण वन्य पशुओं का भी ह्रास होता जा रहा है | स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि बहुत से वन्य प्राणी लुप्त हो गये हैं या लुप्तप्राय हैं |
वन्य जीवों के अधिवास पर प्रतिकूल मानवीय प्रभाव के तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण – जंगल, मैदानी क्षेत्र, नदियाँ, तालाब तथा पहाड़ी एवं तराई क्षेत्र वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास हैं |
- प्रदुषण जनित समस्या – प्रदुषण बढ़ने से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं | इनमें वन्य जीवों की संख्या में कमी के प्रमुख कारक पराबैंगनी किरणें, अम्ल वर्षा और ग्रीन हाउस प्रभाव है |
- आर्थिक लाभ – आर्थिक लाभ को प्राप्त करने के लिए योजनाबद्ध रूप से खास प्रजातियों के पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तुओं को स्थानीय या राज्यस्तर पर दोहित किए जाने से कई प्रजातियाँ संकट ग्रस्त हो गई हैं |
वन्य जीवों के संरक्षण के उपाय
वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए –
- जन्तुओं के शिकार पर प्रतिबंध |
- जंगली जन्तुओं की रक्षा के लिए जंगलों की रक्षा |
- वृक्षारोपण |
- जंगली जानवरों के शारीर से बनी वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध |
- जंगली जीव शरणस्थल तथा राष्ट्रीय जीव उद्यान की स्थापना |
वन्य प्राणियों के संरक्षण की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा 89 राष्ट्रीय उद्यान (National Parks), 490 वन्य प्राणी अभयारण्य (Wild life Sanctuaries) और 13 जैव आरक्षित क्षेत्रों (Biosphere reserves) का विकास किया गया है | राष्ट्रीय उद्यान का उद्देश्य वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास में वृद्धि एवं प्रजनन की परिस्थितियों को तैयार करना है |
अभयारण्य में कृषि, वन उत्पाद संग्रह इत्यादि की सीमित छूट होती है और यह निजी सम्पत्ति हो सकती है | इसमें वन्य जीव सुरक्षित ढंग से रहते हैं | भारत के मुख्य अभयारण्य कर्नाटक का गाँधी सागर, भद्रा और शरावती, राजस्थान का सरिस्का, उत्तराखंड का केदारनाथ, उत्तर प्रदेश का चन्द्रप्रभा, असम का मानस, झारखण्ड का हजारीबाग, पलामू डल्मा और उड़ीसा का चिल्का हैं | बिहार में बेगूसराय का काँवर झील और दरभंगा का कुशेश्वर इसके लिए चिह्नित हैं |
जैव आरक्षित क्षेत्र या जैवमंडल में प्राथमिकता के आधार पर जैव विविधता के आनुवं शिकी विविधता के रूप में संरक्षित कार्यक्रम चलाया जाता है | भारत का पहला जैव आरक्षण क्षेत्र 1986 में नीलगिरि में बनाया गया |
बाघ (Tiger) विश्व का एक महत्त्वपूर्ण पशु है, जिसकी दो तिहाई संख्या भारत और नेपाल में पायी जाती है | इसकी घटती संख्या को देखते हुए 1973 ई० में बाघ परियोजना (Project Tiger) आरंभ की गई | इस परियोजना के फलस्वरूप इस संकटग्रस्त जाति की संख्या 1973 और 1989 के बीच 1827 से बढ़कर 4334 हो गई |
प्रजनन-केंद्र
प्रजनन-दर में कमी होने के कारण कई प्रजातियों की संख्या कम हो जाती है और वे संकटग्रस्त हो जाती हैं | यह कमी प्रतिकूल प्रजनन परिस्थितियों के कारण होती है | ऐसे जीवों की रक्षा के लिए देश में कई प्रजनन केंद्र स्थापित किए गए हैं, जैसे मध्य प्रदेश के मुरैना में घड़ियाल प्रजनन केंद्र, उड़ीसा के नंदनकानन वन में सफेद बाघ प्रजनन-केंद्र और राजस्थान में जयपुरे के निकट गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन-केंद्र |
समुदाय और वन संरक्षण
वन-क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी और अन्य लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन उत्पाद एवं वन्य जीवों पर निर्भर करते हैं | वन-संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका के दो उदहारण इस प्रकार हैं –
- चिपको आंदोलन (Chipko Movement) – यह आंदोलन सुन्दर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में अनपढ़ जनाजातियों द्वारा 1972 में उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल पर्वतीय जिला में प्रारंभ हुआ था और काफी प्रसिद्ध हुआ |
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अमृता देवी सामुदायिक वन संरक्षण – अमृता देवी राजस्थान के जोधपुर जिला के विशनोई गाँव की रहने वाली थी | उसने 1731 ई० में राजा के आदेश को दरकिनार कर वनों से लकड़ी काटने वालों का विरोध किया था |
वन्य जीवों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रसास एवं नियम
- अंतर्राष्ट्रीय प्रयास एवं नियम (International Laws) – दो या दो से अधिक राष्ट्र समूहों के द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण के लिए क़ानूनी प्रावधान बनाए गए हैं तथा इस दिशा में कई कन्वेंशन किए गए हैं, यथा
- 1968 में अफ्रीकी कन्वेंशन
- 1971 में वेटलैंड्स कन्वेंशन
- 1972 में विश्व प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण एवं रक्षा अधिनियम |
- 2007 (31 मई) में नीदरलैंड के हेग नगर में संकटग्रस्त प्रजातियों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए बैठक |
2. राष्ट्रीय प्रयास एवं नियम (National Laws) –
- संविधान की धारा 21 के अनुच्छेद 47, 48 और 51 ए (जी) के अंतर्गत भारत में प्राकृतिक संसाधनों एवं वन्य जीवों के संरक्षण के नियम हैं |
- 1952 में भारतीय वन्य जीव बोर्ड (Indian Wild life Board) तथा राज्यों के स्तर पर अपने-अपने बोर्डों का गठन |
- 1972 में वन्य जीव सुरक्षा नियमावली
- 1980 में वन संरक्षण ऐक्ट एवं नियमावली
- 1981 में वन संरक्षण के कानूनी प्रावधान
- 1991 में वन जीव सुरक्षा नियमावली का संशोधित ऐक्ट
- 2002 में जैव विविधता अधिनियम के अंतर्गत राज्य/जिला/प्रखंड स्थानीय स्तर पर कमेटियों के गठन का प्रावधान तथा स्तर पर राज्य पशु, राज्य पक्षी इत्यादि घोषित करने का प्रावधान | राष्ट्रीय स्तर पर बाघ को राष्ट्रीय जानवर और मयूर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया है |
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