हमारे चारों और भिन्न-भिन्न प्रकार के विविधता वाले जीव पाए जाते हैं, जिनके आकार, आकृति, भोजन, आवास, रंग आदि अलग-अलग होते हैं | जीवों की भिन्नता का प्रभावी ढंग से अध्ययन करने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के जीवों को सुव्यवस्थित या क्रमबद्ध तरीके से सजाना होता है |
- वर्गीकरण ( Classification )– जीवों की विविधता के अध्ययन को सहज करने हेतु हम उसकी समानताओं एवं विषमताओं के आधार पर उन्हें विभिन्न समूहों में बाँटते हैं, जिसे वर्गीकरण ( Classification ) करते हैं | जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवों का सुव्यवस्थित और क्रमानुसार विभिन्न समूहों में विभाजन, उनका जैविक नामकरण तथा उसके संबंधित सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है | उसे वर्गिकी तथा वर्गीकरणविज्ञान ( Taxonomy ) कहते हैं | कैरोलस लिन्नियस ( Carolus Linnaeus, 1707 – 78 ) ने अठारहवीं शताब्दी में सर्वप्रथम वर्गिकी या टैक्सोनाॅमी ( Taxonomy ) की स्थापना की, अत: उन्हें वर्गिकी का जनक ( Father of taxonomy ) कहा जाता है | लिन्नियस की योजना के अनुसार वर्गीकरण की केवल चार ही इकाइयाँ थी, जैसे संघ ( phylum ), वर्ग ( Class ), वंश ( Genera ) तथा जाति ( Species ), किन्तु उनके समय से केवल अब तक इसमें और भी अनेक इकाइयाँ जोड़ी जाती है | इसके फलस्वरूप गर्गीकरण की अब अनेक इकाइयाँ हैं, जैसे संघ, वर्ग, गण ( Order ), कुल ( Family ), वंश तथा जाति | इन इकाइयों को और छोटी इकाइयों में बाँटा जा सकता है | जैसे उपसंघ ( Subphylum ), उपवर्ग ( Subclass ), उपवंश ( Subgenus ) तथा उपजाति ( Subspecies )
आर हिटेकर ( R Whittaker ) ने 1969 में पाँच जगत वर्गीकरण ( Five kingdom classification ) को स्थापित किया | ये पाँच जगत है –
- जगत मोनेरा ( Kingdom Monera )
- जगत प्रोटिस्टा ( Kingdom Protista )
- जगत फंजाई ( Kingdom Fungi )
- जगत प्लांटी ( Kingdom Plantae )
- जगत एनिमेलिया ( Kingdom Animalia )
- मोनेरा – इस जगत में सबसे प्रचीन, सरल तथा प्रोकैरियोटिक सूक्षमजीवों को सम्मिलित किया है | ये सर्वव्यापी होते हैं एवं प्रतिकूल वातावरण में भी पाए जाते हैं | इस जगत के जीव पोषण की दृष्टि से स्वपोषी या परपोषी दोनों हो सकते हैं | से स्वपोषी या परपोषी दोनों हो सकते हैं |
- प्रोटिस्टा – इस जगत में मुख्यत: विभिन्न प्रकार के जलीय, एककोशिकीय, सरल, यूकैरियोटिक सूक्ष्मजीवों को सम्मिलित किया गया है | इस जगत के प्रायः जीवों में प्रचलन के लिए रोम सीलिया ( Cilia ) या फ्लैजिला ( Flagella ) पाए जाते हैं | पोषण की दृष्टि से कुछ प्रकाशसंश्लेषित यानी स्वपोषी एवं कुछ परपोषी होते हैं | जैसे – यूग्लीना, अमीबा, पैरामीशियम |
- फंजाई – इस जगत में उन बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों को सम्मिलित किया गया है जो पौधे तो है लेकिन इसमें क्लोरोफिल वर्णन नहीं पाया जाता है | इनमें कोशिकभिती होती है | ये परजीवी, सहजीवी और मृतजीवी हो सकते हैं | इनके शरीर की संरचना धागे जैसे कवकजाल या माइसीलीयम ( Mycelium ) की तरह होती है एवं प्रत्येक कवकजाल से पतले तंतु या हाइफा निकलते हैं, जैसे म्यूकर ( Mucor ), पेनिसिलियम ( Penicillium ) आदि |
- प्लांटी – इस जगत में यूकैरियोटिक, प्रकाशसंश्लेषी, बहुकोशिकीय तथा कोशिकाभिति वाले जीवों को सम्मिलित किया गया है | इनमें जलीय तथा स्थलीय दोनों प्रकार के पौधे आते हैं | इसमें हर प्रकार के पौधे ( कुछ शैवाल, जैसे डायटम आदि को छोड़कर ) को शामिल किया गया है | ये स्वपोषी होते हैं |
- एनिमेलिया – इस जगत में ऐसे सभी यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय जीवों की रखा गया है जिनकी कोशिकाओं में कोशिकभिती नहीं पाई जाती है तथा ये जीव परपोषी होते हैं | इनका विस्तार से वर्णन इसी अध्याय में प्लांटी के बाद करेंगे |
प्लांटी या पादप जगत
आइकलर ( Eichler ) ने 1883 में पादप जगत को दो उपजगतों में बाँटा -(i) क्रिप्टोगैम्स और (ii) फैनरोगैम्स
(i) क्रिप्टोगैम्स – क्रिप्टोगैम्स में पौधे बीजरहित होते हैं इनमे वास्तविक जड़, तना तथा पत्ती नहीं होती | उपजगत क्रिप्टोगैम्स को तीन विभागों में बाँटा जाता है | थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा एवं टेरिडोफाइटा
(ii) फैनरोगैम्स– फैनरोगैम्स में उच्चकोटि के बीजयुक्त पौधों को सम्मिलित किया गया है इनमे वास्तविक जड़, तना तथा पत्ती होती | उपजगत फैनरोगैम्स को दो विभागों में बाँटा जाता है | (i) जिम्नोंस्पर्स या अनावृतबीजी ( नग्नबजी ) और (ii) एंजियोस्पर्स या आवृतबीजी |
थैलोफाइटा –
- इनका शरीर जड़, तना एवं पत्तियों में विभाजित नहीं रहता है, लेकिन यह एक थैलस ( Thallus ) के रूप में रहता है, इसलिए इन्हें थैलोफाइटा कहते हैं |
- इनमें संवहनीय यंत्र नहीं पाया जाता है |
- शैवाल तथा लाइकेन को इसके अंतर्गत शामिल किया गया है |
ब्रयोफाइटा –
- इस विभाग के पौधे भूमि पर नम एवं छायादार स्थानों पर उगते है अत: इन्हें पादप वर्ग का उभयचर ( Amphibians of the plant Kingdom ) कहा जाता है |
- अधिकांश पौधे हरें एवं छोटे होते हैं |
- इनका शरीर थैलस के रूप में होता है या फिर तना और पत्तियों जैसी रचना में विभेदित रहता है | वास्तविक जड़ नहीं पाए जाते हैं |
- इनमें संवहन ऊतक यानी जाइलम एवं फ्लोएम अनुपस्थित रहते हैं |
- इनका मुख्य उदाहरण रिक्सिया, मॉस, मर्केशिया
टेरिडोफाइटा –
- इस विभाग के पौधों का शरीर जड़, तना और पत्तियों में विभाजित रहता है |
- इनमें संवहन मौजूद रहते हैं, जिसके द्वारा जल तथा अन्य पदार्थों का स्थानांतरण होता है |
- अधिकांश: छायादार या नम स्थानों में पाए जाते हैं |
- इन पौधों में बीज नहीं बनता है | इसलिए इन्हें विकसित बीजरहित पौधा कहा जाता है |
- सभी फर्न इसके उदाहरण है |
जिम्नोस्पर्म –
- इन पौधें में फलों के भीतर नहीं बनते, इसलिए बीजों के बाहर फल का कोई आवरण भी नहीं होता | यही कारण है कि ऐसे बीजों के नग्नबीजी भी कहा जाता है | बीज, आवरण से ढँका नहीं होता, इसलिए इन्हें अनावृतबीजी भी कहते हैं |
- इनमे फूल का आभाव होता है |
- ये पौधे में जड़े, तना एवं पत्तियाँ विकसित होती है |
- इन पौधों में जड़े उदाहरण साइकस एवं पाइनस
एंजियोस्पर्म –
- यह पादप जगत का सबसे बड़ा समूह है |
- ठसमें बीच हमेशा फल के भीतर ही पाए जाते हैं |
- मनुष्य के अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति इन्ही पौधों से होती है | समस्त प्रकार के अनाज, दाले, तेल, फल, सब्जियाँ इन्ही पौधों से प्राप्त होती है |
- इनमें भोजन का संचय या तो भ्रूणपोष में य भिजपत्रों में होता है |
- इनमें भोजन का संचय या तो भ्रूपपोष में या बीजपत्रों में होता है | बीजों में बीजपत्र की संख्या के आधार पर इसे दो भागों में बाँटा गया है | –
- एकबीजपत्री या मोनाकॉटिलीडन्स
- द्विबीपत्री या डाइकॉटिलीडन्स
- मोनाकॉटिलीडन्स –
- इनके बीजों में केवल एक ही बीजपत्र मौजूद होता है | इसलिए इन्हें एकबीजपत्री कहते हैं |
- पतली पती पर शिरा – विन्यास सामानांतर होता है |
- इनके संवहन बंडल ( जाइलम एवं फ्लोएम ) फैले हुए रहते हैं |
- इनमे रेशेदार जड़ तंत्र होता है |
- डाइकॉटिलीडन्स –
- इनके बीजो में दो बीजपत्र म्मौदूद होते हैं | इसलिए इन्हें द्विबीजपत्री भी कहते हैं |
- इनके पत्तियों में जालिकावत शिराविन्यास रहता है |
- इनमें पाया जानेवाला संवहन बंडल वलयाकार रूप में व्यवस्थित रहते हैं |
- इनका जड़ – तंत्र अधिमूल एवं उसकी शाखाओं के साथ फैला रहता है |
- आम, लीची,, बरगद, कटहल
जंतु जगत के वर्गीकरण का स्वरूप
- पॉरिफेरा –
- ये बहुकोशिकीय जंतु है | इनमें अधिकांश समुद्र में पाए जाते हैं | ये सामान्यत: स्पंज कहलाते हैं |
- ये स्थानबद्ध होते हैं तथा किसी आधार से चिपके हुए पाए जाते हैं |
- शारीरिक रचना अत्यंत सरल होती है | शरीर में ऊतक नहीं होते हैं |
- शरीर कठोर बाह्यकंकाल से ढँका होता है | कंकाल के काँटे के समान कुछ संरचनाएँ होती है |
- प्रजनन साधरणत: अलैगिक विधि से मुकुलन या जेम्यूल द्वारा होता है |
- ये द्विलिंगी ( Hermaphrodite ) होते हैं |
जैसे – साइकन, हाइ लोनेमा, योप्लेकटेलम, यूस्पोजिया, स्पंजिला
- सिलेटरेटा या नाइडेरिया –
- ये जलीय, अधिकांश समुद्री, एकाकी ( Solitary ) या संघचारी ( Colonial ) जंतु है |
- ये दिप्लोब्लास्टिक या द्विस्तरीय प्राणी हैं |
- शरीर का बाह्य स्तर एक्टोडर्म ता गैस्टोडर्मिम होता है |
- कोशिकाओं में स्थायी श्रम – विभाजन ( Division of labour ) पाया जाता है |
- ये मुकुलन द्वारा अलैंगिक प्रजनन करते हैं | लैगिक प्रजनन में शुक्राणुओं एवं अंडाणुओं का निर्माण होता है |
जैसे – हाइड्रा, फायासेलिया, ऑरिलिया, समुद्री एनीमोन, कोरल
- प्लेटीहेल्मिन्थीज –
- ये ट्रिप्लोब्लास्टिक या त्रिस्तरीय एवं द्विपर्श्व सममित होते हैं |
- ये परजीवी होते हैं |
- ये देहगुहारहित ( acoelomate ) जंतु है |
- इनका शरीर पृष्ठ-अधोदिशा ( dorsoventrally )
- आहारनाल केवल मुँह द्वारा बाहर खुलता है |
- श्वसनांग, कंकाल तंत्र, रुधिर परिवहन तंत्र विकसित नहीं होते होते हैं |
- ये उभयलिंगी जंतु हैं |
जैसे – प्लेनेरिया, फैसिओला, टीनिया, सिस्टोसोमा
- एस्केल्मिन्थीज –
- इनका शरीर अखंडित तथा द्विपार्श्व सममित होता है |
- ये लंबे और बेलनाकार ( cylindrical ) पाया जाता है|
- शरीर में मिथ्या देहगुहा ( false coelom ) पाया जाता है |
- आहारनाल विकसित तहत मुखद्वार एवं गुदा ( anus ) भी उपस्थित होते हैं |
- अन्य अंगतंत्र जैसे श्वसन तंत्र, रक्त परिसंचरण तंत्र नहीं होते हैं |
- ये एकलिंगी होते हैं |
- ये अधिकांशत: परजीवी होते हैं |
जैसे – एस्केरिस, वूचेरेरिया, ऐनकाइलोस्टोमा
- एनीलिडा –
- ये जंतु साधारणत: स्वतंत्रजीवी, कुछ परजीवी ( जैसे जोंक ) ट्रिप्लोब्लास्टिक तथा द्विपर्श्व सममित होते हैं |
- ये स्थल एवं जल दोनों जगहों में पाए जाते हैं |
- इनमें वास्तविक देहगुहा ( true coelom ) पाया जाता है |
- शरीर में अनेक खंड ( segments ) होते हैं |
- इनकेअंगतंत्र विकसित एवं सुव्यवस्थित होते हैं |
- ये एकलिंगी एवं उभयलिंगी दोनों प्रकार के होते हैं |
- आर्थ्रोपोडा –
- ये जल ( मृदुजलीय एवं समुद्री ) तथा स्थल के सभी प्रकार के वासस्थानों में पाए जाते हैं |
- इनका शरीर द्विपार्श्व सममित, ट्रिप्लोब्लास्टिक तथा खंडित ( segmented ) होता है |
- इनमें मजबूज संधित उपांग ( jointed appendeges ) होते हैं |
- संपूर्ण शरीर कठोर निर्जीव क्यूटिकल के बाह्य कंकाल ( exoskeleton ) से ढँका होता है |
- इनके देहगुहा में रक्त भरा होता है |
- आहारनाल पूर्ण होता है |
- श्वसन गिल्स, ट्रैकिया ( trachea ) या बुक लंक ( book lung ) द्वारा होता है |
- इनमें खुला रक्त परिसंचरण तंत्र होता है |
- उत्सर्जी अंग मैलपीगियन नलिकाएँ ( Malpighian tubules ) होती हैं |
- ये एकलिंगी होते हैं |
जैसे – झींगा, केकड़ा, तिलचट्टा, मच्छर, मक्खी, गोजर, बिच्छू
- मोलस्का ( Mollusca )
- शरीर अखंडित ( unsegmented ) तथा द्विपर्श्व सममित होता है |
- इनका शरीर एक कोमल झिल्ली द्वारा ढँका रहता है, जिसे प्रावार या मेंटल (mantal) कहते हैं |
- शरीर प्रायः कैल्सियम कार्बोनिट के एक कवच (shell) से ढँका रहता है |
- हृदय पृष्ठभाग में हृदयावरण ( pericardium) के अंदर स्थित होता है |
- रक्त परिसंचरण तंत्र खुला (open) होता है |
- श्वसन, गिल्स / तेनिडिया (ctenidia) या फुफ्फुस (pulmonary sac) के द्वारा होता है |
- देहगुहा छोटी होती है |
- पाद पेशीयुक्त (musular) होता है |
- ये सामान्यत: एकलिंगी होते हैं | कुछ द्विलिंगी भी होते हैं |
जैसे – काईटन, घोंघा, सीप, ऑक्टोपस, सीपिया |
- इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata) –
- इस संघ के जंतु समुद्री होते हैं |
- ये भ्रूणावस्था में द्विपार्श्व-सममित, किंतु प्रौढ़ावस्था में त्रिज्यक सममित (radially symmetrical) होता है |
- देहगुहा विकसित होती है |
- इसमें एक विशेष प्रकार का जल-परिवहन तंत्र या जलसंवहन नाल तंत्र (water vascular system) होता है |
- ये एकलिंगी होते हैं |
- जैसे – तारा मछली (starfish), समुद्री खीरा (sea cucumber), सी अर्चिन (sea urchin), ब्रिटेंलस्टार (brittlestar), एंटीडॉन (Antedon)
- प्रोटोकॉर्डेटा (Protochordata)
- इस संघ के जंतुओं में नोटोकॉर्ड (notochord) उपस्थित होता है | नोटोकॉर्ड लचीली छड़ के समान रचना है जो शरीर के पृष्ठीय तल पर स्थित होती है |
- ये द्विपार्श्व सममित तथा ट्रिप्लोब्लास्टिक होते हैं |
- इनके शरीर में वास्तविक देहगुहा (true coelom) पाई जाती है |
- जोड़े क्लोम छिद्र या गिल छिद्र (gills slit) ग्रसनी (pharynx) में खुलते हैं |
जैसे – बैलेनोग्लोसस (Balanoglossus), एम्फीऑक्सस या बैंकिओस्टोमा (amphioxus or Branchiostoma)
- कॉर्डेटा (Chordata)
- ये जल और स्थल में पाए जानेवाले ट्रीफ्लोब्लास्टिक, सिलोमेट (त्रिस्तरीय, सिलोमेट) जंतु हैं |
- इनमें नोटोकॉर्ड या पृष्ठरज्जु (dorsal notochord) उपस्थित होता है |
- ग्रसनी क्लोम या ग्रसनी गिल छिद्र (pharyngeal gill slits) उपस्थित होते हैं |
- रुधिर परिसंचरण तंत्र (blood vascular system) बंद होता है |
- पुच्छ गुदा के पीछे (postanal tail) स्थित होता है |
- उपसंघ वर्टिब्रेटा (Subphylum Vertebrata)
- उपसंघ वर्टिब्रेटा के सभी जन्तुओं में नोटोकॉर्ड उपस्थिया अस्थि (cartilage or bone) के बने मेरुदंड रज्जु (vertebral column) द्वारा प्रतिस्थापित (replaced) हो जाता है |
- इन जंतुओं का मस्तिष्क (brain) जटिल होता है |
- सिर में विशेष प्रकार के जोड़े संवेदी अंग (sense organ) होते हैं, जिनसे वर्तिब्रेट जंतु देखने, सुनने तथा सूँघने जैसे कार्य करते हैं |
उपसंघ वर्टिब्रेटा को पाँच प्रमुख वर्गों ए बाँटा गया है |
- मत्स्य या पीसीज (Pisces) –
- इसके अंतर्गत मछलियाँ आती हैं जो लवणीय (marine) और मृदु जल (freshwater) में पाई जाती हैं |
- इनका शरीर धारारेखीय (stremline) होता है |
- इनकी त्वचा शल्कों (scales) से ढँकी होती है | इनमें तैरने के लिए फख (fins) तथा मांसल पूँछ होते हैं |
- ये अनियततापी या असमतापी या शीतराक्तीय (cold blooded) होते हैं |
- ये जल में अंडे देनेवाले (oviparous) वर्टिब्रेट हैं |
- ये जल ए अंडे देनेवाले (oviparous) वर्तिब्रट हैं |
जैसे – स्कोलिओडोन (Scoliodon), इलेक्ट्रिक रे, (Labeo), कतला (Catla), एनाबस (Anabas – clinbing perch)
- एम्फिबिया (Amphibia)
- ये जल और स्थल दोनों पर निवास करने के सक्षम होते हैं |
- यह अनियततापी या शीतरक्तीय (cold-blooded) जंतु है |
- इनकी त्वचा ग्रंथिमय (glandular) होता है | त्वचा पर शल्क नहीं होता है |
- श्वसन त्वचा, गिल्स और फेफड़े द्वारा होता है |
- अत: कंकाल अस्थि का बना होता है |
- हृदय में तीन कक्ष या वेश्म दो अलिंद (auricles) एवं एक निलय (ventricle) होते हैं |
जैसे – मेढक, टोड, धात्री दादुर, हायला
- रेप्टीलिया (Reptilia)
- ये जल और स्थल दोनों पर निवास करने में सक्षम होते हैं |
- ये रेंगकर चलते हैं |
- ये शीतरक्तीय (अनियततापी) होते हैं |
- श्वसन फेफड़ों के द्वारा होता है |
- इनके ह्रदय में सामान्यत: तीन वेश्म या कक्ष होते हैं |
- अत: कंकाल अस्थि का बना होता है |
जैसे – कछुआ (tortoise), छिपकली (house lizard), ड्रैको (flying lizard), अजगर (python), कोब्रा (cobar), करैत (karait)
- एवीज (Aves)
- इस वर्येग के अंतर्गत पक्षी होते हैं |
- नियाततापी (warm-blooded) जंतु हैं |
- शरीर परों (feathers) से ढँका रहता है |
- जबड़ों में दाँत नहीं होते हैं |
- श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है |
- ह्रदय चार वेश्मों में बाँटा होता है |
- कंकाल स्पंजी (spongy) तथा हलका होता है |
- ये अंडज (oviparous) होते हैं |
जैसे – कबूतर (pigeon), गौरैया (sparrow), मयना (mayna), मोर (peacock), तोता (parrot)
- स्तनी या मैमेलिया (Mammalia)
- ये नियततापी होते हैं |
- त्वचा बाल या रोम (hairs) में ढँका रहता है |
- बाह्यकर्ण (pinna) उपस्थित है |
- इनमें स्तन (mammary gland) पाए जाते हैं |
- श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है |
- हृदय में चार कोष्ठ होते हैं |
- इनमें अंत: निषेचन होता है |
जैसे – बतखचोंचा (Platypus), कंगारू (Macropud), चमगादड़, गिलहरी, खरहा (Oryctolagus), चूहा (Rattus), कुत्ता, मैकाका, शेर, हाथी, मनुष्य |
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