औद्योगिक क्रांति का अर्थ
औद्योगिक क्रांति का शाब्दिक अर्थ है – उद्योग उत्पादन में होने वाला परिवर्तन | यानी औद्योगिक क्रांति का तात्पर्य उत्पादन प्रणाली में हुए उन परिवर्तनों से है जिनके फलस्वरूप जनसाधारण की अपनी कृषि व्यवस्था एवं घरेलू उद्योग-धंधों को छोड़कर नये प्रकार के बड़े उद्योगों में काम करने तथा यातायात के नवीन साधनों का उपयोग करने को मिला | अत: औद्योगिक क्रांति के कारण तीन वस्तुओं का जन्म हुआ – पहला कारखाना, दूसरा बड़े-बड़े औद्योगिक नगर तथा तीसरा पूँजीपति वर्ग |
औद्योगिक क्रांति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांस के समाजवादी चिंतक लूई ब्लाॅ ने 1837 ई० में किया | यह क्रांति सबसे पहले इंगलैंड में हुई |
आदि-औद्योगीकरण का युग – इंगलैंड और यूरोप में कारखाना की स्थापना से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगे थे | यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था | किसी चीज की प्रारंभिक अवस्था को आदि कहते हैं | अत: औद्योगिकीकरण के प्रारंभिक चरण को इतिहासकारों ने आदि-औद्योगिकीकरण का नाम दिया है | इसमें चीजों का उत्पादन कारखानों के बजाय घरों में होता था |
गाँव और शहरों का संबंध – इस व्यवस्था में गाँवों में तथा शहरों में एक संबंध स्थापित हुआ | व्यापारी शहरों में रहकर अपना काम गाँव में चलाते थे | गाँव में अपने सामान का उत्पादन करवाकर उन्हें शहर ले जाकर बेचते थे | चीजों का उत्पादन कारखानों में न होकर घरों में होता था |
ब्रिटेन और भारत में औद्योगिकीकरण
इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के कारण –
औद्योगिक क्रांति यूरोप के दूसरे देशों को छोड़कर इंगलैंड में ही सर्वप्रथम हुई | इसके कुछ विशिष्ट कारण थे |
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इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति – द्वीप होने के कारण इंगलैंड बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित था | कच्चे माल को आयात तथा उत्पादित वस्तुओं वस्तुओं के निर्यात करने की सुविधा भी इंगलैंड में थी |
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प्राकृतिक साधनों (खनिज) की उपलब्धता – इंगलैंड में खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे | इससे इंगलैंड के औद्योगिक विकास में काफी सुविधा हुई |
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कृषि क्रांति – औद्योगिक क्रांति के पूर्व इंगलैंड में कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए थे | कृषि तथा पशुपालन की समुन्नत व्यवस्थाओं से भूमिपतियों की आमदनी काफी बढ़ गई |
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कुशल कारीगर – कुशल कारीगरों के संपर्क में आने से इंगलैंड के मजदूरों के ज्ञान में वृद्धि हुई और उसके साथ ही खेतीबारी के तरीकों और उद्योग-धंधों में विकास हुआ |
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जनसंख्या में वृद्धि – चिकित्सा एवं गरीबों की सहायता की व्यवस्था होने के कारण लोग रोगमुक्त हो गये तथा भुखमरी के शिकार होने से बच गये | इससे मृत्यु दर में कमी आई तथा इंगलैंड की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई |
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पर्याप्त पूँजी की उपलब्धता – इस समय इंगलैंड में काफी मात्रा में पूँजी उपलब्ध थी | इस समय ब्रिटेन में विदेशों से काफी धन लाया गया | दास व्यापार तथा भारत से लूटकर लाये गये धन का निवेश इंगलैंड में हुआ |
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वैज्ञानिक प्रगति – इस युग में जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए उनमें से अधिकांश इंगलैंड में ही हुए |
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यातायात की सुविधा – 18वीं शताब्दी में परिवहन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए | यातायात की सुविधा के लिए सभी प्रमुख शहरों को नहरों द्वारा जोड़ा गया | पुरानी नहरों को चौड़ा किया गया ताकि कई जहाज एक साथ आ-जा सके |
Note –
नये यांत्रिक अविष्कार
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जाॅन के-फ्लाइंग शटल-1733 ई०
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जेम्स हारग्रिब्ज-स्पिनिंग जेनी-1765ई०
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रिचर्ड आर्काराइट-वाटरफ्रेम-1769 ई० (स्पिनिंग फ्रेम)
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क्राम्पटन-स्पिनिंग म्यूल-1779 ई०
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एडमंड कार्टराइट-पावरलूम-1785 ई०
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इली व्हिटनी-कपास ओटने की मशीन-1793ई०
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टॉमस न्यूकॉम-पहला वाष्प इंजन
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अब्राह्म डर्बी-लोहा पिघलाने की विधि
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हम्फ्री डेवी-सेफ्टी लैम्प-1815 ई०
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जार्ज स्तिफेंशन-वाष्पचलित रेल इंजन -1814 ई०
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राबर्ट फुल्टन-वाष्पचलित पानी का जहाज
सूती वस्त्र उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग इंगलैंड का सबसे अधिक उत्पादन वाला उद्योग बना | 19वीं सदी में ब्रिटेन कपड़ा का सबसे बड़ा उत्पादक बने गया था | 19वीं सदी में कपड़ा उद्योग में विकास होने के बावजूद सारा उत्पादन कारखाना में न होकर कुछ उत्पादन घरेलू तरीकों से भी होता था |
हाथ का श्रम– औद्योगिकीकरण में ब्रिटेन में सस्ते मानव श्रम की भूमिका भी अग्रणी रही | श्रमिकों की संख्या बढ़ने से उनको कम वेतन पर नौकरी करनी पड़ी | मिल मालिकों को मशीन पर लगाने वाले खर्च से कम खर्च पर श्रमिक उपलब्ध हो जाते थे | उन्हें मशीनें लगाने पर अधिक दिलचस्पी नहीं थी | मशीन लगवाने में अधिक पूँजी की जरुरत होती थी तथा उनके खराब होने पर मरम्मत करवाने में भी अधिक खर्च आता था | अत: उद्योगपति मशीन की बजाय हाथ के श्रम को अधिक महत्त्व देते थे इससे उन्हें ज्यादा फायदा होता था |
श्रमिकों की संख्या आवश्यकतानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता था |
इंगलैंड में श्रमिकों की आजीविका एवं उनका जीवन
शहरों में बहुतायत नौकरी की खरब सुनकर गाँव के मजदूर जो बेकारी की समस्या से जूझ रहे थे शहर की ओर रुख करने लगे | नौकरी ढूँढ़ने के क्रम में उन्हें पुलों के नीचे सडकों के किनारे अथवा सरकारी या निजी रैन बसेरों में समय गुजरने पड़ते थे |
बेरोजगारी की आशंका से मजदूर मशीन तथा नई प्रौद्योगिकी का विरोध करने लगे | जेम्स हारग्रीव्ज ने ने 1764 में स्पिनिंग जेनी का अविष्कार किया था | इस मशीन के आने से मजदूरों की माँग घटने लगी |
अत: इसका प्रभाव महिलाओं पर अधिक पड़ा और ब्रिटेन की महिलाओं ने स्पिनिंग जेनी मशीन पर हमला कर उसे तोड़ना शुरू कर दिया क्योंकि इस मशीन ने उनका रोजगार छीन लिया था |
श्रमिक आंदोलन – इंगलैंड में श्रमिक संघ की स्थापना हुई | मजदूर वोट देने के अधिकार भी माँग रहे थे | इसके लिए श्रमिक संघ के कहने पर सन् 1838 में उन्होंने चार्टिस्ट आंदोलन किये |
भारतीय वस्त्र उद्योग
औद्योगिक उत्पादन से भारत में कुटीर उद्योग का अंत हो गया लेकिन वस्त्र उद्योगों के लिए कई बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुए | प्राचीन काल में भी भारत के वस्त्रों का विश्वभर में माँग थी | रेशम का व्यापार चीन से आरंभ होकर मध्य एशिया होते हुए रोमन साम्राज्य को जाता था | यह मार्ग रेशम मार्ग (Silk Route) कहलाता था |
भारतीय व्यापारी उत्पादन में पैसा लगते थे तथा उत्पादित वस्तुओं को निर्यातक के पास पहुँचाते थे | धीरे-धीरे यूरोपीय कंपनियों का भारतीय व्यापार में प्रभाव बढ़ने लगा | नये बंदरगाहों पर होने वाला व्यापार यूरोपीय कंपनी के नियंत्रण में था जो यूरोपीय जहाजों के जरिये होता था | इस प्रकार पुराने व्यापार नष्ट हो गये और भारतीय व्यापरियों को यूरोपीय कंपनियों के नियंत्रण में काम करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था |
भारत में औद्योगीकरण
औद्योगिक उत्पादन से भारत के कुटीर उद्योग बंद हो गये लेकिन वस्त्र उद्योगों के लिए बड़ी-बड़ी कारखाने स्थापित हुई | भारत में 1895 तक कपड़ा मीलों की संख्या उनचालीस हो गई , ब्रिटिश सरकार ने वहाँ से आयात शुल्क समाप्त कर दिया जिससे भारत में वहाँ के सामान कम मूल्य में बिकने लगे |
भारतीय उद्योगपति – भारतीय व्यापारियों पर सरकार का नियंत्रण कठोर होते थे, तथा उन्हें अपना तैयार माल यूरोप में बेचने में कठिनाई होती थी | भारत से तैयार माल निर्यात नहीं होते थे, सिर्फ कच्चे माल जैसे- कपास, नील, अफीम गेहुँ ही निर्यात किये जाने लगे | भारतीय उद्योगपति जहाजरानी का भी व्यापार नहीं कर सकते थे |
सन् 1907 ई० में जमशेद जी टाटा ने बिहार के साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (Tisco) की स्थापना की | जमशेदजी टाटा ने 1901 में टाटा हाईड्रो-इलेक्ट्रीक पावर स्टेशन की स्थापना की |
मजदूरों की उपलब्धता – कारखानों के विस्तार होने से मजदूरों की माँग बढ़ी | जहाँ भी कारखाने खुले आप-पास के इलाकों से ही मजदूर आते थे | धीरे-धीरे दूर-दूर से भी लोग काम की तलाश में आने लगे | मीलों की संख्या बढ़ने से मजदूरों की माँग भी बढ़ने लगी परंतु मजदूरों की संख्या मिल में रोजगार से अधिक रहती थी इसलिए कई मजदूरों की संख्या मिल में रोजगार से अधिक रहती थी इसलिए कई मजदूर बेरोजगार ही रह जाते थे | मिल मालिक नये मजदूरों की भर्ती करने के लिए एक जॉबर रखते थे | मालिक का विश्वसनीय कर्मचारी होता था | जॉबर अपने गाँव से लोगों को लाता था |
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिकीकरण में तेजी – प्रथम विश्वयुद्ध तक भारत के औद्योगिक विकास की प्रगति धीमी रही परंतु युद्ध की दौरान इसमें तेजी आई क्योंकि ब्रिटिश कारखाने युद्ध से जुडी सामग्री बनाने में व्यस्त थे | इसलिए भारत में मैनचेस्टर से आयात कम हो गया जिससे भारत को देशी बाजार मिल गया | अधिक दिनों तक युद्ध चलने से भारत के कारखानों में भी युद्ध के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों की वर्दी, कपड़े, टेंट, चमड़े के जूते आदि बनने लगे | इन सब के लिए नये कारखाने भी लगाये गये |
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिकीकरण – प्रथम विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद मैनचेस्टर के निर्मित समान भारत में पहले जैसा स्थान नहीं पा सका | मैनचेस्टर के बने सामान की माँग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि और भी जगहों में घट गई |
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद औद्योगिकीकरण में लगातार इजाफा हुआ | कई नये कारखाने लगाये गये | यद्यपि भारत में कोयला उद्योग का प्रारंभ सन् 1814 में ही हो चूका था जब रानीगंज, पश्चिम बंगाल में कोयले की खुदाई का काम आरंभ हुआ था |
सन् 1929-33 के विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने भारतीय उद्योग-धंधों को प्रभावित किया | भारत कच्चा माल में आत्मनिर्भर था जिसका मूल्य घट गया | निर्यात किये जाने वाले सामान का भी मूल्य घट गया |
भारत में औद्योगिकीकरण का प्रभाव
औद्योगिकीकरण के कारण स्लम पद्धति का जन्म हुआ | मजदूर शहर में छोटे-छोटे घरों में रहने को बाध्य थे जहाँ किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी | कारखानों के इर्द-गिर्द मजदूरों की बस्तियाँ बस गई | यहाँ ये छोटे-छोटे घर या झोपड़पट्टी बनाकर रहने लगे | ये बस्तियाँ गंदी तथा अस्वास्थ्यकर होती थीं | मजदूर इसमें नारकीय जीवन बिताते थे |
श्रमिक वर्ग एवं श्रमिक आंदोलन – 1881 में उनकी माँगों के आधार पर पहला “फैक्ट्री एक्ट” पारित हुआ | जिसमें 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखाना में काम करने पर रोक लगाया गया | 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे काम कर सकते थे पर उनके काम का घटा तय की गयी |
31 अक्टूबर, 1920 ई० को अखिल भारतीय ट्रेड युनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हुई | लाला लाजपत राय को उसका प्रधान बनाया गया | 1920 में ही अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ (ILO) राष्ट्रसंघ के तत्त्वाधान में गठित हुआ |
कुटीर उद्योग महत्त्व एवं उसकी उपयोगिता
औद्योगिकीकरण के कारण भारत के कुटीर उद्योग-धंधे को काफी क्षति हुई | उनकी आजीविका प्रभावित हुई | महात्मा गाँधी ने भी जब राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन शुरू किया तो सर्वप्रथम उन्होंने कुटीर उद्योग-धंधों के विकास पर जोर दिया | महात्मा गाँधी के अनुसार “कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है |” राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी इसकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है | भारत से मुख्य रूस से रुई, सिल्क, रंगारंग बर्तन तथा ऊनी कपड़े निर्यात होते थे | ब्रिटेन के लोग खासकर उच्च वर्ग भारत के हस्तशिल्प को बहुत पसंद करते थे | हाथों से बने महीन धागों के वस्त्र, तसर सिल्क, बनारसी बालुचेरी साड़ियाँ तथा बार्डर वाली सदियाँ, मद्रासी लुंगी की माँग ब्रिटेन के उच्च वर्ग के लोग करते थे |
1947 ई० में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुटीर उद्योग के विकास के लिए भारत सरकार ने अनेक प्रयास किये | 6 अप्रैल, 1948 को औद्योगिक नीति से लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया गया |