प्राकृतिक संसाधन ( Natural resource )- Bihar Board Class 10th Chemistry Subjective Question-answer 2023

लघु उत्तरीय प्रश्न  

  1. वर्षा – जल के संचयन की परंपरागत पद्धतियाँ कौन – कौन – सी हैं ?  

उत्तर – वर्षा – जल के संचयन की परंपरागत पद्धतियाँ इस प्रकार हैं – ( i ) छोटे – छोटे गड्ढे खोदना , ( ii ) छोटे – छोटे मिट्टी का बाँध बनाना , ( iii ) बालू तथा संगमरमर के जलाशय बनाना तथा ( iv ) मकान के छत पर जल – संचयन तंत्र लगाना | 

     2. वन के संरक्षण के उपायों का उल्लेख करें | 

उत्तर – वनों के संरक्षण हेतु हमें निम्नांकित प्रयास करने चाहिए | 

  1. बचे हुए वन क्षेत्रों का संक्षण करना चाहिए | 
  2. वनों की कटाई को विवेकपूर्ण बनाना चाहिए | इसके अंतर्गत वन में केवल उन्हीं पेड़ो के कटाने की अनुमति की जानी चाहिए जो सुख गए हैं अथवा परिपक्व़ ( mature ) हो चुके हैं | 
  3. बंजर तथा परती भूमि पर सघन वृक्षारोपण के कार्यक्रम का संचालन करना चाहिए |  
  4.  जनता में जागरूकता पैदा कर उन्हें वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित कारन चाहिए |
  5. बायोगैस संयंत्र लगाना तथा गैस के कनेक्शन उपलब्ध कराना चाहिए | 
  6. बाँधों के तटबंधों तथा आसपास के क्षेत्र को वनाच्छादित बनाना चाहिए |                                                                                                                                     इन सारे कार्यो के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को भी प्रोत्साहित करना चाहिए       

      3.  जल संचयन के लिए क्या – क्या उपाय किए जाने चाहिए ? 

उत्तर – प्राचीन काल से मानव छोटे – छोटे मिट्टी के बाँध बनाकर , तालाबा , पोखर आदि बनाकर , नहरें बनाकर , बालू तथा संगमरमर के जलाशय बनाकर तथा माकन के छत पर वर्षा – जल का संचय तंत्र लगकर जल का संचयन करते आ रहे हैं | इन प्राचीन पद्धतियों  को आज भी प्रधामिकता देने की आवश्यकता हैं | इनके अलावे विशाल बाँध बनाने एवं दूर तक जानेवाली नहरों की खुदाई की परियोजनओं को क्रियान्वित करने के आवश्यकता है ताकि जल पुरे वर्ष उपलब्ध रह सके | 

    4. जल – संचयन क्या है ? 

उत्तर – जल हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है | इसका उपयोग हम प्रतिदिन अनेक प्रयोजनों में करते हैं | जनसंख्या – वृद्धि तथा उद्दोजिकरण के कारण धरातलीय तथा भूमिगत जल – भंडारों से जल का दोहन तेजी से किया जा रहा है |फलत: , जल की अनेक क्षेत्रों में उपलब्धता के समस्या गंभीर होती जा रही है | भूमिगत जल – स्तर लगातार निचे गिरता जा रहा    है | भूमिगत जल का परिपूरण वर्षा के जल से होता है | हमारे देश में वर्षा मुख्यत: मानसून पर निर्भर करती है | वर्षा की अवधि वर्ष के कुछ महीनो तक ही सिमित रहती है | अतः वर्षा के जल का अधिक – से – आधिक भंडारण कर उपयोग किया जाना चाहिए ताकि भूमिगत जल – स्तर बना रहे | जल – भण्डारण के प्रक्रिया जल – संचयन कहलाती है | 

     5. वन एवं  वन्यजीवों के संरक्षण के विभिन्न उपायों का उल्लेख करें | 

उत्तर – वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्नांकित  उपाय करने चाहिए | 

  1. पशु – पक्षियों की सुरक्षा के लिए वन विहार , राष्ट्रिय उद्दान एवं अन्य प्राकृतिक क्षेत्रों की स्थापना तथा इन क्षेत्रों में उनके आवास के अनुकूल वातावरण उपलब्ध करना | 
  2.  लुप्त होती जा रही प्रजातियों ( जैसे – गिर – शेर ) की संख्या बढ़ाने के लिए परियोजना बनाना |
  3.  जानवरों के शिकार पर लगे प्रतिबन्ध का कड़ाई से पालन करना | 

     6. गंगा को प्रदूषित करनेवाले मुख्य कारक क्या हैं ? 

उत्तर – गंगा गंगोत्री से गंगासागर तक फैली हुई है | इसके प्रदुषण का मुख्य कारण इसके किनारे स्थित उत्तर प्रदेश , बिहार एवं बंगाल के 100 से भी अधिक नगरों द्वारा उत्सर्जित कचरा  ( वर्ज्य पदार्थ ) एवं मल – जल का इसमें प्रवाहित किया जाना है | इसके अतिरिक्त मानव के अन्य क्रियाकलाप ,  जैसे – स्नान करना , कपड़ा धोना , किनारे पर मल – मूत्र का त्याग करना , मनुष्यों एवं पशुओं के मृत शरीर या राख को बहा देना आदि भी इसके प्रदुषण के कारण हैं | औद्दोगिक कचरों के उत्सर्जन ने गंगा का प्रदुषण – स्तर इतना बाढा दिया है कि गंगा का जल विषैला हो गाया है | फलस्वरूप जल में मछलियाँ मरने लगी हैं |

      7. बाँध से हमें क्या लाभ होता है ? बताएँ | 

उत्तर – बाँध से हमें निम्नांकित लाभ हैं | 

  1. यह सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराता है | सिंचाई के लिए बाँध के जल को नहर द्वारा दूर – दूर तक ले जाया जाता है | उदाहरणार्थ, इंदिरा गाँधी नहर ने राजस्थान के बड़े क्षेत्र को हरित किया है | 
  2. बाँधो ( dam ) के निर्माण का उद्देश्य बिजली का उत्पादन भी है | इसके लिए नदियों पर डैम बनाए जाते हैं तथा डैम की पेंदी में जलविधुत – शक्ति संयंत्र लगाए जाते हैं | डैम के उपरी भाग से जल को संयंत्र पर गिराया जाता है जिसके फलस्वरूप बिजली उप्तन्न होती हैं |  

     8. वनों की कटाई का वन्य जीवों पर क्या प्रभाव पड़ा है ? 

 उत्तर – वनों की कटाई से उनकी सघनता तथा उनका क्षेत्रफल कम होने लगा है | निर्विनिकरण के कारण वन्य जीवों का जीवन संकट में पड़ गया है | पहले से ही मनुष्य मनोरंजन के लिए तथा वन्य जीवों के खाल , सींग , दाँत आदि प्राप्त करने के लोभ से बड़ी संख्या में वन्य जीवों की हत्या कर उनकी संख्या कम कर चूका है | किन्तु , आजकल जनसंख्या – वृद्धि तथा उद्दोगीकरण के कारण वनो की तेजी से कटाई हो रही है | निर्वनीकरण के करण वन्य जीवों के प्राकृतिक आवस समाप्त होते जा रहे हैं | फलत: , अनेक वन्य प्राणी लुप्त हो गए तथा आधिकांश लुप्त होने के स्थिति में हैं | 

    9. कोयला एवं पेट्रोलियम का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए , क्यों ? 

उत्तर – कोयला एवं पेट्रोलियम जीवाश्म ईंधन हैं | इनके निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं | पृथ्वी के अंदर इनकी मात्रा भी सिमित है | यदि ये एक बार समाप्त हो गए तो निकट भविष्य में इनकी पूर्ति संभव नहीं होगी | ऐसी स्थिति में मानव समाज को लाखों वर्षो तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है और इस बीच समाज का विकास बाधित हो जाएगा | अतः , इनके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इनकी खपत विवेकपूर्ण ढंग से करनी चाहिए ताकि आनेवाले आधिक – से – आधिक समय तक हम इनका उपयोग कर सकें | 

    10. जल – संग्रहण आवश्यक है , क्यों ? 

उत्तर – जल को जीवन – सार ( essence of life ) कहते हैं , क्योंकि इसके बिना जीवन संभव नहीं है | इसका उपयोग हम प्रतिदिन अनेक प्रयोजन , जैसे – दैनिक कार्यों , शारीरिक क्रियाओं , सिंचाई , बिजली – उत्पादन तथा तकनीकी विकास आदि में करते हैं | औधोगिक क्रांति एवं जनसंख्या – वृद्धि के कारण जल की माँग में काफी वृद्धि हुई है, परंतु उसकी उपलब्धता में कमी आई है | भूमिगत जल के भंडारों में कमी आई है तथा भूमिगत जलस्तर गिरता जा रहा है | फलत: शहरों में जलापूर्ति की समस्या गंभीर होती जा रही है | अतः वर्षा – जल का संग्रहण आवश्यक है ताकि भूमिगत जलस्तर बरकरार रहे | 

  11. कूड़े-कचरों का पुनर्चालन से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – प्लास्टिक, कागज, काँच धातु के टुकड़े आदि यानी कूड़े- कचरों का पुनर्चालक आसानी से किया जा सकता है | इन वस्तुओं को गलकर नई प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है | रसोई घर के नम कचरे का पुनर्चालन कर कम्पोस्ट बनते हैं जिसका जैविक खाद के रूप में उपयोग होता है | कुछ सूखे कचरों का पुनार्चालन कर नई वस्तुएँ प्राप्त करते हैं | धातुओं के कचरे को अलग-अलग छाँटकर पुनर्चालन कर संबंधित धातु के सामान बनाये जाते हैं |  बड़े-बड़े  शहरों में ऐसे कचरे के पुनर्चालन करने वाले बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ संचालित   हैं |        

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

  1. ‘चिपको आंदोलन’ क्या है ? समझाकर लिखें |  

उत्तर – चिपको आंदोलन वनवासियों को वनों से अलग करने की अँगरेज शासकों की नीति तथा ठेकेदारों द्वारा पेड़ – पौधों के अंधाधुंध कटाई को रोकने के प्रयास का ही परिणाम   है | 1970 के दशक में , गढ़वाल ( उत्तराखंड ) के पहरों पर स्थिर रेनी ग्राम में इमारती लकड़ी के ठेकेदारों के हाथों वनों का विनाश रोकने के लिए स्थानीय महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर एक जनांदोलन किया था | 1730 के लगभग राजस्थान के खेजरी ग्राम में खेजरी वृक्षों को बचने हेतु अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्त्व में पेड़ों से चिपककर महिलाओं के जान देने की घटना की याद में लोगों ने इस आंदोलन को चिपको आंदोलन नाम दिया | इसका समर्थन अनेक विशिष्ट व्यक्तियों ने भी किया | इस आंदोलन ने ठेकेदारों को हरे – भरे वृक्षों को काटने से तो रोका ही,  सरकार एवं आम नागरिको का ध्यान पर्यावरण सुरक्षा – संबंधी आवश्यकताओं की ओर भी खींचा | 

         2. ऊर्जा संकट क्या है ? इसके समाधान के उपायों का उल्लेख करें | 

उत्तर – ऊर्जा के प्रमुख स्रोत जीवाश्म ईंधन अर्थात् कोयला एवं पेट्रोलियम हैं पृथ्वी के अंतर इनकी मात्रा भी सिमित है | औधोगिकर्ण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण इनकी मांग भी कई गुना तेजी से बढ़ी है | हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उनका निर्ममतापूर्वक दोहन कर रहे हैं | ऊर्जा के इन स्रोतों का उपयोग हम अपनी दैनिक ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति तथा जीवनोपयोगी पदार्थो के उत्पादन हेतु कर रहे हैं | चूँकि इनके भंडार सीमित हैं , अतः इनके एक बार समाप्त हो जाने पर निकट भविष्य में इनकी पूर्ति संभव नहीं होगी | इसका कारण है की इनके निर्माण में लाखों वर्षो का समय लगता है | इस प्रकार देश में ऊर्जा की  कमी  हो जाएगी जिससे जसका विकास अवरूद्ध  हो जाएगा | अतः देश को ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ेगा |                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   ऊर्जा के महत्त्व को ध्यान में रखकर ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग विकेकपूर्ण ढंग से करने की आवश्कता है ताकि आनेवाले अधिक-से-अधिक समय तक हम इनका उपयोग कर सकें | ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों की उपलब्धता सीमित होने के कारण इसके वैकल्पिक स्रोतों के खोज करने की आवश्यकता भी महसूस की जाती है | ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत हैं – सौर ऊर्जा ( solar energy ), पवन ऊर्जा ( wind energy ) तथा जैव स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा अर्थात् बायोगैस आदि | ऊर्जा के इन स्रोतों के विकास से अनेक कार्यो के लिए ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है | आजकल परमाणु ऊर्जा की चर्चा जोरों पर है | इसके उत्पादन की क्षमता विकसित करके भी हम देश को ऊर्जा संकट से काफी हद तक उबार सकते हैं |  

 

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