प्रतिस्पर्धा एवं जनसंघर्ष का अर्थ
लोकतंत्र के विकास में प्रतिस्पर्धा और जनसंघर्ष का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है | जब शासक और शासन में भागीदारी चाहनेवालों अर्थात् जनता के बीच संघर्ष होता है तो ऐसी स्थिति में ही लोकतंत्र मजबूत होता है और उसका विकास होता है |
लोकतंत्र में संघर्षों का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के सहारे ही संभव है | जब जनता लामबंध होकर संघर्ष करती है या संघर्ष का समाधान करती है, दोनों ही स्थिति में ऐसे जनसंघर्ष और प्रतिस्पर्धा का आधार राजनीतिक संगठन ही होते हैं |
लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये संगठन दो तरह से अपनी भूमिका निभाते हैं –
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प्रत्यक्ष भागीदारी का तरीका या परंपरागत तरीका
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अप्रत्यक्ष भागीदारी का तरीका
प्रत्यक्ष भागीदारी का तरीका या परंपरागत तरीका – लोकतंत्र के किसी निर्णय प्रभाविक करने का जाना-पहचाना तरीका है | इसके अंतर्गत राजनीतिक दल का निर्माण होता है | राजनीतिक दल के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया में भाग लिया जाता है और सरकार का निर्माण होता है | यही चुनाव प्रकिया में भाग लेना लोकतंत्र को प्रभाविक करने का प्रत्यक्ष तरीका है |
जब लोकतंत्र में निर्णयों को लोग राजनीतिक संगठनों से अलग होकर उसे प्रभावित करने का प्रयास करते हैं तो यह अप्रत्यक्ष भागीदारी का तरीका कहलाता है | लोगों द्वारा किये गये इस तरह के कार्य को जनसंघर्ष या आंदोलन कहा जाता है |
लोकतंत्र में जनसंघर्ष की भूमिका – भारत में स्वतंत्रता के पहले हुए जनसंघर्ष या आंदोलन केवल स्वतंत्रता के लिए ही नहीं थे, बल्कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए भी थे | 26 जनवरी, 1950 को भारत ने जब एक गणतांत्रिक संविधान को अपनाया, तब से ही भारत में लोकतंत्र की नींव भी रखी गई और तब से ही यह सुदृढ़ हो रहा है |
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जनसंघर्ष द्वारा लोकतंत्र का विकास – लोकतंत्र में निर्णय एवं फैसले आम सहमति से लिए जाते हैं | यदि सरकार निर्णयों एवं फैसलों में लोगों के विचारों का नजरअंदाज कराती है, तो जनता ऐसे निर्णयों एवं फैसलों के खिलाफ जनसंघर्ष करती है |
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जनसंघर्ष सरकार को तानाशाह होने से रोकता है – जनसंघर्ष अकसर सरकार के विरुद्ध होता है | कभी-कभी तो जनसंघर्ष में विधायिका जैसी सरकार की संस्थाएँ भी शामिल होती हैं जो सरकार बदलने में सक्षम होती हैं |
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जनसंघर्ष से नये-नये राजनीतिक संगठनों का निर्माण – जनसंघर्ष के पहले लामबंदी की प्रक्रिया शुरू होती है | यही लामबंदी जनसंघर्ष के दौरान या उसके बाद दबाव समूह, हित समूह और आंदोलनकारी समूह राजनीतिक दल में बदल जाते हैं, जो राजनीतिक संगठन के रूप में जाने जाते हैं |
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जनसंघर्ष से राजनीतिक चेतना आती है – जनसंघर्ष से लोगों में राजनीतिक चेतना आती है | जनसंघर्ष के दौरान ने केवल सरकार पर दबाव बनाया जाता है, बल्कि लोगों को उनके अधिकार एवं सरकार की निर्णयों एवं फैसलों से भी अवगत कराया जाता है, जिससे लोगों में राजनीतिक चेतना का विकास होता है |
बिहार का छात्र आंदोलन – बिहार का छात्र आंदोलन तत्कालीन सरकार के विरुद्ध विशुद्ध छात्रों का जनसंघर्ष था जो बाद में राजनीतक हो गया | यह आंदोलन लोकतंत्र को पुनार्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया |
जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति का मुख्य उद्देश्य था ‘सच्चे लोकतंत्र’ की स्थापना करना | यह आंदोलन सर्वप्रथम बिहार में छात्रों के द्वारा प्रारंभ हुआ था, इसीलिए इस आंदोलन को बिहार का छात्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है | लोकतांत्रिक देशों में जनसंघर्षों एवं आंदोलनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जिसे कोई भी लोकतांत्रिक सरकार अनदेखी नहीं कर सकती |
चिपको आंदोलन – 1970 के दशक में उत्तरप्रदेश (अब उत्तराखंड) के कुछ भाग पर जंगलों की कटाई के लिए सरकार ने अनुमति प्रदान की थी | इसके विरोध में उत्तराखंड के कुछ गाँवों के स्त्री-पुरुषों ने जंगलों की व्यवसायिक आधार पर कटाई का विरोध किया | वे पेड़ों को काटने से पहले पेड़ों से चिपक जाते थे एवं पेड़ों को अपनी बाँहों में समेट लेते थे, ताकि उन्हें काटने से बचाया जा सके | इसीलिए इसे चिपको आंदोलन कहा गया | चिपको आंदोलन का नेतृत्व सुंदरलाल बहुगुणा ने किया | इस आंदोलन में महिलाओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई |
दलित पैंथर्स – भारत में प्राचीन समय से ही दलित समुदाय के साथ भेदभाव होता रहा है | लगभग सातवें दशक की शुरुआत में महाराष्ट्र में दलित युवकों ने अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बदलाव के लिए विभिन्न मंचों से अपनी आवाज बुलंद की |
डाॅ० भीमराव अंबेदकर ने हिंदू जाति व्यवस्था के ढाँचे से बाहर दलितों को समाज में एक गरिमापूर्ण स्थान दिलाने का अथक प्रयास किया | डाॅ० भीमराव अंबेदकर के विचारों से ओतप्रोत होकर ही महाराष्ट्र के शहरी-शिक्षित युवकों ने दलित पैंथर्स नामक संगठन का गठन किया था |
भारतीय किसान यूनियन – 1970 एवं 1980 के दशक में विभिन्न तरह के जन-आंदोलन हुए इसमें बिहार एवं गुजरात का छात्र आंदोलन, महाराष्ट्र का दलित पैंथर्स आंदोलन इसके प्रमुख उदहारण हैं | 1980 के दशक में किसानों ने सरकार की नीतियों का विरोश करने के लिए भारतीय किसान युनियन का गठन किया | भारतीय किसान युनियन के प्रमुख नेता महेन्द्र सिंह टिकैत एवं इसके राष्ट्रीय संयोजक एम० यू० वीर सिंह थे |
ताड़ी विरोधी आंदोलन – ताड़ी विरोधी आंदोलन आंध्रप्रदेश में वहाँ की महिलाओं द्वारा शुरू किया गया स्वत: स्फूर्त आंदोलन था | इस आंदोलन के द्वारा महिलाएँ अपने आस-पास शराब एवं मदिरा (ताड़ी) की बिक्री पर पाबंदी लगाना चाहती थी और अपनी ग्रामीण अर्थव्यव्स्था में सुधार लाना चाहती थी | लगाभाव 5000 ग्रामीण महिलाओं ने ताड़ी पर प्रतिबंध लगाने संबधी एक प्रस्ताव जिलाधिकारी को भेजा | धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल गया |
यही ताड़ी-विरोधी आंदोलन आगे बढ़ते-बढ़ते महिला आंदोलन का हिस्सा बन गया | अत: आंध्रप्रदेश में ताड़ी विरोधी महिलाओं का स्वत: स्फूर्त आंदोलन धीरे-धीरे महिला आंदोलन का रूप ले चूका है |
नर्मदा बचाओ आंदोलन – नर्मदा नदी मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से होकर बहने वाली एक प्रमुख नदी है | इसकी कई सहायक नदियाँ हैं | 1980 के दशक के प्रारंभ में मध्य भारत में नर्मदा घाटी परियोजना के तहत नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े बाँध, 135 मंझोले बाँध तथा 300 छोटे-छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया | इन् बाँधों के निर्माण से संबंधित राज्यों के करीब 245 गाँवों को डूबने की आशंका बढ़ गई | इससे प्रभावित लगभग ढाई लाख लोगों ने पुनर्वास का मुद्दा सरकार के सामने उठाया | निर्मदा बचाओ आंदोलन की एक मुख्य दलील यह रही है कि देश द्वारा अपनाई गई विकास परियोजनाओं का लोगों के पर्यावरण, आजीविका तथा संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ा है | नर्मदा बचाओ आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसने विकास परियोजनाओं में स्थानीय लोगों की भागीदारी की माँग कर लोकतंत्र की अवधारणा को मजबूत किया |
सूचना के अधिकार का आंदोलन – जून, 2005 से देश के सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार प्राप्त है | इस अधिकार के तहत देश का कोई भी नागरिक सरकार से वांछित सूचना की माँग कर सकता है और सरकार को निर्धारित सूचना देनी पड़ती है | सूचना के अधिकार का यह आंदोलन जनआंदोलन की सफलता का सुंदर उदहारण है |
पड़ोसी देशों में जनसंघर्ष एवं आंदोलन – पड़ोसी देशों में अभी भी पूर्णत: लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पायी है | इसके लिए पड़ोसी देशों में विभिन्न तरह के आंदोलन एवं जनसंघर्ष होते रहे हैं |
नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन – नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना जनसंघर्ष एवं आंदोलन के द्वारा ही संभव हो पायी है | नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना 1990 में ही गयी थी | परंतु नेपाल का राजा औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बना रहा | इसके बावजूद नेपाल में वास्तविक सत्ता की शक्ति जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथों में थी |
बोलीविया में जनसंघर्ष – सन् 2000 में बोलीविया में एक भयंकर जनसंघर्ष हुआ, जिसे बोलीविया का जल युद्ध के नाम से जाना जाता है | बोलीविया का यह जनसंघर्ष पानी के निजीकरण के खिलाफ एक सफल संघर्ष था | बोलीविया लातिनी अमेरिका का एक छोटा-सा देश है |
श्रीलंका में लोकतंत्र के लिए संघर्ष – श्रीलंका भारत से सटे दक्षिण दिशा में स्थित एक छोटा-सा महाद्वीप है | भारत की आजादी के अगले वर्ष अर्थात् 1948 में श्रीलंका भी आजाद हुआ | आजादी के समय ही श्रीलंका में लोकतंत्र की स्थापना भी हो गयी |
म्यांमार में लोकतंत्र के लिए जनसंघर्ष – भारत के पूर्व में स्थित बंगाल की खाड़ी से सटा म्यांमार छोटा-सा देश है | म्यांमार का प्रचीन नाम बर्मा है | 14 वर्षों के बाद यहाँ की राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि 1962 में लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था का तख्तापलट कर सैनिक शासन की स्थापना हो गई, जिसका काफी विरोध हुआ |
आंग-सान-सू-की के नेतृत्व में लोकतंत्र की पुन: बहाली के लिए वर्षों तक आंदोलन हुए | फलस्वरूप, लगभग 30 वर्षों बाद 1990 में वहाँ निर्वाचन हुआ और आंग-सान-सू-की के नेतृत्व वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी नामक राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त हुआ |
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