प्रेस, संस्कृति और राष्ट्रवाद- Class 10th Social Science ( सामाजिक विज्ञान ) Notes in Hindi

मुद्रण अथवा छपाई का आरंभिक इतिहास 

मुद्रण का इतिहास एशिया से शुरू होकर यूरोप से भारत में आया | शुरू-शुरू में लोगों को छपाई अथवा  मुद्रण कला का ज्ञान नहीं था | लोग अपने भावों को व्यक्त करने के लिए चित्रों का सहारा लेते थे | लेखन के आविष्कार के पहले-मानव चट्टानों तथा गुफाओं में खुदाई करके अपने अनुभवों को चित्रित करता था | 

    मुद्रण की सव्बसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुआ | 105 (A.D.) ई० में चीनी नागरिक टस-प्लाई लून ने कपास तथा मलमल की पट्टियों से कागज बनाया जिससे कागज लेखन एवं चित्रांकन का साधन बन गया | 

जापान में छपाई – मुद्रण कला का विकास यूरोप में अधिक हुआ | इसका मुख्य कारण था कि चीनी, जापानी और कोरियन भाषा में 40 हजार से अधिक वर्णाक्षर थे | जापान में सबसे पहले 868 ई० में पुस्तक छापी गई जिसका नाम ‘डायमंड सूत्र’ था | 

        1753 ई० में एदो में जन्में कितागावा उतामारो ने उकियों अथवा तैरती दुनिया के चित्र नामक एक नई चित्रकला शैली विकसित की | 

यूरोप में छपाई और छापाखाना का इतिहास 

यूरोप में छपाई का आरंभ – रेशम मार्ग से सदियों तक रेशम तथा मसाले यूरोप आते रहते थे | 11 वीं शताब्दी में चीन से रेशम मार्ग द्वारा कागज यूरोप पहुँचा | इन कागजों पर पांडुलिपियाँ तैयार की गई | 1295 ई० में मार्कोपोलो नामक महान खोजी यात्री यूरोप के कुलीन वर्ग और भिक्षुसंघ के लिए पुस्तकें चर्म-पत्र या वेशकीमती ‘वेलम’ (Vellum) पर ही छापी जाती थी | पुस्तक विक्रेता तहत प्रकाशक अपने यहाँ वेतन पर खुशनवीश बहाल करने लगे | सिर्फ अमीर लोग ही सुलेखक या कातिब नहीं रखते थे बल्कि पुस्तक-विक्रेता भी अपने यहाँ कातिब नियुक्त करने लगे |  

       किताबों की बढ़ती माँगों के कारण हस्तलिखित पांडुलिपियों के स्थान पर वुड ब्लॉक छपाई आरंभ की गई जिससे कम लागत तथा कम परिश्रम से पुस्तकें छपने लगीं | 15 वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में बड़े पैमाने पर तख्ती की छपाई का इस्तमाल कर कपड़े, ताश के पत्ते तथा धार्मिक चित्र छापे जाने लगे | 

छापाखाना का अविष्कार – छापाखाना का अविष्कार जर्मनी के गुटेन्बर्ग ने 1450 में किया था | जर्मनी के मेन्जनगर में गुटेनबर्ग ने कृषक-जमींदार-व्यापारी परिवार में जन्म लिया था | वह बचपन से जिज्ञासु प्रवृत्ति का था | बचपन से ही तेल और जैतुन पेरने वाली मशीनों से वह परिचित था | इसी मशीन को आधार बनाकर उसने प्रिंटिंग प्रेस का अविष्कार किया | गुटेनवर्ग ने टाइप के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य आरंभ किया | मुद्रा बनाने के लिए सीसा, टिन और विसमथ धातु को मिलाकर मिश्रधातु बनाने का तरीका ढूँढ़ निकला | इस छपाई मशीन में पेंच की सहायता से लंबा हैंडल लगाया जाता था | इस हैंड़प्रेस  में लकड़ी के चौखट में दो समतल भाग-प्लेट एवं बेड एक दूसरे के नीचे सामानांतर रूप से रखे जाते थे | कंपोज किया हुआ टाइप मैटर बेड पर कस दिया जाता था |     

              गुटेन्बर्ग प्रेस में जो पहली किताब छपी वह ईसाई धर्मग्रंथ ‘बाइबिल’ थी | हरेक पन्ने का चित्र एक -दुसरे से भिन्न होता था | चित्रों को पेंट करके उसे रंगीन बनाया जाता था | अमीरों के लिए छपी किताबों में छपे पन्ने के हाशिये की जगह बेल-बूटों के लिए खाली जगह छोड़ दिया जाता था | हर खरीदार अपनी पसंद के अनुसार डिज़ाइन और पेंट पसंद कर उसे बनवा सकता था | 15वीं शताब्दी में यूरोप के बाजार में 2 करोड़ छपी हुई किताबें आई | सोलहवीं शताब्दी में यह संख्या बढ़कर 20 करोड़ हो गई | इस ‘मुद्रण क्रांति’ के आने से लोगों के जीवन में जबरदस्त बदलाव आया | 

प्रेस का धर्म पर प्रभाव – धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पंचानावें (95) स्थापनाएँ लिखी | वह चर्च में व्याप्त कुरीतियों को ख़त्म करके इनमें सुधार लाना चाहता था | अपने लेख की एक छपी प्रति उसने विटेनबर्ग चर्च के दरवाजे पर टाँग दी | प्रिंट के प्रति तहेदिल से कृतज्ञ लूथर ने कहा “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानताम् देन है, सबसे बड़ा तोहफा |” 16वीं सदी के एक चित्र ‘द मैकेबर डाँस’ (वीभत्स नाच) में छपाई के खौफ को नाटकीयता से पेश किया गया | मुद्रक के वर्कशॉप को मौत के नाच का मंच बताया तथा यह भी कहा गया | 

18वीं सदी में मुद्रण – यूरोप  में साक्षरता दर 60 प्रतिशत से 80 प्रतिशत पहुँच चुकी थी | लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो चूका था | गाँव-गाँव में विद्यालय खुल चुके थे | लोगों को किताबें चाहिए थी | अत: मुद्रक ज्यादा से ज्यादा किताबें छापने लगे थे | इसके अतिरिक्त मनोरंजन से भरपूर किताबें भी छापी गई तथा आम पाठकों तक पहुँचाई गई | इंगलैंड में ‘पेनी चैपबुक्स’ या ‘एक पैसिया किताबें ‘ बेचने वालो को चैपमैन कहा जाता था | 

     टॉमस पेन, वॉल्तेयर और ज्याँ जाक रूसो जैसे दार्शनिकों की किताबें भी भरी मात्रा में छपने और पढ़ी जाने लगीं | “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जायेगा ” | 

वाद-विवाद की संस्कृति – छपाई के कारण वाद-विवाद तथा नई संस्कृति का जन्म हुआ | अब लोगों ने पुरानी मान्यताओं पर पुनर्मुल्यांकन का सिलसिला शुरू किया | लोगों में नई चेतना जागी | लोग चर्च तथा राजशाही व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता महसूस करने लगे | फलस्वरूप सामाजिक क्रांति के नये विचारधारा का जन्म हुआ | 

उन्नीसवीं सदी का यूरोपीय साहित्य – 19वीं सदी में यूरोप में साक्षरता दर में वृद्धि हुई | बच्चों तथा महिलाओं के रूप में नये पाठक वर्ग का उदय हुआ | यूरोप में प्राथमिक शिक्षा के अनिवार्य होने के कारण बच्चों के लिए बड़ी संख्या में पुस्तकों की आवश्यकता हुई | माँग बढ़ने के कारण अधिक संख्या में पुस्तकों का   प्रकाशन शुरू हुआ | 

नये तकनीकी बदलाव – 19वीं सदी के मध्य तक न्यूयार्क के रिचर्ड एम० हो ने शक्ति से चलने वाले बेलनाकार प्रेस एवं ऑफसेट प्रेस Offset Press को कारगर बना लिया था | इससे प्रतिघंटे 8000 शीट या ताव छापे जा सकते थे | बीसवीं सदी के शुरू से ही बिजली से चलने वाला प्रेस के बल पर छपाई का काम तेजी से होने लगा | प्रेस में और भी कई तकनीकी बदलाव हुए जैसे कागज डालने की विधि में सुधार हुआ | 

भारत में मुद्रण का विकास 

 भारत में छापाखाना के आविष्कार के पहले हाथ से लिखकर पडुलिपियाँ तैयार करने की बहुत ही प्राचीन तथा समृद्ध परंपरा थी | पांडुलिपियों को मजबूती प्रदान करने के लिए उनके पन्नों को सिल कर उन्हें सजिल्द भी किया जाता था | मुगलकाल में भी अरबी तथा फारसी में पांडुलिपियाँ लिखी गई | मुग़ल सम्राट अकबर के समय एक किताबखाना खोला गया था जहाँ पांडुलिपियाँ लिखी जाती थीं तथा महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के अनुवाद किये जाते थे | 17वीं तथा 18वीं शताब्दी तक शिक्षा का पूरा प्रसा नहीं हुआ था | 

पुस्तकों की छपाई का आरंभ – प्रिंटिग प्रेस सबसे पहले भारत में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों द्वारा 16वीं सदी में गोवा में लाया गया | जेसुइट पुजारियों ने कोंकणी सीखी और कई सारी पुस्तिकाएँ छापी | कैथोलिक पुजारियों ने 1579 में पहली तमिल पुस्तक छापी |  1674 ई० तक कोंकणी और कन्नड़ भाषाओं में लगभग 50 किताबें छप चुकी थीं | 

              19वीं सदी में समाचारपत्रों का उदय हुआ तथा एक “प्रेस संस्कृति” का विकास हुआ | जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 से बंगाल गजट नामक एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन शुरू किया | 1780 में ‘इंडिया गजट’ नामक दूसरा भारतीय पत्र प्रकाशित हुआ | 18 वीं सदी के अंत तक बंगाल में ‘कलकत्ता कैरियर’ , ‘एशियाटिक मिरर’ तथा ‘ओरियंटल स्टार’ नामक समाचारपत्र प्रकाशित होने लगे थे | इसके अलावा ‘इंडिया गजट’ बंबई गजट’ , हैरल्ड तथा मद्रास कैरियर, मद्रास गजट आदि समाचारपत्र अंग्रेजों के कंपनी की तथा अंग्रेज व्यापारियों और ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की जानकारी देने के लिए प्रकाशित होने लगे थे | उनका “संवाद कौमुदी 1821 में भारतीय भाषा में प्रकाशित होने वाला पहला समाचारपत्र था | उन्होंने 1822 में फारसी में भी एक समाचारपत्र निकाला जिसका नाम “मिरातुल अखबार” था | राममोहन राय ने अंग्रेजी में ब्रह्मिनिकल मैगजीन भी प्रकाशित क्या | 1822 में बंबई से गुजराती दैनिक समाचारपत्र “दैनिक बंबई ” का भी प्रकाशन हुआ | द्वारकानाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राजा राममोहर राय के प्रयास से 1830 में बंगदत्त की स्थापना हुई | 1831 में ‘जामें जमशेद’ , 1851 में ‘गोफ्तार’ तथा अखबारे सौदागर प्रकाशित किया गया |

भारत प्रेस की विशेषताएँ-बदलते परिप्रेक्ष्य में                  

1857 के ‘सिपाही विद्रोह’ के बाद समाचारपत्रों की प्रकृति का विभाजन प्रजातीय आधार पर किया गया | भारत में दो प्रकार के प्रेस कार्यरत थे | (i) एंग्लोइंडियन प्रेस तथा (ii) भारतीय प्रेस | एंग्लोइंडियन प्रेस की प्रकृति और आकार विदेशी था | यह भारतीयों में “फूट डालो और शासन करो” की नीति पर आधारित था | यह दो संप्रदायों के बीच एकता के प्रयास का घोर आलोचक था | इसे अंग्रेज सरकार द्वारा समर्थन और संरक्षण प्राप्त था | सरकारी समाचार तथा विज्ञापन इसे ही प्राप्त होते थे | सरकार से इसके घनिष्ठ संबंध होने से इसे कई विशेषाधिकार प्राप्त थे |

भारतीयों द्वारा प्रकाशित समाचारपत्र एवं पत्रिकायें – 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में बहुत सारे भारतीयों ने समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं को प्रकाशित किया | 1858 में पं० ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने ‘सोम प्रकाश’ नामक पत्रिका का प्रकाशन साप्ताहित रूप से बंगला में प्रारंभ किया | ‘वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट’ लागू किया | कुछ दिनों बाद ईश्वरचंद्र ने हिंदू पैट्रियट का भी संपादन किया | 1874-75 के बीच लंदन में इसी पत्र के संवाददाता सुरेन्द्रनाथ टैगोर तथा मनमोहन घोष ने ‘इंडियन मिरर’ का प्रकाशन शुरू किया | यह उत्तरी भारत का भारतीयों द्वारा संपादित एक मात्र दैनिक समाचारपत्र था | केशवचंद्र ने ‘सुलभ समाचार’ नामक बंगाली भाषा में दैनिक समाचारपत्र का प्रकाशन किया | 

              मोतीलाल घोष के संपादन में 1868 में अंग्रेजी बंगला अमृत बाजार पत्रिका साप्ताहिक रूप में आरंभ किया | 1878 में लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के पारित होने के बाद  इसका प्रकाशन अंग्रेजी भाषा में होने लगा | ‘हरिश्चंद्र’ प्रकाशित किया जिसमें देश प्रेम तथा समाज सुधार को प्रमुख स्थान दिया गया | राष्ट्रवादी विचारों की अभिव्यक्ति करने वाली पत्रिका में बालकृष्ण भट्ट का हिंदी प्रदीप रामकृष्ण वर्मा के ‘भारत जीवन’ का महत्त्वपूर्ण स्थान है | अंग्रेजी मासिक पत्रिका ‘हिंदुस्तान रिव्यू’ की स्थापना 1899 में सच्चिदानंद सिन्हा ने की | 1862 में एम० जी० रणाडे ने ‘इंदु प्रकाश’ तथा 1913 में फिरोज शाह मेहता ने ‘बाम्बे क्रॉनिकल’ का प्रकाशन किया | 

 

 

Learn More Chapters          Download PDF

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *