धातु और अधातु ( Metals and Non-metals ) – Class 10th Chemistry | Notes in Hindi

धातुओं के विशिष्ट गुण 

भौतिक गुण ( Physical Properties )

  1. इलेक्ट्राॅनिक विन्यास ( Electronic configuration ) – धातुओं के परमाणु की ब्रहातम कक्षा में साधारणत: 1, 2 या 3 इलेक्ट्राॅन होते हैं |

जैसे – Li – 2, 1 

Na – 2, 8, 1 

Mg – 2, 8, 2 

Al – 2, 8, 3 

2. विधुतधनात्मक गुण ( Electropositive Property )– धातुएँ विधुतधनात्मक होती है अर्थात् इनके परमाणुओं में इलेक्ट्राॅनों को त्याग करने की क्षमता होती है | 3. अधातवर्धनीयता ( Malleability )– धातुएँ अधातवर्धनीय होती है अर्थात् इन्हें हथौड़ो से पीटकर इनकी चादरे बनाई या सकती है | 

4. तन्यता ( Ductile ) – धातुएँ तन्य होती है अर्थात् इन्हे खीचकर इनसे तार बनाए जा सकते है |

5. द्रवणांक एवं क्वथनांक ( Melting and boiling Point ) – धातुओं के द्रवणांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं | लेकिन, सोडियम और पोटेशियम अपवाद है क्योंकि ये निम्न ताप पर ही पिघलकर उबलने जलाते हैं | 

6. ऊष्मीय एवं विधुत चालकता ( Thermal and electrical conductivity )– सभी धातुएँ ऊष्मा एवं विधुत की सुचालक होती है | सिल्वर ऊष्मा और विधुत की सबसे अधिक सुचालक होती है , जबकि लेड ( सीसा ) धातु सबसे कम ग्रैफाइड अपवाद है जो अधातु होते हुए भी विधुत का सुचालक होता है | 

7. चमक ( Shine ) – धातुओं में एक विशेष प्रकार का चमक होती है जिसे धातुई चमक कहते हैं | लेकिन , ग्रैफाइड तथा आयोडीन अपवाद है जो अधातु होते हुए भी चमकीला होता है | 

8. कठोरता ( Hardness ) – सभी धातुएँ कठोर होती है | लेकिन, सोडियम, पोटैशियम और लिथियम अपवाद है जिसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता है | 

9. ध्वनि ( Sound ) – धातुओं को हथौड़े से पीटने पर एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे धातुई ध्वनि कहते हैं | 

10. भौतिक अवस्था ( Physical state) – कमरे के ताप पर धातुएँ प्राय: ठोस के रूप में होती है | लेकिन, पारा एक अपवाद है जो कमरे के ताप पर द्रव के रूप में होती है | 

11. धनत्व ( Density ) – सभी धातुओं का घनत्व उच्च होता है | लेकिन , पोटैशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, एलुमिनियम के घनत्व निम्न होता है |

धातुओं के रासायनिक गुण ( Chemical properties of Metals )

1. सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके ऑक्साइड बनाते हैं | 

2Mg + O2  →  2MgO

4Na  +  O2  →   2Na2O

 

2. जल के साथ अभिक्रिया –

(i)  कुछ धातुएँ ठंडे जल के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करती है तथा धातु का ऑक्साइड या हाइड्रॉक्साइड बनाती है | 

2Na +  2H2O  →  2NaOH  +  H2  ↑

2K +  2H2O  →  2KOH  +  H2  ↑

(ii) कुछ धातुएँ जल के वाष्प के साथ अभिक्रिया नहीं करती है | जैसे – कॉपर, मरकरी, चाँदी, सोना 

नोट: ताँबा जल वाष्प के साथ अभिक्रिया नहीं करता है | इसी कारण इसका उपयोग गर्म जल के टंकी में किया जाता है | 

(iii) अम्लों के साथ अभिक्रिया – धातुएँ अम्लों के साथ क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करती है | 

2Na +  2HCl  →  2NaCl  +  H2  ↑

2Zn +  2HCl  →  2 ZnCl2  +  H2  ↑

4. धातु की अन्य धातुओं के लवणों के विलयन के साथ अभिक्रिया क्रियाशील धातु अपने से क्रियाशील धातु के लवण के विलयन से कम क्रियाशील को विस्थापित कर देते हैं | 

Zn  +  CuSO4  →  ZnSO4  +  Cu  ↓

Fe  +  CuSO4  →  FeSO4  +  Cu  ↓

अधातुओं के विशिष्ट गुण 

 अधातुओं के भौतिक गुण 

  1. इलेक्ट्राॅनिक विन्यास ( Electronic configuration ) –अधातुओं के परमाणु की बाह्यतम कक्षा में प्राय: 5, 6 या 7 इलेक्ट्रॉन रहते हैं |  

जैसे : S  – 2 ,8,6 

            Cl – 2,8,7  

2. विधुतऋणात्मक गुण ( Electronegative Property )- अधातुएँ प्राय: विधुत ॠणात्मक होती है |

3. अधातवर्धनीयता और तन्यता ( Malleability and Ductile ) –अधातु आघातवर्धनीय तथा तन्य नहीं होती है क्योंकि इसे हथैडें से पीटने पार ये चूर-चूर हो जाती है | 

4. द्रवणांक एवं क्वथनांक ( Melting and boiling Point )- अधातुओं के द्रवणांक एवं क्वथनांक निम्न होते है|  ग्रैफाइट एक अपवाद है जिसका द्रवणांक एवं क्वथनांक उच्च होता है | 

5. ऊष्मीय एवं विधुत चालकता ( Thermal and electrical conductivity )- अधातुएँ प्राय: ऊष्मा एवं विधुत की कुचालक होती है | ग्रैफाइट एवं अपवाद है जो विधुत का सुचालक होती है |

6. चमक ( Shine ) – अधातुओं में कोई विशेष प्रकार की चमक नहीं होती है | लेकिन , ग्रैफाइट एवं आयोडीन अपवाद है जो चमकीले होते हैं | 

 7. अधतुओं मुलायम होती है | 

8. भौतिक अवस्था ( Physical state)- अधातुएँ कमरे के ताप पर ठोस, द्रव या गैस के रूप में होती है –

ठोस – कार्बन, सल्फर 

द्रव – ब्रोमीन 

गैस – ऑक्सीजन, नाइट्रोजन 

9. धनत्व ( Density ) – अधातुओं के घनत्व निम्न होते हैं |

10.ध्वनि ( Sound ) – हथौड़े से पीटने पर अधातुओं से कोई ध्वनि नहीं निकलती है बल्कि टूटकर चूर-चूर हो जाती है 

अधातुओं के रासायनिक गुण 

1.ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया – अधातुएँ ऑक्सीजन के साथ संयोग करके अम्लीय ऑक्साइड बनाती है | ये ऑक्साइड जल में धुलकर अम्ल बनाते हैं | 

C  + O2  →   CO2

H2O   +   CO2    →    H2CO3 

 2. क्लोरीन के साथ अभिक्रिया – अधतुएँ जल के साथ अभिक्रिया करके क्लोराइड बनाती है | 

H2  + Cl2  →   2HCl

3. जल के साथ अभिक्रिया – अधातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं कराती है | 

4. अम्लों के साथ अभिक्रिया – अधातुएँ अम्लों के  साथ प्राय: अभिक्रिया नहीं करती है | लेकिन,  कुछ अधातुएँ ऑक्सीकारक अम्लों के साथ अभिक्रिया के साथ अभिक्रिया करके ऑक्सीजन अम्ल बनाती है | 

S   +   6HNO3  →    H2SO4  +  6NO2  +  2H2

5. हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया – अधातुएँ हाइड्रोजन के साथ संयोग करके हाइड्राइड बनाते है | 

H2  +   S  →    H2S

उपधातु के गुण 

  1. उपधातु धातु तथा अधातु दोनों के गुण प्रकट करते हैं |

            जैसे :-Silicon ( Si ) , Germanium (Ge) , Arsenic( As)

 धातुओं और अधातुओं के बीच अभिक्रिया :- 

  1. धातु और अधातु परस्पर अभिक्रिया करके आयनिक यौगिक बनाती है | 
  2. अधातु और अधातु परस्पर अभिक्रिया करके सहसंयोजक यौगिक बनाती है | 
  3. धातुएँ परस्पर रासायनिक अभिक्रिया नहीं करती है | 

इलेक्ट्रॉन – बिंदु संरचना ( Electron-dot Structure )

किसी भी रासायनिक बंधन के बनने में परमाणु के बाह्यतम कक्षा में  इलेक्ट्रॉन ही भाग लेते हैं | ये सयोजी इलेक्ट्रॉन कहलाते है जिनको चतुर्दिक बिन्दुओं ( •) के द्वारा तत्वों के परमाणु के चारों ओर दर्शाया जाता है जिसे इलेक्ट्रॉन-बिंदु संरचना कहते हैं | 

कुछ तत्वों के परमाणु की इलेक्ट्रॉन बिंदु संरचाएँ – 

कुछ आयनों की इलेक्ट्रॉन – बिंदु संरचनाएँ – 

क्लोराइड आयन   

सोडियम आयन   

ऑक्साइड आयन 

कुछ अणुओं की इलेक्ट्रॉन – बिंदु संरचनाएँ – 

हाइड्रोजन  (  H2 )                             

मेथेन  ( CH4 )                               

जल  ( H2O )                                 

कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2

आयन ( Ions ) – जब किसी आयन का परमाणु एक या एक से अधिक इलेक्ट्रोनों का त्याग या ग्रहण करता है तब वह परमाणु आयन बन जाता है | 

आयन के दो प्रकार होते हैं | 

  1. धनायन / केटायन 
  2. ॠणायन / एनायन 

1. धनायन ( Positive ions )   – जब किसी तत्व का परमाणु एक या अधिक इलेक्ट्रोनों का त्याग करता है तब वह धनायन कहलाता है | 

धनायन की विशेषताएँ – 

  1. किसी धनायन में अपने मूल परमाणु से कम इलेक्ट्रॉन रहते हैं | 
  2. धनायन पर धन आवेश रहता है | 
  3. परमाणु के धनायन में परिवर्तन हो जाने पर भी उसकी परमाणु संख्या अपरिवर्तित रहती है | 
  4. धनायन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास उसके निकटतम उत्कृष्ट गैस के सदृश होता है | 
  5. धनायन का आकर उसके मूल परमाणु के आकार से छोटा होता है | 
  6. धातु परमाणु के धनायन बनते हैं | 

2. ॠणायन ( Negative ions ) – जब किसी तत्व का परमाणु एक या अधिक इलेक्ट्रोनों का ग्रहण करता है तब वह ॠणायन कहलाता है |

ॠणायन की विशेषताएँ –  

  1. ॠणायन में अपने मूल परमाणु से अधिक इलेक्ट्रॉन रहते हैं | 
  2. ॠणायन पर ॠण आवेश रहता है | 
  3. मूल परमाणु के ॠणायन में परिवर्तन हो जाने पर उसकी परमाणु संख्या अपरिवर्तित रहती है | 
  4. ॠणायन का आकार अपने मूल परमाणु के आकार से बड़ा होता है | 
  5. ॠणायन का आकार अपने मूल परमाणु के आकार से बड़ा होता है | 
  6. ॠणायन के गुण अपने मूल परमाणु गुणों से बिलकुल भिन्न होते हैं | 
  7. अधातु परमाणु से ॠणायन बनते हैं | 

रासायनिक बंधन ( Chemical bonding )

वह रासायनिक बल जो किसी अणु में परमाणुओं को एक साथ बाँधकर रखता है रासायनिक बंधन कहलाता है रासायनिक बंधन दो प्रकार के होते हैं | – 

  1. वैधुत संयोजन बंधन या आयनिक बंधन ( Electrovalent bond or ionic bond )
  2. सहसंयोजक बंधन ( Covalent bond )

1. वैधुत संयोजक बंधन या आयनिक बंधन – दो परमाणुओं के बीच एक परमाणु से दूसरे परमाणु में या रासायनिक बंधन को वैधुत संयोजक बंधन को ध्रुवीय बंधन भी कहते हैं |

2. सहसंयोजक बंधन – जब दो परमाणु आपस में इलेक्ट्रॉनों का साक्षा करके अपना अष्टक पूरा करते करते हैं तब उसके बीच बना हुआ रासायनिक बंधन सहसंयोजक बंधन कहलाता है |

सहसंयोजक बंधन तीन प्रकार के होते हैं – 

  1. एकल सहसंयोजक बंधन ( Single Covalent bond )
  2. द्विक सहसंयोजक बंधन ( Doble Covalent bond )
  3. त्रिक सहसंयोजक बंधन ( Tripal Covalent bond )

A. एकल सहसयोजक बंधन – जब दो परमाणु आपस में केवल एक युग्म इलेक्ट्रॉनों का साझा करते हैं तब उनके बीच बना बंधन एकल सहसंयोजक बंधन कहलाता है | 

एकल सहसंयोजक बंधन को एक लकीर (—) द्वारा सूचित किया जाता है |

B. द्विक सहसंयोजक बंधन – जब दो परमाणु में दो युग्म इलेक्ट्रॉनों का साझा करते हैं उसके बीच बना बंधन द्विक सहसंयोजक बंधन कहलाता है | द्विक सहसंयोजक बंधक को दो लकीर (=) द्वारा सूचित किया जाता है |

C. त्रिक सहसंयोजक बंधन – जब दो परमाणु आपस में तीन युग्म इलेक्ट्रॉनों का साझा करते हैं तब उसके बीच बना बंधन त्रिक सहसंयोजक बंधन कहलाता है | त्रिक सहसंयोजक बंधन को तीन लकीर (≡) द्वारा सूचित किया जाता है |

  • वैधुत संयोजक यौगिकों की विशेषताएँ –
  1. ये इलेक्ट्रॉनों के पूर्ण स्थानांतरण के  फलस्वरूप बनते हैं | 
  2. ये आयनों से बने होते हैं | 
  3. ये मुख्यत: क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ होते हैं | 
  4. इनके द्रवणांक और क्वथनांक उच्च होती है | 
  5. ये जल में प्राय: विलय किन्तु बेंजीन, ऐसीटोन, क्लोराफॉर्म आदि कार्बनिक विलायकों में प्राय: अविलेय होते हैं | 
  6. वैधुत-अपघटन करने पर ये अपघटित हो जाते हैं | 

2NaCl →   2Na   +   Cl2

      7. ठोस अवस्था में ये विधुत कुचालक किन्तु जलीय विलयन में अवस्था में विधुत के सुचालक होते हैं  | 

      8. इनके अणुओं की कोई निश्चित आकृति नहीं रहती है | 

      9. विलयन में  ये तेजी से अभिक्रिया करते हैं | 

  • सहसंयोजक यौगिको की विशेषताएँ – 
  1. ये इलेक्ट्रॉनों के साझा करने के फलस्वरूप बनते हैं | 
  2. ये उदासीन अणुओं से बने होते हैं | 
  3. ये प्राय: ठोस या द्रव होते हैं | 
  4. इनके द्रवणांक और क्वथनांक निम्न होते हैं | 
  5. ये जल में अविलेय, किंतु कार्बनिक विलायको में विलेय होते हैं | 
  6. सहसंयोजक यौगिक विधुत के कुचालक होते हैं | 
  7. ठनके अणुओं की निश्चित आकृति होती है | 
  8. ये विलियन में धीरे-धीरे अभिक्रिया करते हैं | 
  9. इनका वैधुत-अपघटन प्राय: नहीं होता है | 

प्रकृति में धातुओं की उपस्थिति 

प्रकृति में धातुएँ पृथ्वी की परत तथा समुद्री जल में पाई जाती है ये धातुएँ दो रूपों में पाई जाती है | 

  1. मुक्त अवस्था में  – वे धातुओं मुक्त अवस्था में पाई जाती है जिन पर वायु के ऑक्सीजन, जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | जैसे – सिल्वर, गोल्ड, प्लैटिनम आदि |
  2. संयुक्त अवस्था में – वे धातुएँ संयुक्त अवस्था में पाई जाती है | जिन पर वायु के ऑक्सीजन, जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड आदि आसानी से क्रिया कर पाते हैं | जैसे – सोडियम, पोटैशियम, कॉपर |
  • खनिज ( Minerals ) – पृथ्वी की परत में विद्यमान धातुयुक्त पदार्थ खनिज कहलाते हैं | 
  • अयस्क ( Ores ) – जिन खनिज में प्रचुर मात्रा में धातु विद्यमान होते हैं तथा जिससे कम खर्च में ही एवं सरलता से धातु प्राप्त की जा सके, उसे अयस्क कहते हैं | 

नोट – सभी अयस्क खनिज होते हैं, किंतु सभी खनिज अयस्क नहीं होते | 

धातु  खनिज  प्राप्ति-स्थान 
सोडियम  बोरैक्स, चिली साल्टपीटर  लछाक ( कशमीर ) 
मैग्नीशियम  डेलोमाइट, मैग्नोसाइट  तमिलनाडु 

अयस्क कई प्रकार के होते हैं – 

  1. ऑक्साइड अयस्क – कॉपर, ऐलुमिनियम, जिंक, टिन आइटन आदि | 
  2. सल्फाइड अयस्क – कॉपर, सिल्वर, जिंक, मरकरी लेड, आइरन आदि | 
  3. कर्बोंनेट अयस्क – सोडियम, कॉपर, कैल्सियम, मैग्नीशियम, जिंक, लेड, आइरन आदि | 
  4. हैलाइड अयस्क – कैल्सियम | 

 धातुकर्म ( Metallurgy ) – अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण एवं उनके शोधन की प्रक्रिया धातुकर्म कहलाती है | 

  1. गैंग ( Gange ) – अयस्कों में पाए जाने वाले अवांछनीय पदार्थों को गैंग कहते हैं | 
  2. अयस्क का सांद्रण (Concentration of ore ) – अयस्क में विद्यमान अपद्रव्यों को गैंग कहते हैं | 
  3. निस्तापन ( Calcination )  – अयस्क को  उच्च ताप पर वायु की अनुपस्थिति या अपर्याप्त आपूर्ति में उसके द्रवणांक से कम ताप पर गर्म कर धातु को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया निस्तापन कहलाती है | 
  4. भर्जन ( Roasting ) – सल्फाइड अयस्कों को वायु की पर्याप्त आपूर्ति की स्थिति में तीव्रता से गर्म करके धातु को ऑक्साइड परवार्तित करने की प्रक्रिया भर्जन कहलाती है | 
  5. गालक ( Flux ) – गालक वह पदार्थ है जिसे निस्तापित या भर्जित अयस्क एवं कोके के साथ नितित कर मिश्रण को गर्म किया जाता है ऐसा करने से अयस्कों में विद्यमान अगलनीय अपद्रव्य दूर हो पाते है | 
  6. धातुमल ( Slag ) – द्रावक अयस्क में उपस्थित अद्रवणशील पदार्थ में परिवर्तित कर देता है जिसे धातुमल कहते हैं | 
  7. प्रगलन ( Smelting ) – धातु के ऑक्साइड को कोक के साथ गर्म करके उसे धातु में परिवर्तित करके प्रक्रिया प्रगलन कहलाती है | 
  • धातुकर्म में प्रयुक्त विभिन्न चरण निम्नलिखित है –
  1. अयस्क का सांद्रण 
  2. सांद्रित अयस्क का धातु के ऑक्साइड में परिवर्तन
  3. धातु के ऑक्साइड से धातु का निष्कर्षण  
  4. धातु का शोधन 

1. अयस्क के सांद्रण की विधियाँ –

  1. हाथ में चुनकर – अयस्क में विद्यमान बड़े आकर अशुद्धियों कई टुकड़ों को हाथ से चुनकर अलग कर लिया जाता है | फिर उसे क्रशर में डालकर चूर्ण बना लिया जाता है |
  2. गुरुत्व पृथक्करण विधि – अयस्क के चुन को जल के साथ घोलकर टेढ़ मार्ग से गुजारा जाता है } जिससे अयस्क पीछे छूट जाते हैं और उसमे उपस्थित अशुद्धियाँ जल में घुलकर बह जाती है | 
  3. फेन प्लवन विधि- अयस्क के भारी चूर्ण को जल से भरी एक टंकी में डालते हैं तत्पश्चात उस जल में थोड़ा तेल डालकर वायु प्रवाह द्वारा जलको खूब आलोड़ित किया जाता है | विलय अपद्रव्य जल में घुल जाते हैं और अयस्क के हल्के कर्ण फेन केसाथ जल के साथ जल की सतह के ऊपर आ जाते हैं जिन्हें अलग कर लिया जाता है फिर , सांद्रित अयस्क को छानकर सुखा देते हैं | 
  4. गलानिक पृथक्करण विधि – इस विधि द्वारा ऐसे अयस्कों का अपद्रव्यों के द्रवणांक से कम हो अशुद्ध अयस्क को गर्म कर पिघला देते हैं फिर उसे एक ढ़ालिनुमा तल से प्रवाहित करते हैं  | जिसमे उपस्थित अयस्क आगे बढ़ जाते और अपद्रव्य पीछे छूट जाते हैं | 
  5. चुंबकीय पृथक्करण विधि – यह विधि वैसे अयस्कों. के लिए प्रयुक्त होती है जब अयस्क और उसमें विद्यमान अपद्रव्यों में कोई एक चुंबकीय हो फिर चुम्बक जिस अयस्क में होते हैं उसकों एक विधुत चुंबकीय बेलनों के बेल्क पार डालकर मशीन को चालू कर दिया जाता है | अपद्रव्य चुंबकीय होने के कारण चुंबक की ओर आकर्षित होकर पत्र में गिरता है जबकि अचुंबकीय पदार्थ उससे दूर होकर एकअलग पात्र में गिरता है | 
  6. निक्षालन – यह विधि वैसे अयस्कों के ली प्रयुक्त की जाती है जब अयस्क एवं उसमे विद्यमान अपद्रवों के रासायनिक गुण भिन्न-भिन्न होते हों |

         इस विधि में अयस्क के चूर्ण को एक उपयुक्त विलायक में डालते है | अयस्क इसमें घुल जाता है, जबकि अपद्रव्य विलेय अवस्था में ही रह जाते हैं अविलेय अपद्रव्यों  को छानकर अलगकर लिया जाता है | 

2. सांद्रित अयस्क को धातु के ऑक्साइड में परिवर्तन करना सांद्रित अयस्क को निस्तापन या भर्जन विधि द्वारा धातु के ऑक्साइड में परिवर्तन कियाजाता है | 

3. धातु के ऑक्साइड से धातु प्राप्त करना 

धातु के ऑक्साइड से धातु प्राप्त करने विधि धातु की क्रियाशीलता पर निर्भर कराती है इसके लिए निम्नलिखत विधियाँ प्रयुक्त होती है – 

  1. उष्मा द्वारा अवकरण – क्रियाशीलता श्रेणी में नीचे के धातुओं के ऑक्साइड की सिर्फ गर्म कर देने से ही धातु में परिवर्तित हो जाते हैं | 
  2. रासायनिक अवकरण – इस विधि में कार्बन या ऐलुमिनियम के चूर्ण को अवकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है | 

कार्बन द्वारा अवकरण – क्रियाशीलता श्रेणी में जो वस्तुएँ मध्य में होती है | उनके ऑक्साइड को सिर्फ गर्म करके धातु में परिणत नहीं किया जा सकता है|  इसके लिए किसी अवकारक की आवश्यकता होती है | इसमें धातु के ऑक्साइड को कोक या कोयला के साथ मिलाकर वायु की सिमित उपस्थिति में एक भटी में किया जाता है | इस अभिक्रिया के फलस्वरूप कार्बन मोनोक्साइड गैस बनती है | जो धातु के ऑक्साइड को धातु में अवकृत कर देती है इस प्रक्रिया को प्रगलन भी करते हैं | 

ऐलुमिनियम द्वारा अवकरण – कुछ धातुओं के ऑक्साइड कार्बन द्वारा अवकृत नहीं किए जा सकते है ऐसी स्थिति में अवकरण की क्रिया ऐलुमिओथर्मिक विधि कहते हैं | 

C. वैधुत अपघटन द्वारा अवकरण – जो धातुएँ क्रियाशीलता श्रेणी के ऊपरी भाग में होती है | उन धातुओं के द्रवित ऑक्साइड या क्लोराइड का वैधुत अपघटन करके धातुओं को प्राप्त किया जाता है | 

4. अशुद्ध धातुओं का शोधन 

  1. वैधुत अपघटन द्वारा शोधन – वैधुत अपघटन द्वारा शोधन करने के लिए अशुद्ध धातु को ऐनोड एवं शुद्ध धातु की प्लेट को कैथोड के रूप में में इस्तेमाल किया जाता है | धातु के एक लवण का विलयन वैधुत अपघटन का कार्य करता है | विधुत धारा प्रवाहित करने पर ऐनोड शुद्ध धातु निकलकर विलयन में जाती है और विलयन में से उतनी ही शुद्ध धातु कैथेड पर एकत्रित हो जाती है | विलेय अपद्रव्य विलयन चले जाते हैं जबकि अविलेय अपद्रव्य ऐनोड के नीचे पेंदी के एकल हो जाते हैं जो ( ऐनोड मड ) कहलाते हैं | 

धातुओं का संक्षारण ( Corrosion of metals ) – धातु की सतह पर वायु की ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जलस्वरूप धातु का संक्षारण कहलाता है | 

संक्षारण रोकने के उपाय 

  1. धातु की बाहरी परत पर ग्रीस या तेल लगाकर | 
  2. धातुएँ द्वारा स्वयं रक्षा कवच बना कर | 
  3. रंगाई करके | 
  4. धातु की किसी वस्तु को पिघले हुए जस्ता में डुबाकर वस्तु की सतह पर जस्ता की एक परत चढ़ा दी जाती है इस प्रक्रिया में जस्तीकरण कहते हैं | 
  5. वैधुत अपघटन द्वारा किसी धातु पर अन्य धातु की परत चढ़ा दी जाती है | 
  6. धातुओं को मिश्रधातु में परिवर्तित करके | 

मिश्रधातु ( Alloy ) – दो या अधिक धातुओं अथवा एक धातु एवं एक अधातु का मिश्रण मिश्रधातु कहलाता है | जैसे – पीतल-बर्तन बनाने में, कॉसा-बर्तन, सिक्का एवं मूर्तियाँ बनाने में 

मिश्रधातु के गुण 

  1. ये अपने अवयवों से अधिक कठोर होते हैं | 
  2. ये संक्षारण-अवरोधक होते हैं | 
  3. इसके द्रवणांक एवं इनकी विधुत चालकता के अवयवों की अपेक्षा कम होते हैं | 
  4. इनकी गुणवता इनके अवयवों की तुलना में बढ़ जाती है | 

स्टेनलेस इस्पात ( Stainless steel ) – लोहा को इकेल एवं क्रोमियम के साथ मिश्रित कर बनी मिश्रधातु स्टेनलेस इस्पात कहलाती है | स्टेनलेस इस्पात काफी कठोर एवं जंग नहीं लगने वाला मिश्र धातु होता है | 

सोना की मिश्रधातु 

शुद्ध सोना 24 कैरेट का होता है किंतु ऐसा सोना अत्यंत मुलायम होने के कारण आभूषणों के निर्माण के लिए अनुपयुक्त होता आभूषणों के निर्माण के लिए 22 कैरेट सोना उपयुक्त होता है | 22 कैरेट सोना का अर्थ है कि इसमें 22 भाग सोना एवं 2 भाग सिल्वर या ताँबा मिश्रित है | 

दिल्ली का लौह – स्तंभ 

दिल्ली में कुतुबमीनार के निकट 8 मीटर ऊँचाई और 6000 kg वजन ऐतिहासिक लौह – स्तंभ 2000 वर्ष पुराना होने के बावजूद अपनी पूर्व की अवस्था में ही है यह स्तंभ पिटवाॅ लोहे का बना हुआ इस्पात है |  जिसका संक्षारण बहुत ही धीरे-धीरे होता है  | इस स्तंभ की बाहरी सतह पर लोहे के चुंबकीय ऑक्साइड की एक पतली पर जाने के कारण इसका संक्षारण बाधित हो गया है |  

 

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