इंडो-चाइना तीन देशों से मिलाकर बना है | ये तीन देश हैं – वियतनाम, लाओस और कंबोडिया |
हिंदी-चीन का औपनिवेशिक शासन पूर्व इतिहास
दक्षिण-पूर्व एशिया में हिंद-चीन (इंडो-चाइना) लगभग 3 लाख वर्ग किमी० में फैला वह क्षेत्र है, इनकी उत्तरी सीमा म्यांमार एवं चीन से सटा है तथा दक्षिण में चीन सागर है | इनकी अर्थव्यवस्था का आधार कृषि एवं बागवानी था | यहाँ सबसे ज्यादा चावल की पैदावार होती थी | इसके साथ चाय, रबर एवं कॉफी का उत्पादन भी बड़ी मात्रा में होता था |
हिंद-चीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद
हिंद-चीन में आने वाले पहले आधुनिक यूरोपीय पुर्तगाली थे | वियतनाम ‘समुद्री सिल्क रूट’ से जुड़ा था | पुर्तगाली सोलहवीं (16वीं) शताब्दी में यहाँ पहुँचे थे | उनका उद्देश्य व्यापार करना था | पुर्तगालियों के बाद अन्य यूरोपीय कंपनियाँ भी यहाँ पहुँची | डच, स्पेन, अंग्रेज तथा फ्रांसीसियों का आगमन हुआ | इन लोगों में फ्रांसीसियों को छोड़कर किसी ने भी इस भू-भाग पर अपना राजनीतिक अधिपत्य कायम करने का प्रयास नहीं किया | किन्तु फ्रांस शुरू से ही सक्रिय रहा | सत्तरहवीं (17वीं) शताब्दी में बहुत से फ्रांसीसी व्यापारी और पादरी हिंद-चीन पहुँचे | 18वीं शताब्दी के मध्य में वे हिंद-चीन के राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे| सन् 1747 ई० के बाद से फ्रांस अन्नाम से रूचि लेने लगा था और इस आशा से अन्नाम के साथ राजनयिक संबंध कायम किया |
हिंद-चीन में फ्रांसीसी उपनिवेश के उद्देश्य
हिंद-चीन में फ्रांसीसियों के उपनिवेश स्थापना के कई कारण थे |
- व्यापारिक सुरक्षा – फ्रांस द्वारा हिंद-चीन को अपना उपनिवेश बनाने का मुख्य कारण डच एवं ब्रिटिश कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का सामना करना था |
- आर्थिक कारण – वियतनाम एक कृषि प्रधान देश था | चीन से सटे राज्यों में खनिज संसाधन कोयला, टिन, जस्ता, टंगस्टन, क्रोमियम आदि मिलते थे | इनका उपयोग फ्रांसीसी अपने उद्योगों के विकास में करना चाहते थे |
- यूरोपीय सभ्यता का विकास करना – फ्रांसीसियों का एक उद्देश्य हिंद-चीन वासियों को यूरोपीय सभ्यता से अवगत करा कर उन्हें सभ्य बनाना था |
औपनिवेशिक आर्थिक नीति – फ्रांसीसियों का मानना था कि उपनिवेशों से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए उनकी अर्थव्यवस्था का विकास होना अति आवश्यक है | अर्थव्यवस्था मजबूत होने से लोगों का जीवनस्तर सुधरेगा जिससे उनकी क्रयक्षमता सुधरने से बाजार का विकास होगा |
औपनिवेशिक शेक्षणिक व्यवस्था
वियतनाम में स्कूली शिक्षा सर्फ धनी लोग ही प्राप्त कर पाते थे | वहाँ चीनी सभ्यता तथा संस्कृति का अत्यंत गहरा प्रभाव था | फ्रांसीसी सरकार ने सबसे पहले इस प्रभाव को ख़त्म करना चाहा | फ्रांसीसी स्कूलों में शिक्षा देने के लिए कई पुस्तकें लिखी गई | इन किताबों में फ्रांसीसियों का गुणगान किया गया तथा औपनिवेशिक शासन को वियतनामियों का गुणगान किया गया तो दूसरी ओर वियतनामियों को आदिम, पिछड़ा तथा असभ्य कहा गया जो सिर्फ शारीरिक श्रम करने लायक थे |
टोंकन फ्री स्कूल की स्थापना – वियतनामियों को पश्चिमी ढंग की शिक्षा देने के लिए 1907 में वियतनाम में “टोंकन फ्री स्कूल” खोला गया | ये कक्षा शाम को लगाती थी तथा इसमें सामान्य शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान, स्वच्छता और फ्रांसीसी भाषा की कक्षायें भी होती थीं |
स्कूलों में विरोध – उपनिवेशवाद के विरोध में छात्रों ने राजनीतिक संगठन बनाए | ‘यंग अन्नान’ दल जैसी पार्टियाँ बन गई | वे ‘अन्नानिम स्टूडेंट’ जैसी पत्रिकाएँ निकालने लगे, जिसमें राष्ट्रवाद तथा स्वतंत्रता संबंधी लेख लिखे गये |
आधुनिकीकरण और राष्ट्रवाद
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद का विरोध करते हुये सभी राष्ट्रवादी आधुनिक होने का मतलब तलाश रहे थे | अनेक बुद्धिजीवियों का यह मानना था कि पश्चिमी सभ्यता का मुकाबला करने के लिए वियतनामी परंपराओं को मजबूत करना आवश्यक है | फान बोई चाऊ और फान चू त्रिंह वियतनाम के दो महान राष्ट्रवादी थे परंतु उनके विचार एक दूसरे से भिन्न थे |
फान बोई चाऊ – फान बोई चाऊ वियतनामी परंपराओं के ख़त्म होने से दुखी थे | उनपर कन्फ्यूशियसवाद का गहरा प्रभाव था | 1903 में उन्होंने रेवोल्यूशनरी सोसाइटी (दुई तान होई) नामक पाटी का गठन किया तथा उपनिवेशवादी विरोधी आंदोलन के अहम नेता बन गये | इस दल के अश्यक्ष न्यूगेन राजवंश के राजकुमार कुआंग दे को बनाया गया |
फान चू त्रिंह – फान चू त्रिंह (1871-1926) वियतनाम के राष्ट्रवादी नेता थे | ये फान बोई चाऊ के विचारों से असहमती रखते थे | वे राजशाही व्यवस्था के विरोधी थे | वे वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए शाही दरबार या राजा की सहायता लेने के कट्टर वोरोधी थे | वह एक लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थपाना करना चाहते थे |
हो-ची-मिन्ह (1890-1969) – हो-ची-मिन्ह वियतनामी स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे | उनके आरंभिक जीवन के बारे में अधिक जानकारियाँ उपलब्ध नहीं है क्योंकि वह अपनी निजी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत बातें नहीं करते थे | उनका मूल नाम न्गूयेन आई क्वोक था | उनका जन्म मध्य वियतनाम में हुआ था | हो-ची-मिन्ह ने पेरिस तथा मास्को में शिक्षा प्राप्त की थी | 1910 में कुछ समय के लिये वे शिक्षक हो गये तथा बच्चों को पढ़ाया | 1911 में उन्होंने एक फ्रांसीसी जहाज में नौकरी कर ली | उनका मत था कि संघर्ष बिना वियतनाम की आजादी नहीं मिल सकती | 1917 में उन्होंने वियतनामी साम्यवादियों का एक दल बनाया | बाद में हो-चीन-मिन्ह लेनिन द्वारा स्थापित कॉमिन्टर्न के सदस्य बन गये | 1943 में उन्होंने अपना नाम ‘न्गूयेन आई क्वोक’ से बदलकर हो-चीन-मिन्ह (पथ प्रदर्शक) रख लिया | अंतत: फरवरी 1930 में वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की बाद में इनका नाम बदलकर इंडो-चाइनिज कम्युनिस्ट पार्टी रख दिया गया |
द्वितीय विश्वयुद्ध और वियतनाम में राष्ट्रवाद – द्वितीय विश्वयुद्ध में 1940 में जर्मनी ने फ्रांस को पराजित कर दिया | फ्रांस में जर्मन समर्थित सत्ता कायम हो गयी | एक संधि के तहत जापान को हिंद-चीन में फौज भेजने का मौका मिल गया | ‘हो-ची-मिन्ह’ के नेतृत्व में देशभर के कार्यकर्ताओं ने ‘वियतमिंह’ (वियतनाम स्वतंत्रता लीग) की स्थापना कर पीड़ित किसानों, आतंकित व्यापारियों, बुद्धिजीवियों सभी को शामिल कर छापामार युद्ध नीति का अवलंबन किया | वियतमिंह ने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लेकर फ्रांसीसियों तथा जापानियों दोनों को परेशान कर दिया |
2 सितंबर 1945 ई० को वियतनाम की स्वतंत्रता की घोषणा की गई तथा वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हुई | इस सरकार के प्रधान हो-ची-मिन्ह बनाये गये |
फ्रांसीसी महासंघ की योजना – द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् साम्राज्यवादी देश-फ्रांस, हॉलैंड और अमेरिका-दक्षिण पूर्व एशिया में अपने खोये हुए साम्राज्यों की पुन: स्थापना के लिए प्रयत्नशील हो गये |
फ्रांस ने जिस नीति की घोषणा की, वह निम्नलिखित थी –
- फ्रांस के विशाल साम्राज्य को एक युनियन के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए |
- हिंद-चीन इस फ्रांसीसी महासंघ का एक स्वशासित अंग होगा |
- हिंद-चीन के विविध संरक्षित राज्यों एवं कोचीन-चीन को मिलाकर एक संघ राज्य बनाया जाय |
- हिंद-चीन संघ की विदेशनीति और सेना पर फ्रांसीसी महासंघ स्वतंत्र रहेगा |
हनोई समझौता – सैगोन पर अधिकार प्राप्त करने के बाद फ्रांस वियतनाम में गणतंत्र को समाप्त कर हिंद-चीन में अपना अधिकार स्थापित करने के प्रयास में लग गया | 16 मार्च, 1946 को फ्रांस ने वियानाम के साथ एक समझौता किया, जिसे हनोई-समझौता कहते हैं | इस समझौते के अनुसार फ्रांस ने वियतनाम गणराज्य को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार किया |
फ्रांस और वियतनाम में मतभेद – फ्रांस की अन्यायपूर्ण नीति और हठवादिता के कारण हनोई समझौता देर तक कायम नहीं रह सका | फ्रांस चाहता था कि निर्मित संघ का अध्यक्ष उसके द्वारा नियुक्त हाई-कमिश्नर हो और वियतनामी नेताओं की माँग थी कि संघ से सभी राज्य स्वतंत्र हों |
फ्रांसीसियों और वियतमिंह के बीच निर्णायक लड़ाई 7 मई 1954 को हुई | फ्रांसीसी सेना के जनरल कमांडर हेनरी नावारे ने 1953 में ऐलान किया कि उनकी सेना जल्द ही विजयी होगी | वियेतमिंह की टुकड़ी का नेतृत्व जनरल वो न्गूयेन ग्याप ने किया | दियेन बियेन फू के युद्ध में जनरल हेनरी नावारे बुरी तरह पराजित हुए |
जेनेवा समझौता – फ्रांस की पराजय के बाद अमेरिका जो अब तक अप्रत्यक्ष रूप से फ्रांस का समर्थन कर रहा था | मई 1954 में जेनेवा में हिंद-चीन समस्या पर वार्ता हेतु एक सम्मलेन बुलाया गया जिसे जेनेवा समझौता कहा जाता है | 1954 के जेनेवा समझौता के द्वारा इंडो-चीन के लाओस और कंबोडिया स्वतंत्र कर दिये गये | दोनों राज्यों में वैध राजतंत्र तथा संसदीय व्यवस्था लागू हुई | जेनेवा समझौता ने पूरे वियतनाम को दो भागों में बाँट दिया – (i) उत्तरी वियतनाम तथा (ii) दक्षिणी वियतनाम | उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम दो अलग-अलग देश बन गये |
कंबोडिया में गृहयुद्ध
हिंद-चीन में फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के पतन के बाद नवंबर 1953 को कंबोडिया ने अपने को पूर्ण स्वतंत्र राज्य घोषित किया, जिसकी पुष्टि 1954 ई० के जेनेवा समझौते से हुई | 1953 ई० से 1970 ई० तक यहाँ राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक का शासन था | 1954 से ही नरोत्तम सिंहानुक कंबोडिया में गुटनिरपेक्षता एवं तटस्थता की नीति पर कायम था | | अमेरिका थाइलैंड को उकसाकर कंबोडिया को करता था | सिंहनुका ने 1963 में अमेरिका से किसी प्रकार की मदद लेने से मना कर दिया | ये बात अमेरिका को अपमानजनक लगी और वह बदला लेने की कार्रवाई करने में लग गया |
कंबोडिया में अमेरिकी हस्तक्षेप – छापामार यूद्ध, बगबारी और नृशंस हत्याओं का दौर कंबोडिया में शुरू हो गया | 9 अक्टूबर को कंबोडिया को गणराज्य घोषित कर दिया गया | परंतु युद्ध चलता रहा | सिंहानुक तथा लोन नोल की सेना में संघर्ष चलता रहा | अंत में लोन नोल कंबोडिया से भागकर अमेरिका चला गया | अप्रैल 1975 में कंबोडियाई गृहयुद्ध समाप्त हो गया | नरोत्तम सिंहानुक पुन: राष्ट्राध्यक्ष बने परंतु 1978 में उन्होंने राजनीति से संस्यास ले लिया |
वियतनाम में गृहयुद्ध –
अमेरिकी नीति – इस बीच उत्तरी वियतनाम में हो-ची-मिन्ह की सहायता से नेशलन लिबरेशन फ्रंट ने वियतनाम के एकीकरण के लिये प्रयास तेज कर दिये | अमेरिका ने जो दक्षिणी वियतनाम में साम्यवाद के प्रभाव को रोकना चाहता था, 1961 के सितंबर में “शांति को खतरा” नामक श्वेता पत्र जारी कर उत्तरी वियतनाम की हो-ची-मिन्ह सरकार को इस गृह युद्ध का जिम्मेदार ठहराया; 1965 में अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम में हो-ची-मिन्ह और कम्युनिस्टों के प्रभाव कमजोर करने के लिए बम वर्षा भी की | 1969 में दक्षिण वियतनाम में पाँच लाख अमेरिकी सैनिक भेजे गये | राष्ट्रपति निक्सन में पाँच लाख अमेरिकी सैनिक भेजे गये | राष्ट्रपति निक्सन ने दक्षिण वियतनाम की सहायता के लिए गये | उनके सैनिकों को प्रशिक्षण वियतनाम में पाँच लाख अमेरिकी सैनिक भेजे गये | उनके सैनिकों को प्रशिक्षण देने और नये अस्त्र-शस्त्र देने की भी व्यवस्था की थी | इस युद्ध में खतरनाक हथियार टैंकों का प्रयोग तो हुआ ही साथ ही रासायनिक हथियार खतरनाक नापास ऑरंज एजेंट एवं फास्फोरस बमों का भी प्रयोग किया गया | वियतनाम में जन्मजात विकलांगता की समस्या उत्पन्न हो गई | 1967 तक अमेरिका ने इतने बम वियतनाम में बरसाये जितना द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने इंगलैंड के विरुद्ध भी नहीं गिराये थे |
माई ली हत्याकांड 1968 में – दक्षिणी वियतनाम में एक गाँव था माई ली गाँव जहाँ एक लोकहर्षक घटना घटी | यहाँ के लोगों को अमेरिकी सेना ने वियतकांग समर्थक घटना घटी | यहाँ के लोगों को अमेरिकी सेना ने वियतकांग समर्थक मानकर पूरे गाँव को घेर लिया | सभी पुरुषों को मार डाला गया | औरतों तथा बच्चियों को बंधक बनाकर उनके साथ कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी | उसके बाद पूरे गाँव को आग लगा कर जला दिया गया |
हो-ची-मिन्ह भूल भूलैया मार्ग – हो-ची-मिन्ह मार्ग हनोई से चलकर लाओस, कंबोडिया के क्षेत्र से गुजरता हुआ दक्षिणी वियतनाम तक जाता था, जिससे सैकड़ों कच्ची-पक्की सड़कें निकलती थीं | उत्तरी से दक्षिणी वियतनाम तक सैनिक रंसद भेजी जाती थी |
अमेरिकी नीति की आलोचना – अमेरिका नीति निर्माता को इस बात की चिंता थी कि अगर हो-ची-मिन्ह की सरकार अपनी योजनाओं में सफल हो गई तो आस-पास के देशों में स्म्युनिस्ट सरकारें स्थापित हो जायेंगी | वियतनामी युद्ध को पहला टेलीविजन युद्ध कहा गया | युद्ध के लोमहर्षक दृश्यों को देखकर राष्ट्रपति निक्सन की सर्वत्र निंदा होने लगी |
प्रसिद्ध दार्शनिक लार्ड रसेल ने मई 1976 में के अदालत लगाकर अमेरिका को वियतनाम युद्ध के लिए दोषी करार दे दिया | अमेरिका को यूद्ध में काफी आर्थिक हानि हुई | प्रतिवर्ष युद्ध में 2 से 2.5 अरब डालर अमेरिका खर्चे में वृद्धि हुई |
समझौते का प्रयास
नवंबर, 1966 में ‘मनीला सम्मलेन’ बुलाया गया | परंतु, अमेरिका ने इनके प्रस्तावों की भी उपेक्षा कर दी | 1968 में पेरिस शांति वार्ता शुरू हुई परंतु अमेरिकी हठ के कारण बार-बार वार्ता विफल हो जाती थी |
वियतनाम एकीकरण – अमेरिकी चुनाव जीतकर निक्सन अमेरिका का नया राष्ट्रपति बना | वियतनाम समस्या की जिम्मेवारी उसे सौंपी गई | निक्सन ने 1970 में शांति वार्ता के लिये पाँच सूत्री योजना बनाई |
- हिंद-चीन की सभी सेनायें युद्ध बंद करें |
- युद्ध विराम की देख-रेख अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक करें |
- कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास नहीं करें |
- युद्ध विराम के दौरान सभी प्रकार की लड़ाइयाँ बंद रहेंगी, कोई आतंकी कार्रवाई नहीं होगी |
- युद्ध विराम का अंतिम लक्ष्य समस्त हिंद- चीन में संघर्ष का अंत होना चाहिए |
परंतु यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया | और अमेरिकी सेनाओं ने पुन: बमबारी शुरू कर दी |
1972 में निक्सन ने पुन: आठ सूत्री प्रस्ताव रखा –
- समझौता के छ: महीने के अंदर अमेरिका और अन्य विदेशी सेना दक्षिणी वियतनाम से हट जाए |
- सेना के वापस होने के बाद हिंद-चीन में बंदी बने सैनिकों और नागरिकों को मुक्त किया जाए |
- छ: महीने के अंदर दक्षिण वियतनाम में चुनाव कर राष्ट्रपति का चुनाव किया जाए |
- जेनेवा समझौते का पालन किया जाए |
- जेनेवा समझौते का पालन किया जाए |
- हिंद-चीन के सभी देश अपनी समस्याओं का स्वतंत्रता पूर्वक समाधान करें |
- समझौते के सैनिक पहलू की देख-रेख एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के तहत होगी |
- हिंद-चीन के लोगों के मूल अधिकारों की सुरक्षा होगी तथा लाओस, कंबोडिया तथा दक्षिणी वियतनाम, उत्तरी वियतनाम की स्थिति निर्धारित करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन होगा |
8 जनवरी, 1973 को पेरिस में पुन: समझौता वार्ता आरंभ हुआ | इस वार्ता में वियतनाम युद्ध समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया |