अम्ल भस्म और लवण |Acid, Bases and Salts | Class 10th Chemistry | Hindi Medium

अम्ल ( Acids ) – अम्ल वह पदार्थ है जिसका जलीय विलयन स्वाद में खट्टा होता है तथा धातु से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करता है | 

Mg + 2HCl  →  MgCl2 + H2 ↑ 

अम्ल के गुण 

  1. अम्लों का जलीय विलयन विधुत का संचालन करता है 
  2. अम्ल वह पदार्थ है जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन ( H+ ) देता है –
  3. कुल अम्ल विषैले होते है – कार्बोनिक अम्ल
  4. कुछ अम्ल हानिकारक होते है – H2 SO4 , HCl
  5.  कुछ अम्लों विस्पोटक होते है – नाइट्रिक अम्ल 
पदार्थ अम्ल
नींबू, संतरा, कंच्चा, अंगूर सिट्रिक अम्ल  ( C6 H8 O7 )
सेब   मौलिक अम्ल  ( H2 C4 H4 O5 )
इमली टार्टरिक अम्ल  ( H2 C4 H4 O6 )
सिरका ऐसीटिक अम्ल  ( HC3 H5 O3 )
दही लैक्टिक अम्ल  ( H2 C9 H14 O4 )
टमाटर ऑक्जैलिक अम्ल ( C76 H53 O46 )
चाय टैनिक अम्ल  ( HC6 H7 O6 )
विटामिन C एस्कॉर्बिक अम्ल  ( HC6 H7 O6 )
लाल चींटी फॉर्मिक अम्ल  ( HCOOH )
आमाशय रस हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCl )

भष्म ( Bases ) – भष्म वह पदार्थ है जिसका जलीय विलयन स्वाद में कड़वा होता है तथा जल के साथ घुलकर हाइड्रॉक्साइड आयन देता है | 

भष्म के गुण 

  1. भष्म स्वाद में कड़वा होता है तथा अम्ल को उदासीन कर लवण बनाता है | 

HCl + NaOH  →  NaCl + H2 O

2. कुछ भष्म विषैले होते हैं –  Ca( OH ), Ba ( OH )2

3. कुछ भष्म तीव्र नाशक होते हैं जो चमड़े को जला देता है –  NaOH , KOH

अम्ल तथा भस्म का पता लगाने के लिए सूचक : लिटमस 

लिटमस पत्र – लिटमस पत्र एक रासायनिक सूचक है जो थैलोफाइट वार्ग के लाइकेन पौधे से निकाला गया गुलाबी रंग का उदासीन अर्क होता है | फिलटर पेपर के टुकड़े को लिटमस के अम्लीय तथा क्षारीय विलयन में डालकर सुखा लिया जाता है जिसमें लाल तथा नीला लिटमस पत्र लाल होता है | नीला लिटमस पत्र किसी अम्लीय विलयन में लाल होता है लाल लिटमस पत्र क्षारीय विलयन में नीला हो जाता है |

मेथिल ऑरंज पीले रंग का द्रव होता  है जिसमें अम्लीय विलयन में डालने पर विलयन लाल हो जाता है तथा क्षारीय विलयन में डालने पर विलयन रंगहीन हो जाता है तथा क्षारीय विलयन पर डालने पर विलयन गुलाबी हो जाता है |

हल्दी अम्लीय विलयन डालने पर विलयन को पीला कर देता है तथा क्षारीय विलयन को लाल भूरा कर देता है |

चुकंदर अम्लीय विलयन को लाल बैंगनी कर देता है तथा क्षारीय विलयन को पीला कर देता है |

लाल गोपी का पता अम्लीय विलयन को लाल बैगनी कर देता है तथा क्षारीय विलयन को हरा कर देता है |

सूचक  रंग परिवर्तन ( अम्लीय )   रंग परिवर्तन ( क्षारीय )
लिटमस  लाल  निला 
मेथिल ऑरेंज  लाल  पिला 
फिनॉल्पथैलीन   रंगहीन  गुलाबी 
हल्दी  पीला  लाल – भूरा 
चुकंदर  लाल – बैंगनी  पीला 
लाल गोभी का पत्ता  लाल – बैंगनी  हरा 

अम्ल तथा भस्म के साथ धातुओं  की अभिक्रिया – अम्ल तथा भस्म के साथ धातुओं की अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करता है | 

  1. Zn +  H2SO4  → ZnSO4  + H2
  2. Zn +  2NaOH → Na2ZnO2 + H2

धातु के कार्बोंनेट एक बाइकर्बोंनेट से अम्लों की अभिक्रिया – धातु के कार्बोंनेट एवं बाइकर्बोंनेट अम्लों के साथ अभिक्रिया करके लवण जल एवं कार्बनडाइऑक्साइड बनाते हैं |

अम्ल – भस्म अभिक्रिया –अम्ल-भष्म की अभिक्रिया के फलस्वरूप लवण तथा जल बनाते हैं | 

  1. NaOH  + HCl  →   NaCl   + H2O
  2. NaOH  + H2SO4  → NaHSO4 + H2O

धातु के ऑक्साइड की अम्ल से अभिक्रिया – धातु ऑक्साइड अम्लों के साथ अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनाते हैं | 

  1. CuO + H2SO4  →   CuSO4  +   H2O
  2. ZnO + H2SO4  →   ZnSO4  +   H2O

अधातु के ऑक्साइड की भष्म से अभिक्रिया – अधातु के ऑक्साइड भस्म के साथ अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनाते हैं | 

CO2    +  Ca(OH)2  →  CaCO3  +  H2O

नोट – 

  1. धातु के ऑक्साइड भाष्मीय होते हैं |अधातु के ऑक्साइड अम्लीय होते हैं |  

अम्ल तथा भष्म की जल से अभिक्रिया – तथा भस्म जल के साथ अभिक्रिया करके ऊष्मा प्रदान करते हैं | 

  1. HCl  +  H2O  →  H3O+ +  Cl  + ऊष्मा
  2. NaOH →  Na+  +  Cl  +  ऊष्मा

अम्ल तथा भष्म की शक्ति के अनुसार प्रकार –

प्रबल अम्ल ( Strong acids ) – वे अम्ल जो  जल में घुलकर लगभग पूर्वत: आयनित होकर हाइड्रोजन आयन ( H+ ) प्रदान करते हैं प्रबल अम्ल कहलाते हैं | जैसे – हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCl ) , नाइट्रिक अम्ल ( HNO3 ) , सल्फ्यूरिक अम्ल ( H2SO4 )

दुर्बल अम्ल ( Weak acids ) – वे अम्ल जो जल में घुलकर सिर्फ आंशिक रूप में ही आयनित होते हैं पूर्णत नहीं दुर्बल अम्ल कहलाते हैं | जैसे – कार्बोनिक अम्ल ( H2CO3 ) , एसीटिक अम्ल ( CH3COOH ) , बोरिक अम्ल ( H3BO3 ) .

प्रबल भष्म ( Strong bases ) – वे भष्म जो जलीय विलयन में लगभग पूर्णत आयनित होकर मात्रा में हाइड्राक्साइड आयन प्रदान करते हैं प्रबल भष्म या प्रबल क्षार कहलाते हैं | जैसे – सोडियम हाइड्रोऑक्साइड ( NaOH ) , पोटेशियम हाइड्रोऑक्साइड ( KOH ) .

दुर्बल भष्म ( Weak base ) – वे भष्म जो जलीय विलयन में सिर्फ अंशत: आयनित होकर कम मात्रा में हाइड्राक्साइड आयन प्रदान करते हैं, दुर्बल भष्म या दुर्बल क्षर कहलाते हैं | जैसे – कैल्सियम हाइड्रोऑक्साइड [ Ca(OH)2 ]  , अमोनियम हाइड्रोऑक्साइड ( NH4OH ) . 

सांद्र अम्ल ( Concentrated acids ) – जब किसी विलयन में अम्ल की मात्रा अधिक रहती है जो उसे सांद्र अम्ल कहते हैं | 

तनु अम्ल ( Dilute acids ) – किसी विलयन में अम्ल की मात्रा अपेक्षाकृत कम रहती है तो उसे तनु अम्ल कहते हैं | 

नोट – सांद्र अम्ल को तनु अम्ल में परिवर्तित करने के लिए अम्ल की थोड़ी मात्रा को जल में मिला दिया जाता है | 

pH ( Potential of Hydrogen ) : हाइड्रोजन आयन ( H+ ) का सांद्रण 

किसी विलयन में हाइड्रोजन ( H+ ) आयन का सांद्रण के निर्धारण के  लिए सारंसन ने 1909 ईं में एक स्केल दिया , जिसें pH कहा जाता है |

pH : किसी विलयन के pH उनमें उपस्थित हाइड्रोजन ( H+ ) आयनों की सांद्रता के लघुगणक का ॠणात्मक मान है | 

pH = – log [H+

शुद्ध जल में [H+] = 1 × 10-7  होता है |

अतः जल का pH = – log [10-7]         [ log an = n log a ]

                                = – (-7 ) log 10

                                = 7 × 1 =7             [ log10 = 1 ]

अम्लीय विलयन का pH मान 7 से कम , उदासीन विलयन का pH मान 7 और क्षारीय विलयन का pH मान 7 से अधिक होता है |

दैनिक जीवन में pH का महत्व 

  1. पाचन तंत्र में pH का महत्व – हमारे पेट में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल बनाते रहता है जो हमारे भोजन को पचाने में सहायक होता है | इसका pH 1.0 के लगभग कायम रहता है इससे पेट में अम्ल की मात्रा एक निश्चित सीमा ले ऊपर हो जाती है | तब पेट में गैस और जलन होने लगती है अत: बढ़े हुए अम्ल के प्रमाण को नष्ट करने के लिए हलके भस्म का इस्तेमाल करना पड़ता है , जिसे ऐंटासिड कहते हैं |   
  2. pH परिवर्तन का दॉतों पर प्रभाव – जब हम शर्करायुक्त भोजन खाते हैं तब मुँह में में मौजूद बैक्टीरिया द्वारा अपघटित होकर अम्ल बनाता है | जब मुँह का pH 5.5 से कम हो जाता है तब दाँत के दंतवल्क क्षतिग्रस्त होने लगते हैं बढ़ते हुए अम्ल को नष्ट करने के लिए दूथपेस्ट, नीम के दातून का इस्तेमाल करना पड़ता है | 
  3. थकान के समय शरीर के मॉसपेशियों में अम्ल की उत्पति– शारीरिक परिश्रम करने में लौक्टिक अम्ल बनता है जो हमारे शरीर की मांसपेशियों में दर्द और कड़ापन ला देता है | इस अवस्था में मांसपेशियों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है जिससे ऊर्जा का उत्सर्जन कठिन हो जाता है | मांसपेसियों में अम्ल के प्रभाव को कम करने के लिए हलका क्षारीय पदार्थ या वाइंटमेट लगाना पड़ता है | 
  4. अम्ल के प्रयोग से बर्तनों के धब्बों को दूर करना – कॉपर के बर्तनों पर भास्मिक कॉपर ऑक्साइड की परत जम जाने के कारण उनकी चमक बदरंग हो जाती है चुँकि नींबू के रस में सिट्रिक अम्ल रहता है | अत: बरतन की सहत को नींबू के एक टुकड़े से रगड़कर साफ कर देने से बरतन की चमक वापस लौट जाती है | नींबू में उपस्थित सिट्रिक अम्ल भास्मिक कॉपर ऑक्साइड से अभिक्रिया करके कॉपर सिट्रेट बनाता है जो जल के साथ बाहर निकल जाता है | 
  5. मिट्टी का pH – मिट्टी का pH 7 के आसपास रहने पर ही अधिकांश पौधों की वृद्धि संतोषजनक ढँग ले होती है | मिट्टी के अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय होने पर पौधों की वृद्धि बाधित हो जाती है | मिट्टी के अत्यधिक अम्लीय रहने पर उसमें काली चूना भखरा चूना या कैल्सियम कार्बोनेट डालकर उसका pH नियत्रित किया जाता है |
  6. pH और जलीय जीव – जल का pH एक निश्चित सीमा ( 6-7 ) के अंदर रहने पर ही उसमें वास करनेवाली मछलियाँ तथा अन्य जीव सुरक्षित रहते हैं | अम्ल वर्षा या अन्य कारणों से जब नदियों तालाबों का pH बहुत कम हो जाता है तो जलीय जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है || 
  7. प्रकृति द्वारा उदासीनीकरण की व्यवस्था – नेटल एक झाड़ी में उगनेवाला पौधा होता है | इसके पतों में डॅसनेवाले रोएँ होते हैं यह खुजली रोएँ होते है जिनके द्वारा मेथेनोइक अम्ल ( फार्मिक अम्ल ) का स्त्राव से होता है | इस खुजली के उपचार हेतु डॉक पौधों के पत्ते को खुजली वाले स्थान पर रगड़ने से खुजली दूर हो जाती है |क्योंकि इसके टल में क्षर की उपस्थिति रहती है | डॉक पौधे नेटल पौधों के नजदीक ही उगते हैं   | 

लवण ( Salt )

अम्लों तथा भस्मों की अभिक्रिया से लवण तथा जल बनते हैं |

लवण के दो मूलक विद्यमान होते हैं एक मूलक भष्म से प्राप्त होता है जिसे भाष्मिक मूलक कहते है , जो धन आवेशित होते हैं | दूसरा मूलक अम्ल से हाइड्रोजन के विस्थापन के फलस्वरूप प्राप्त होता है जिन्हें अम्लीय मूलक कहते हैं  ,जो  ॠण आवेशित होते हैं | सोडियम क्लोराइड (NaCl) में सोडियम आया ( Na+ ) भाष्मिक मूलक तथा क्लोराइड आयन ( Cl ) अम्लीय मूलक है | 

लवणों में उपस्थित समान भाष्मिक मूलक तथा समान अम्लीय मूलक के आधार पर लवणों के नामकरण किए जाते हैं  | जैसे – NaCl तथा Na2 SO4 में समान भाष्मिक मूलक सोडियम आयन ( Na+ ) है | अतः इन लवणों को सोडियम लवण कहा जाता है | इसीप्रकार , NaCl तथा KCl में  समान अम्लीय मूलक क्लोराइड आयन (Cl ) है | अत: इन लवणों को क्लोराइड लवण कहा जाता है | 

लवणों का वर्गीकरण ( Classification of Salts )

  1. सामान्य लवण – वैसे लवण जिनमें विस्थापनशील हाइड्रोजन या हाइड्रोजन समूह नहीं होते हैं सामान्य लवण कहलाते हैं | 

जैसे – NaCl, KCl, Na2 SO4 , Na3 PO4

2. अम्लीय लवण – किसी अम्ल के अणु में उपस्थित विस्थापनशील हाइड्रोजन परमाणु को धातु द्वारा अंशत: विस्थाप्ति करने के फलस्वरूप बने लवण को अम्लीय लवण कहते हैं | 

जैसे – H2 SO4 + NaOH  →  NaHSO4 + H2 O  

          H2 PO4 + NaOH  →  NaH2 + H2 O  

3. भाष्मिक लवण – वैसे भष्म जिनके अणु में एक से अधिक हाइड्रोक्सिल समूह होते हैं अम्लों द्वारा आंशिक रूप  सेस उदासीन होकर ये भास्मिक लवण प्रदान करते हैं |

जैसे –    Pb ( OH )2 + HNO3  →   Pb ( OH )NO3 + H2 O

लवण के pH 

1. प्रबल अम्ल तथा प्रबल भष्म के बने लवणों का जलीय विलयन उदासीन होता है तथा विलयन का pH मान 7 होता है | 

उदाहरण – KCl, NaCl , KNO3

2. प्रबल अम्ल तथा दुर्बल भष्म से बने लवणों का जलीय अम्लीय होता है तथा विलयन का pH मान 7 से कम होता है | 

उदाहरण – NH4 Cl, FeCl3 , CuSO4

3. दुर्बल अम्ल तथा प्रबल भष्म से बने लवणों का जलीय विलयन क्षारीय होता है तथा विलयन का pH मान 7 से अधिक होता है | 

उदाहरण – Na2 CO3 , NaHCO3 , NaCN 

कुछ उपयोगी लवण 

  1. सोडियम क्लोराइड ( साधारण नमक, NaCl ) 

                 सोडियम हाइड्रॉक्साइड तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की आभिक्रिया से सोडियम क्लोराइड प्राप्त होता है |

NaOH  +  HCl  →  NaCl + H2O

                हमारे देश में नमक का स्त्रोत समुदी जल एवं चटाने हैं | भारत में 95% सोडियम क्लोराइड की प्राप्ति समुद्री जल के वाष्पीकरण से  होती है लेकिन यह नमक खाने योग्य नहीं होता है | इसे खाने योग्य बनाने के लिए KI0 या Kl की थोड़ी मात्रा मिला कर आयोडीन युक्त बनाया जाता है जिससे नमक खाने योग्य बना जाता है 

सेंधा नमक काला नमक 

काला सेंधा नमक को जमीन खोदकर से प्राप्त किया जाता है | इस नमक में अशुद्धि के रूप में लाल चिकनी मिट्टी के कण मिले होते हैं जिससे नमक का रंग भूरा हो जाता है | 

2. सोडियम हाइड्रॉक्साइड ( कॉस्टिक सोडा, NaOH ) – सोडियम हाइड्रॉक्साइड को क्लोर-ऐल्कली विधि द्वारा बनाया जाता है इस विधि में सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन का विधुत अपघटन करा कर सोडियम तथा क्लोरीन को अलग-अलग प्राप्त किया जाता है फिर सोडियम धातु को जल से अभिक्रिया करा कर सोडियम हाइड्रॉक्साइड प्राप्त किया जाता है | 

2Nacl  →  2Na + Cl

  2Na + 2H2 O  →  2NaOH +H2  

सोडियम हाइड्रॉक्साइड के उपयोग

  1. साबुन तथा अपमार्जक बनाने में |
  2. कागज बनाने में |
  3. प्रयोगशाला में अभिकार्मक के रूप में |

हाइड्रोजन गैस के उपयोग

  1. वनस्पति तेल का हाइड्रोजनीकरण कर उन्हें वनस्पति ही में परिणत करने में |
  2. हैबर विधि द्वारा अमोनिया बनाने में |

क्लोरीन गैस का उपयोग

  1. कपड़ो एवं कागज को विरंजित करने में |
  2. कीटाणु नाशक होने के कारण पेय जल को करने में |
  3. विरंजक चूर्ण बनाने में |

2. सोडियम बाइकर्बोंनेट या सोडियम हाइड्रोजन कार्बोंनेट ( खाने का सोडा, NaHCO3

सोडियम बाइकर्बोंनेट को अमोनिया सोडा  विधि या साल्वे विधि द्वारा तैयार किया जाता है आमानया सोडा विधि या साल्वे विधि में अमोनिया गैस से संतृप्त जलीय विलयन में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करने के फलस्वरूप सोडियम बाइकार्बोंनेट प्राप्त होता है | 

NaCl  + H2O  + CO2  + NH  →  NH4Cl  + NaHCO3+ HCl

सोडियम बाइकर्बोंनेट के उपयोग –

  1. पावरोटी को स्पंजी या मुलायम बनाने में 
  2. पेट की अम्लीयता कम करने की औषधि के रूप में 
  3. अग्निशामक यंत्रों में 
  4. रसोईघर में खाने के सोडा  का उपयोग खस्ता व्यंजन बनाने के लिए 

4. सोडियम कार्बोंनेट या धोने के सोडा ( Na2 CO ⋅10H2 O ) 

सोडियम कार्बोंनेट को अमोनिया-सोडा विधि या साल्वे विधि से तैयार किया जाता है | अमोनिया-सोडा विधि या साल्वे विधि में अमोनिया गैस से संतृप्त सोडियम क्लोराइड के संतृप्त जलीय विलयन में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रवाहित करनें पर सोडियम बाइकर्बोंनेट प्राप्त होता है | 

NaCl  + H2O  + CO2  + NH  →  NH4Cl  + NaHCO3+ HCl

सोडियम बाइकर्बोंनेट को गर्म करके सोडियम कार्बोंनेट प्राप्त किया जाता है 

NaHCO3   Na2CO3   +  + CO2  + H2O

सोडियम कार्बोंनेट के उपयोग –

  1. कपड़ा धोने में 
  2. काँच, कागज साबुन आदि के उत्पादन में 
  3. जल का  स्थायी करापन दूर करने में
  4. प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में 
  5. विरंजक चूर्ण [ CaOCl2 ब्लीचिंग पाउडर ] 

शुष्क बुझे हुए चूने को 40° C तक तप्त कर उसके ऊपर क्लोरीन गैस प्रवाहित करने पर विरंजक चूर्ण प्राप्त होता है | 

 Ca(OH) + Cl2   →    CaOCl2 + H2 O 

विरंजक चूर्ण के उपयोग –

  1. कीटाणुनाशक के रूप में 
  2. कागज एवं कपड़ों के विरंजन में 
  3. क्लोरीन, क्लोराफॉर्म आदि बनाने में 

5. प्लास्टर ऑफ पेरिस [ ( CaSO4 )2 H2 O ] या कैल्सियम सल्फेट हेमिहाइड्रेट ( CaSO H2 O ) –

जिप्सम को 120° C तक सावधानीपूर्वक गर्म करने के फलस्वरूप प्लास्टर ऑफ पेरिस बनता है | 

 2  ( CaSO4  ⋅ 2 H2 O )  ( CaSO4 )2 H2 O  + 3H2 O

प्लास्टर ऑफ पेरिस के उपयोग –

  1. मूर्ति बनाने में 
  2. टूटी हुई हडियों को बैठने एवं जोड़ने में पटियों के रूप में 

जलयोजित लवण ( Hydrated salts ) – लवण जिनमें रवाकरण के जल होते हैं वे जलयोजित लवण कहलाते हैं | जैसे तूतिया ( CuSO4 ⋅ 5H2O ), धोने का सोडा ( Na2 CO3 ⋅ 10 H2 O ) तथा जिप्सम ( CaSO ⋅ 2H2  O ) जिन लवणों में खाकरण के जल नहीं होते हैं वे अनार्द्र लवण कहलाते हैं | इन जल योजित लवणों को गर्म करने पर ये रवाकरण के जल खोकर अनार्द्र लवणों में परिणत हो जाते हैं | 

प्रस्वेद्य लवण ( Precipitated salt ) – वे लवण जो वायु में खुला छोड़ देने पर ये वायु के जलवाष्प को अवशोषित कर पसीजने लगते हैं , प्रस्वेद्य लवण कहलाते है |जैसे अनांर्द्र CaCl2  

 

 

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